Friday 8 January 2016

देखे सपना धुआं होगे....

राज बनगे-राज बनगे, देखे सपना धुआं होगे
चारों मुड़ा कोलिहा मन के, देखौ हुआं-हुआं होगे

का-का सपना देखे रिहिन पुरखा अपन राज बर
नइ चाही उधार के राजा, हमला सुख-सुराज बर
राजनीति के पासा लगथे, महाभारत के जुआ होगे.....

शेर-बघवा भालू-चीता, हाथी के चिंघाड़ नंदागे
सत रद्दा रेंगइया मन के इतिहास ले नांव भुलागे
जतका ढोंगी, जोगी-भोगी, तेकरे मन बर दुआ होगे....

तिड़ी-बिड़ी छर्री-दर्री, हमर चिन्हारी के परिभाषा
कला-साहित्य सबो जगा, चील-कौंवा के होगे बासा
बाहिर ले आये मन संतवंतीन, घर के नारी छुआ होगे....

अरे कूदौ-फांदौ टोरौ-पोंछौ, काजर कस अंधरौटी ल
अपने खातिर बेलव-सेंकव, स्वाभिमान के रोटी ल
खूब पेराये हौ कुसियार बरोबर, सरबस छुहा-छुहा होगे...

सुशील भोले
 41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर  रायपुर
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com

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