Wednesday 19 April 2017

शक्ति संग ज्ञान के अंजोर बगरय

चम्मास के गहिर बरसा के थोर सुरताए के पाछू जब हरियर धनहा म नवा-नेवरनीन कस ठाढ़े धान के गरभ ले नान-नान सोनहा फुल्ली कस अन्नपुरना के लरी किसान के उमंग संग झूमे लगथे, तब जगत जननी के परब नवरात के रूप म घर-घर, पारा-पारा, बस्ती-बस्ती म जगमग जोत संग उजराए लागथे।

नवरात माने शक्ति के उपासना परब। शक्ति जे भक्ति ले मिलथे। छत्तीसगढ़ आदिकाल ले भक्ति के माध्यम ले शक्ति के उपासना करत चले आवत हे, फेर लगथे के महतारी के सरबस किरपा वोकर लइका मन ऊपर छाहित नइ हो पावत हे। एकरे सेती कहूं न कहूं मेर थोक-मोक चिरहा, फटहा अउ उघरा रहि जाथे। तभे तो इहां के भोला-भाला मूल निवासी ाज तक तन ल पूरा ढांके के जतन नइ कर पाए हें। ये सपना ल पूरा करे के अकाट कारज के रूप म अलग राज के निरमान खातिर खून-पसीना एकमई करीन, फेर लागथे अलग राज बने के बात ह सिरिफ कागज के लिखना बन के रहिगे हे। एक अलग नक्शा के चिन्हारी भर बनके रहिगे हे।

जेन समस्या के निवारन खातिर दिन-रात एक करीन, भूख-पियास संग मितानी बदिन, ओही समस्या बेसरम के जंगल-झाड़ी कस बिन लगाए अपने-अपन बाढ़त जावत हे। इहां के मूल निवासी मन के हाथ म लोकतांत्रिक सत्ता सौंपे के सपना लरी-लरी हो जावत हे। जेन बाहिरी कहे जाने वाले मनखे मन के नांग-फांस ले मुक्ति खातिर आजादी के बीन बजाए गेइस, लागथे वो अकारथ होवत जात हे। वोकर मन के षडयंत्र दिनों-दिन बिन जड़ के अमरबेल अस चारोंमुड़ा छछलत जावत हे।

आज राष्ट्रीयता के मापडदण्ड क्षेत्रीय उपेक्षा अउ छलावा के के नेंव ऊपर खड़े नजर आवत हे। लागथे ये राष्ट्रीयता के परिभाषा ल नवा रूप अउ नवा ढंग संग फिर से परिभाषित करे के बेरा आगे हे। राष्ट्रीयता के नांव म सिरिफ क्षेत्रीय उपेक्षा होवत हे। चाहे वो भाषा के बात हो, संस्कृति के बात हो, रीति-रिवाज या परब-तिहार के बात हो, चाहे लोकतांत्रिक सत्तअउ शासन म भागीदारी के बात हो,। जम्मो डहार स्थानीय पहचान ल समाप्त करे के उदिम रचे जावत हे। अउ अइसन तब तक होवत रइही जब तक इहां के असली अस्मिता प्रेमी मूल निवासी (सत्ता, समाज या साहित्य के दलाल नहीं) के हाथ म सम्पूर्ण सत्ता नइ आ जाही।

मूल नवासी संबंध म घलोक सरकारी दृष्टिकोण अउ मापदण्ड ल बदलना परही। सिरिफ कुछ बरस इहां रहि जाये या जनम भर ले ले म कोनो मूल निवासी नइ हो सकय। जब तक इहां के अस्मिता ल, इहां के संस्कृति ल आत्मसात नइ कर लेवय, तब तक कोनो इहां के मूल निवासी नइ हो सकय। जे मन सौ-पचास साल ले इहां अपन पूरा परिवार सहित राहत हें, फेर आज तक उन अपन संग अपन मूल प्रदेश ले लाने भाषा-संस्कृति ल जीयत हें वोला निश्चित रूप ले बाहिरी ही माने जाही।

ये बछर के उपासना के परब म महतारी ले अरजी हे, वो लोगन ल सद्बुद्धि देवय। उनला बतावय के राम राज के व्यवस्था ल सबले श्रेष्ठ राज व्यवस्था के रूप म उदाहरण दिए जाथे, उहू ह स्थानीय व्यक्ति के हाथ म स्थानीय शासन के रिहिसे। एकरे सेती रावन के मरे के बाद लंका के राजा विभीषण ल बनाए गेइस, अउ बाली के बाद सुग्रीव ल। राम जानत रिहिसे के दूसर के अधिकार अउ अस्मिता ऊपर दूसर मनखे ल लाद के कभू आदर्श राज के स्थापना नइ करे जा सकय।

सुशील भोले
संस्थापक, आदि धर्म सभा
54/191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर
(टिकरापारा) रायपुर (छ. ग.)-492001
मो. 98269 92811, 79747 25684
   

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