Friday 7 April 2017

शिव लिंग की वास्तविकता


आध्यात्मिक जगत में बहुत से ऐसे बहुरूपिए और षडयंत्रकारी लोग भी आते रहे हैं, जिनके कारण इसका वास्तविक स्वरूप और मूल दर्शन भ्रमित होता रहा है। कई मनगढ़ंत किस्सा-कहानी और मूर्खता की पराकाष्ठा को लांघ जाने वाली परंपरा भी इन सबके चलते हमारे बीच स्थान बनाने में सफल रही हैं। शिव लिंग के संबंध में ऐसे अनेक कहानी और तर्क-वितर्क भी इसी श्रृंखला की एक कड़ी है।

साधना काल से पूर्व और अब भी यदा-कदा ऐसे बेहुदा प्रसंग मेरे समक्ष निर्मित हो जाते हैं। आश्चर्य होता है, लोग ऐसी असभ्य बातें कितनी आसानी से कह जाते हैं। जब शिव लिंग को पुरूष प्रतीक और जलहरी को स्त्री (या पार्वती) प्रतीक के रूप में चिन्हित कर उसे अश्लील रूप दिया जाता है, और लोगों को इसकी पूजा से विलग रहने की समझाइश दी जाती है।

निश्चित रूप से ऐसे लोग शिव लिंग की वास्तविकता से अनभिज्ञ रहते हैं। कई बार ऐसा भी देखने को मिलता है, कुछ अन्य पंथावलंबी ऐसी घृणित कहानियाँ गढ़ शिव जी को छोटा बताकर अपने ईष्ट को बड़ा या श्रेष्ठ बताने की कोशिश करते हैं।

वास्तव में शिव लिंग सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड में तेज रूप में व्याप्त परमात्मा का प्रतीक स्वरूप है। हमें साधना काल में इसका बोध होता है। ध्यानावस्था में बैठा साधक जब उच्चावस्था को प्राप्त करता है, तब उसकी दिव्य दृष्टि जागृत होने लगती है। इसी अवस्था में उसे अपने चारों ओर तेज स्वरूप में व्याप्त परमात्मा अद्र्ध गोलाकार के रूप में दिखाई देने लगते हैं। यह अर्द्ध गोलाकार लगभग काला (कभी गाढ़ा बैगनी) रंग का दिखाई देता है। उसका ऊपरी आवरण (परत) हल्का सा लालिमा लिए हुए दिखाई देता है। हमारी संस्कृति में शिव लिंग को अर्द्ध गोलाकार निर्मित करने की परंपरा भी शायद इसी के चलते है, कि सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड में तेज रूप में व्याप्त परमात्मा साधक को उच्चवस्था प्राप्त करने पर वैसा ही दिखाई देते हैं।

मित्रों, मैं हमेशा यहाँ के आध्यत्मिक दर्शन को पुनर्लेखन और संशोधन की बात करता हूं, तो उसका मूल कारण ऐसे ही कुतर्क भरे किस्सा कहानियों के जंजाल से मुक्त होने के लिए ही कहता हूं। आइए, इस देश के मूल धर्म को उसके मूल रूप में पुनर्धारण करें। सर्वव्यापी परमात्मा को उसके मूल प्रतीक (लिंग) रूप में स्वीकार करें।

सुशील भोले
संस्थापक, आदि धर्म सभा
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मो. 9826992811  

No comments:

Post a Comment