Wednesday 26 October 2016

सुरहुत्ती के दिया ...


कार्तिक अमावस्या को मनाया जाना वाला पर्व दीपावली छत्तीसगढ़ में सुरहुत्ती के नाम पर जाना जाता है। इस अवसर पर यहां दीपदान की परंपरा है। गांव के छोटे-छोटे बच्चे अपने आसपास और परिचितों के घरों में एक छोटा सा जलता हुआ दीपक लेकर जाते हैं, और उनके यहां के तुलसी चौंरा या किसी अन्य पवित्र स्थल पर उसे रख आते हैं। घर के मुखिया बच्चों को कुंआ, तालाब, मंदिर, घर के प्रमुख स्थलों और बाड़ी एवं खेतों आदि में भी दिया रखने के लिए निदेर्शित करते हैं।

इस अवसर पर जो दीपक बनाया जाता है, वह धान की नई फसल से प्राप्त चावल के आटे से बना होता है, लेकिन नई पीढ़ी के लोग इस बात को विस्मृत करते जा रहे हैं। इसलिए वे मिट्टी से बने हुए दीपक या अन्य साधनों से बने दिए का इस्तेमाल कर लेते हैं।

ज्ञात रहे हमारे यहां नई फसल को अपने ईष्टदेव को समर्पित कर उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करने की परंपरा है, जिसे हम *नवा खाई* के रूप में जानते हैं। यहां नवा खाई को तीन अलग-अलग अवसरों पर मनाने का रिवाज है। कई लोग ऋषि पंचमी के अवसर पर नवा खाई मनाते हैं, कई दशहरा के अवसर पर मनाते हैं और कई दीपावली के अवसर पर। सुरहुत्ती के अवसर पर नई फसल से प्राप्त चावल के आटे से बनाये जाने वाला दीपक भी इसी परंपरा का निर्वाह है।

(नोट- फोटो इंटरनेट से लिया गया है। यह चावल आटे से निर्मित नहीं है।)

* सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो. 98269 92811, 80853 05931
  

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