Saturday, 28 September 2019

साधना से शरीर नहीं आत्मा और ज्ञान पुष्ट होते हैं....

साधना से शरीर नहीं आत्मा और ज्ञान प्रबल होते हैं....
कुछ लोग यह प्रश्न कर बैठते हैं, कि कोई साधक व्यक्ति बीमारियों से कैसे घिर जाता है?
एक दृष्टि से देखा जाए तो उसका प्रश्न उसके दृष्टिकोण से सही है, कि साधक को तो भले चंगे और तंदरुस्त होना चाहिए, लेकिन यह सही नहीं है। दरअसल शारीरिक तंदरुस्ती का संबंध अच्छे खानपान और व्यायाम से है, जबकि साधना में तो निराहार रहा जाता है, जल का उपयोग भी सीमित मात्रा में किया जाता है, तो फिर ऐसे में शरीर कैसे बलवान हो सकता है? वह तो कमजोर ही होगा।
साधना का संबंध शरीर की पुष्टि से नहीं, अपितु आत्मा और ज्ञान की पुष्टि, इनकी वृद्धि और समृद्धि से है। इसीलिए साधना से आत्मज्ञान की प्राप्ति की बात कही जाती है, और फिर आत्मज्ञान से मोक्ष प्राप्ति की बात कही जाती है।
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो. 9826992811

Thursday, 26 September 2019

अस्मिता के दूनों अंग के बढ़वार....

अस्मिता के दूनों अंंग के बढ़वार हे जरूरी......
कोनो भी क्षेत्र या राज के चिन्हारी उहाँ के भाखा अउ संस्कृति दूनों के माध्यम ले होथे। एकरे सेती ए दूनों ल ही उहाँ के चिन्हारी या अस्मिता कहिथें।
छत्तीसगढ़ी अस्मिता के अलग चिन्हारी खातिर जब ले अलग राज खातिर आन्दोलन चालू होए रिहिसे, तब ले मांग चलत रिहिसे। जिहां तक भाखा के बात हे, त ए ह इहाँ के गुनिक साहित्यकार मन के माध्यम ले सैकड़ों बछर ले चले आवत हे, एकरे परसादे आज छत्तीसगढ़ी भाखा देश के आने कोनो भी लोकभाखा के मुकाबला म कमती नइए। फेर जिहां तक संस्कृति के बात हे, त एकर अलग चिन्हारी के बुता ह आजो ढेरियाए असन दिखथे। जब भी छत्तीसगढ़ी संस्कृति के बात होथे, त आने राज ले लाने गे संस्कृति अउ ग्रंथ ल ही छत्तीसगढ़ के संस्कृति के रूप म माने अउ जाने के बात करे जाथे। गुनिक साहित्यकार मन घलो ए मामला म थथमराए असन जुवाब दे परथें।
जबकि ए स्पष्ट कहे जाना चाही, के दूसर राज ले लाने गे संस्कृति छत्तीसगढ़ के मूल या कहिन इहाँ के मौलिक संस्कृति नइ हो सकय। मौलिक या मूल संस्कृति उही होथे, जेन इहाँ तइहा तइहा ले चले आवत हे। हमन अपन पहिली के लेख मन म एकर उप्पर घात चरचा कर डारे हावन।
अभी सिरिफ अतके गोठियाना हे, अस्मिता के अपन दूनों अंग के बढ़वार के बुता ल संगे संग करन। सिरिफ भाखा भाखा करत रहिबो त संस्कृति संग पहिलिच जइसे अनियाय होतेच रइही। अउ जब तक संस्कृति संग अनियाय होवत रइही, तब तक हमर अस्मिता के भरपूर बढ़वार कभू नइ दिखय।
कोनो मनखे के एक आंखी मूंदाए रइही अउ एक आंखी भर ले वो देखही त भला वोकर छापा ह जगजग ले कइसे दिखही? ठउका इही बात हमर अस्मिता उप्पर घलो लागू होथे। एकर एक अंग पिछवाए रइही त विकास के रद्दा वो कइसे रेंगे पाही? भाखा आन्दोलन चलत इहाँ कतकों बछर होगे हे, फेर संस्कृति ल वोकर ले अलग रखे के सेती वो मंजिल तक पहुँच नइ पावत हे।
संगी हो बहुते जरूरी हे, भाखा संग इहाँ के मूल संस्कृति के आन्दोलन ल घलो संघारिन, तभे हमला सफलता के सिढ़िया चघे बर मिलही, अउ तभेच हमर अस्मिता ह सही मायने म चारोंखुंट जगजग ले दिखही।
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो. 9826992811

Tuesday, 24 September 2019

कतकों खंचका खानय कोनो....

