Thursday 26 September 2019

अस्मिता के दूनों अंग के बढ़वार....

अस्मिता के दूनों अंंग के बढ़वार हे जरूरी......
कोनो भी क्षेत्र या राज के चिन्हारी उहाँ के भाखा अउ संस्कृति दूनों के माध्यम ले होथे। एकरे सेती ए दूनों ल ही उहाँ के चिन्हारी या अस्मिता कहिथें।
छत्तीसगढ़ी अस्मिता के अलग चिन्हारी खातिर जब ले अलग राज खातिर आन्दोलन चालू होए रिहिसे, तब ले मांग चलत रिहिसे। जिहां तक भाखा के बात हे, त ए ह इहाँ के गुनिक साहित्यकार मन के माध्यम ले सैकड़ों बछर ले चले आवत हे, एकरे परसादे आज छत्तीसगढ़ी भाखा देश के आने कोनो भी लोकभाखा के मुकाबला म कमती नइए। फेर जिहां तक संस्कृति के बात हे, त एकर अलग चिन्हारी के बुता ह आजो ढेरियाए असन दिखथे। जब भी छत्तीसगढ़ी संस्कृति के बात होथे, त आने राज ले लाने गे संस्कृति अउ ग्रंथ ल ही छत्तीसगढ़ के संस्कृति के रूप म माने अउ जाने के बात करे जाथे। गुनिक साहित्यकार मन घलो ए मामला म थथमराए असन जुवाब दे परथें।
जबकि ए स्पष्ट कहे जाना चाही, के दूसर राज ले लाने गे संस्कृति छत्तीसगढ़ के मूल या कहिन इहाँ के मौलिक संस्कृति नइ हो सकय। मौलिक या मूल संस्कृति उही होथे, जेन इहाँ तइहा तइहा ले चले आवत हे। हमन अपन पहिली के लेख मन म एकर उप्पर घात चरचा कर डारे हावन।
अभी सिरिफ अतके गोठियाना हे, अस्मिता के अपन दूनों अंग के बढ़वार के बुता ल संगे संग करन। सिरिफ भाखा भाखा करत रहिबो त संस्कृति संग पहिलिच जइसे अनियाय होतेच रइही। अउ जब तक संस्कृति संग अनियाय होवत रइही, तब तक हमर अस्मिता के भरपूर बढ़वार कभू नइ दिखय।
कोनो मनखे के एक आंखी मूंदाए रइही अउ एक आंखी भर ले वो देखही त भला वोकर छापा ह जगजग ले कइसे दिखही? ठउका इही बात हमर अस्मिता उप्पर घलो लागू होथे। एकर एक अंग पिछवाए रइही त विकास के रद्दा वो कइसे रेंगे पाही? भाखा आन्दोलन चलत इहाँ कतकों बछर होगे हे, फेर संस्कृति ल वोकर ले अलग रखे के सेती वो मंजिल तक पहुँच नइ पावत हे।
संगी हो बहुते जरूरी हे, भाखा संग इहाँ के मूल संस्कृति के आन्दोलन ल घलो संघारिन, तभे हमला सफलता के सिढ़िया चघे बर मिलही, अउ तभेच हमर अस्मिता ह सही मायने म चारोंखुंट जगजग ले दिखही।
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो. 9826992811

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