Monday 11 January 2016

राष्ट्रीयता या नमक हरामी...?

जहां का अन्न-जल खाकर तुम जी रहे हो, जहां के स्वच्छ वातावरण में तुम सांस ले रहे हो, यदि वहां की भाषा, संस्कृति और लोगों के विकास में तुम भागीदार नहीं बनते, तो तुमसे बड़ा नमक हराम और गद्दार और कोई नहीं हो सकता। लेकिन दुखद है कि तुम यहां की स्थानीय अस्मिता को उपेक्षित करने यहां के मूल निवासियों के मुंह से निवाला छीनने, इनके मूलभूत अधिकारों का दमन करने को ही राष्ट्रीयता कहते हो। मैं तुम्हारे इस तथाकथित राष्ट्रीयता की परिभाषा को नमक हरामी कहता हूं... गद्दारी कहता हूं।

अब छत्तीसगढ़ में संकरनस्ल के नहीं आरुग छत्तीसगढिय़ों की सरकार बनाना है। तथाकथित राष्ट्रीय पार्टियों में सवार कथित छत्तीसगढिय़ों को  भी मैं संकरनस्ल का ही छत्तीसगढिय़ा कहता हूं, क्योंकि इनकी आड़ में ही बाहरी कहे जाने वाले लोग यहां तांडव कर रहे हैं।

राष्ट्रीयता के नाम पर स्थानीयता की उपेक्षा करने वाले, ऐसे तमाम नमक हरामों से मुक्ति और आरुग छत्तीसगढिय़ों की सरकार बनाना ही अब मेरा धर्मयुद्ध है।

यदि पांडवों के अधिकार के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध धर्मयुद्ध है, तो छत्तीसगढिय़ों के अधिकार के लिए लड़ा जाने वाला युद्ध भी धर्मयुद्ध है... तो आइए इस महायज्ञ में अपनी आहुति दें...

अब संकरनस्ल के नहीं, आरुग छत्तीसगढिय़ों की सरकार बनाएं...

सुशील भोले
मो. 098269-92811, 080853-05931 

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