कतकों खंचका खानय कोनो तोला अरझाए बर
भरम के गढ़य किस्सा कहिनी लोगन ल भरमाए बर
फेर देव कृपा के छत्रछाया ले नइ होवय वो ह आगर
इही लेख ए नियति के जेला कहिथन भाग के सागर
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो.9826992811

Monday, 23 September 2019

साहित्य दरपन होथे....

साहित्य समाज के दरपन होथे कहिथें गुनिक सुजान
जे नइ समझय एकर मरम उनला अड़हा सिरतो जान
कइसे अइसन मनला सउंप देइन हम अगुवा के कमान
अउ कइसे बन पाही अइसन के भरोसा कोनो समाज महान
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो. 9826992811

Saturday, 21 September 2019

कला के बढ़वार ले नइ होय संस्कृति....

सिरिफ कला के बढ़वार ले नइ होय संस्कृति के उद्धार
सिरतोन एला उजराना हे त अध्यात्मिक पक्ष के हो बढ़वार
नाचा-गम्मत गायन-वादन ए मन सब आयं सिरिफ कला
रहिबो सिरिफ एकरे भरोसा त होय नहीं संस्कृति के भला
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो.9826992811

Tuesday, 17 September 2019

छत्तीसगढ़ी म धन्यवाद

छत्तीसगढ़ी म धन्यवाद..?
छत्तीसगढ़ी भाखा संस्कृति बर काम करत जान के कतकों मनखे हमन ल ए पूछ परथे, के 'धन्यवाद' ल छत्तीसगढ़ी म का कहिथें?
मैं जान डरथंव, के एला छत्तीसगढ़ी संस्कृति के ज्ञान कम हे। एकरे सेती छत्तीसगढ़ी के शब्द भंडार ल कमती देखाए बर या कहिन, छत्तीसगढ़ी के हिनमान करे बर वो अइसन सवाल पूछत हे।
ए बात सही हे, छत्तीसगढ़ी म 'धन्यवाद' के सीधा सीधा रूपांतरित शब्द नइए, फेर एला व्यक्त करे बर इहाँ के संस्कृति अउ परंपरा ल जाने समझे बर लागही।
धन्यवाद काबर दिए जाथे? जब कोनो हमर खातिर अच्छा बुता करथे, त वोकर आभार व्यक्त करे बर धन्यवाद कहे जाथे। धन्यवाद माने आभार व्यक्त करना।
छत्तीसगढ़ी म कोनो हमर बर अच्छा बुता करथे त, सिरिफ आभार भर व्यक्त नइ करन, संग म वोला शुभकामना घलो देथन। वोला कहिथन-"बने करे जी, भगवान तोर भला करय या तोर भला होय, तोर जस होय.... आदि आदि..।
मतलब हम आभार व्यक्त करे के संग शुभकामना घलो देथन। त बतावव, हमर संस्कृति परंपरा म आभार व्यक्त करना जादा अच्छा हे, सिरिफ धन्यवाद भर कहि  देना ह?
संगी हो, कोनो भी भाखा के सिरिफ शब्द अउ वोकर रूपांतरित रूप भर ल देख के वो भाखा के समृद्धि ल नइ टमड़ना चाही, भलुक संग म वोकर ले जुड़े परंपरा अउ संस्कृति ल घलोक देखना अउ टमड़ना चाही, तभे हम वोकर गहराई ल जान सकथन।
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो.9826992811

मूल संस्कृति और....

मूल संस्कृति और......
जहां का अन्न-जल खाकर तुम जी रहे हो, यदि वहां की भाषा, वहां की मूल संस्कृति, वहाँ की उपासना और जीवन पद्धति से, वहां के लोगों से तुम प्यार नहीं करते, तो तुमसे बड़ा नमक हराम और कोई नहीं हो सकता।
* सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो. 9826992811

Monday, 16 September 2019

तर्पण, शरीर को या आत्मा को...?

