Wednesday 4 May 2022

सुशील ले भोले तक के रेंगान

सुरता//
सुशील ले भोले तक के रेंगान...
    जानकर मन नाम के गजब महिमा बताथें. एकरे सेती उन भारी सोच-विचार अउ लगिन-पतरा देख-पढ़ के काकरो भी नाम ल धरथें. शायद ए परंपरा ह शिक्षा के अंजोर संग बगरत रहे हे. फेर हमर गाँव-गॅंवई म आजो ए चलन ह समाज के आखरी मुड़ा तक नइ पहुँच पाए हे. एकरे सेती आज घलो बुधवार के दिन होए लइका के नाम ल बुधारू या बुधियारिन धर दिए जाथे. फेर जिहाॅं तक हमर घर या मोर नाम के बात हे, त हमर सियान गुरुजी रिहिन हें. शहर म राहत रिहिन हें. जे मन बेरा अउ काल के चक्र अउ महत्व ल समझत रिहिन हें, तेकर मन संग संगति करत रिहिन हें. एकरे सेती उन मन काल चक्र अउ बेरा के महत्व ल घलो थोर-बहुत समझत रिहिन हें. एकरे सेती हमर सबो भाई-बहिनी मन के जनम बेरा अउ दिन-बादर ह एकक मिनट अउ सेकंड के मुताबिक उंकर डायरी म लिखाय हे. अउ वोकरेच मुताबिक मोर नाम सुशील कुमार वर्मा धराए हे.
    सरकारी रिकॉर्ड म तो आजो इहिच नाॅंव हे, फेर सार्वजनिक गतिविधि मन म एमा थोर-बहुत बदलाव आवत रेहे हे. सन् 1984 के बात आय. तब मैं दैनिक अग्रदूत प्रेस म काम करत रेहेंव. इही बछर अक्ती परब म हमर बिहाव-बंधना होइस. बिहाव तक तो सब बने-बने रिहिस. फेर बिहाव के बाद हमर संग काम करइया नोनी मन मोला ताना मारे असन गोठियावंय- 'का सर जी, तोर बिहाव होगे, तभो ले अभी तक कइसे तैं ह कुमार लिखथस? हमन तो बिहाव होइस तहाँ कुमारी ले श्रीमती लिखे ले धर लेथन, त तहूं मनला अइसने नइ करना चाही?
     वोमन बनेच ठेसरा मारंय. वो बखत अग्रदूत के आफिस म संख्या घलो वोकरे मनके जादा राहय. आखिर थक-हार के मैं ह सुशील कुमार वर्मा ले कुमार शब्द ल निकाल के सिरिफ सुशील वर्मा लिखे लगेंव. तब वोमन हाॅं अतका म चल जाही कहिके खुश होगे रिहिन हें.
     एकर ठीक दस बछर बाद सन् 1994 म मोर जीवन म अद्भुत घटना घटिस, जेकर चलत मैं नागपंचमी 24 जुलाई 1994 ले अध्यात्म के रद्दा म आएंव. (एकर उल्लेख मोर पहिली के आलेख 'अध्यात्म के रद्दा' म आगे हे, तेकर सेती घेरी-भेरी नइ ओरियावौं). वइसे मोर मस्तिष्क परिवर्तन तो नागपंचमी के दिन ही होए रिहिसे, फेर मैं विधिवत आध्यात्मिक दीक्षा अगहन महीना (तब दिसंबर म परे रिहिसे) म लिए रेहेंव. तब मैं पत्रकारिता अउ साहित्यिक गतिविधि मनला पूरा छोड़-छाड़ के अध्यात्म म बूड़ गे रेहेंव. उही बखत एक दिन मोर आध्यात्मिक रद्दा बतइया ह कहिस- 'तोला अब अपन नाम ले जातिसूचक शब्द ल निकाल देना चाही.'
    पहिली तो मोला वोकर बात समझ म नइ आइस. अउ मैं वो डहार जादा चेत घलो नइ करेंव. सन् 1995 के सावन महीना म फेर मोला वो इही बात ल कहिस. त मैं वोकरे जगा पूछेंव- 'त तहीं बता भई, का लिखे जाना चाही?' वो कहिस- 'तोर पहचान, तोर जाति के माध्यम ले नहीं, भलुक तोर ईष्ट के माध्यम ले होना चाही. तहाँ ले ज्योतिष शास्त्र के अंक मन के कुछ गुणा भाग करिस अउ कहिस- आज ले तैं अपन नाम ल सुशील भोले लिख.
    बस उही दिन ले फेर मोर सार्वजनिक गतिविधि के नाम सुशील भोले होगे. वोकरेच बताए अउ रद्दा देखाय म मैं साधना के रद्दा म बढ़तेच गेंव, जेन ह सात-सात बछर के तीन अलग-अलग चक्र (स्तर) म कुल 21 बछर तक चलिस. एमा के पहला सात बछर तो बहुतेच कठोर रिहिस, वोकर बाद के दूसरा सात बछर म थोरिक शिथिलता करिस अउ फेर तीसरा सात बछर म थोरिक अउ शिथिलता देइस. जब सात-सात बछर के तीनों चक्र, माने कुल 21 बछर पूरा होइस, तब फेर पहिली जइसे आम आदमी के जीवन जीए के अनुमति मिलिस.
जय भोले.. ऊँ नमः शिवाय..
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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