Thursday 1 October 2015

सारे बंदर उछल रहे हैं....










सारे बंदर उछल रहे हैं, लुटेरों के वेश में
क्या सोचे थे, क्या हो गया, बापू तेरे देश में.....
पहला बंदर आंख मूंदकर, सत्ता पर जा बैठा है
मचा हुआ है हाहाकार, पर अचेत वह लेटा है
तांडव कर रहा भ्रष्टाचार, छद्म सेवा के भेष में....
दूसरा बंदर मुंह छिपाकर, जा बैठा मंत्रालय में
सारा समाधान पा जाता, वह बैठे मदिरालय में
खुशहाली का नारा गूंजता, जनता के अवशेष में....
तीसरा बंदर कान दबाकर, तौल रहा है लोगों को
जन-हित को अनसुना कर, बढ़ा रहा उद्योगों को
तब कैसे आयेगा राम राज्य, बापू इस परिवेश में....
सुशील भोले 
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मो.नं. 098269 92811

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