Tuesday 25 June 2019

छत्तीसगढ़ी म पद्य लेखन....

छत्तीसगढ़ी म पद्य लेखन....
दुनिया म जतका भाखा हे,  सबो के लेखन अउ उच्चारण म कोनो न कोनो किसम के मौलिकता जरूर हे, एकरे सेती वोकर आने सबले हट के अलग अउ स्वतंत्र पहचान बनथे।
हमर छत्तीसगढ़ी के पद्य लेखन म घलो एक अलग अउ स्वतंत्र चिन्हारी हे, एकर लेखन स्वर अउ ताल के माध्यम ले लिखे के हे। छत्तीसगढ़ी पद्य ल स्वर अउ ताल बद्ध लिखे जाथे। महान संगीतकार स्व. खुमान लाल जी साव एकर संबंध म एक बहुत बढ़िया उदाहरण देवंय। उन बतावंय के "चंदैनी गोंदा " के रिकार्डिंग खातिर जब वोमन मुंबई गे राहंय, त एक करमा गीत म ताल पांच मात्रा के बाजय। उन बतावंय के दुनिया म अउ कहूं पांच मात्रा के विषम ताल नइ होवय। सब म दू अउ चार मात्रा के सम ताल होथे।
उन बतावंय, बंबई के जतका संगीतकार उहां  राहंय, सब माथा धर लिए राहंय, वोमन म के एको संगीतकार वो पांच मात्रा के ताल ल बजा नइ पाइन।
आज छत्तीसगढ़ी म घलो अपन मौलिक चिन्हारी ल छोड़ के दूसर भाषा मन के परंपरा ल लादे के रिवाज चल गे हवय। दूसर भाषा के लेखन शैली ल थोर बहुत अपनाना तो स्वागत योग्य बात आय। फेर आरुग उहिच ल हमर मूड़ में खपल देना ल स्वीकार नइ करे जा सकय। आजकाल छंद के नांव म हिन्दी अउ उर्दू के परंपरा के जइसन बढ़वार देखे ले मिलत हे, वो ह सोचे के बात आय।
कोनो भी भाषा के विकास अउ सम्मान वोकर खुद के लेखन रूप के बढ़वार हो सकथे, आने के परंपरा ल थोपना नहीं।
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो. 9826992811

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