तर्पण, शरीर को या आत्मा को....?
कई लोग यह तर्क देकर पितृपक्ष में दिए जाने वाले तर्पण का उपहास उड़ाते हैं, कि मृत शरीर जिसे जलाकर राख कर दिया गया, किसी नदी में बहा दिया गया, उसे पितृपक्ष पर दिया जाने जल या तर्पण कैसे प्राप्त हो सकता है?
यह तर्क अपने आप में अच्छा लगता है, पर सही नहीं है, क्योंकि तर्पण मृत शरीर को नहीं, बल्कि उसमें स्थित रही आत्मा को दिया जाता है। और आप  सभी जानते हैं, कि आत्मा अविनाशी है, अनंत है। जो ब्रम्हांड में कहीं न कहीं विचरण कर रही होती है। इसलिए यह कहकर तर्पण नहीं करना उचित नहीं है, कि उसे अर्पित किए गए हमारे पुरखों को प्राप्त नहीं होगा।
अवश्य प्राप्त होता है। इसलिए अपने पितरों को तर्पण अवश्य दीजिए, अनावश्यक तर्क वितर्क से अलग रहकर।
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो. 9826992811

Sunday, 15 September 2019

छत्तीसगढ़ी म धन्यवाद

छत्तीसगढ़ी म धन्यवाद..?
छत्तीसगढ़ी भाखा संस्कृति बर काम करत जान के कतकों मनखे हमन ल ए पूछ परथे, के 'धन्यवाद' ल छत्तीसगढ़ी म का कहिथें?
मैं जान डरथंव, के एला छत्तीसगढ़ी संस्कृति के ज्ञान कम हे। एकरे सेती छत्तीसगढ़ी के शब्द भंडार ल कमती देखाए बर या कहिन, छत्तीसगढ़ी के हिनमान करे बर वो अइसन सवाल पूछत हे।
ए बात सही हे, छत्तीसगढ़ी म 'धन्यवाद' के सीधा सीधा रूपांतरित शब्द नइए, फेर एला व्यक्त करे बर इहाँ के संस्कृति अउ परंपरा ल जाने समझे बर लागही।
धन्यवाद काबर दिए जाथे? जब कोनो हमर खातिर अच्छा बुता करथे, त वोकर आभार व्यक्त करे बर धन्यवाद कहे जाथे। धन्यवाद माने आभार व्यक्त करना।
छत्तीसगढ़ी म कोनो हमर बर अच्छा बुता करथे त, सिरिफ आभार भर व्यक्त नइ करन, संग म वोला शुभकामना घलो देथन। वोला कहिथन-"बने करे जी, भगवान तोर भला करय या तोर भला होय, तोर जस होय.... आदि आदि..।
मतलब हम आभार व्यक्त करे के संग शुभकामना घलो देथन। त बतावव, हमर संस्कृति परंपरा म आभार व्यक्त करना जादा अच्छा हे, सिरिफ धन्यवाद भर कहि  देना ह?
संगी हो, कोनो भी भाखा के सिरिफ शब्द अउ वोकर रूपांतरित रूप भर ल देख के वो भाखा के समृद्धि ल नइ टमड़ना चाही, भलुक संग म वोकर ले जुड़े परंपरा अउ संस्कृति ल घलोक देखना अउ टमड़ना चाही, तभे हम वोकर गहराई ल जान सकथन।
-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर
मो.9826992811

Friday, 6 September 2019

अपन देवता के पांव कब परबो...?


        **  अपन देवता के कब पॉंव परबोन..? **

    संगी हो आज धरम अउ संस्कृति के नॉव म मैं इहाँ के लोगन ल आने-आने लोगन के पाछू भेड़िया धसान बरोबर अंखमूंदा किंजरत देखथौं, त हमर पुरखा संत कवि पवन दीवान जी के वो बात के खॅंचित सुरता आथे, जब उन काहंय- 'अरे पर के पाछू किंजरइया हो.. हम अपन देवता के कब पॉंव परबोन.? '

      संत कवि पवन दीवान जी जब वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. परदेशी राम जी वर्मा के संग  मिल के 'माता कौशल्या गौरव अभियान' के मैदानी बुता चालू करिन, त एक बात ल वो मन हर मंच म कहंय- "बंगाल के मन अपन देवी-देवता धर के आइन, हम उंकरो पॉंव परेन, उत्तर प्रदेश बिहार के मन अपन देवी-देवता ल धर के आइन, हम उंकरो पॉंव परेन, गुजरात अउ  पंजाब के मन अपन देवी-देवता धर के आइन, हम उंकरो पॉंव परेन। ओडिशा, महाराष्ट्र अउ आंध्र के मन अपन देवता धर के आइन हम उंकरो पॉंव परेन. बस चारों मुड़ा के देवी-देवता मन के पॉंव परइ चलत हे। त मैं पूछथंव- अरे ददा हो, बस हम दूसरेच मन के देवी-देवता मन के पॉंव परत रहिबोन, त अपन देवी-देवता मन के पॉंव कब परबोन? एदे देख लेवौ उंकर मनके देवता के पॉंव परई म हमर माथा खियागे हे, अउ ए परदेशिया मन एकरे नॉव म इहाँ के जम्मो शासन-प्रशासन म छागे हें." 

     ए बात ह सोला आना सिरतोन आय संगी हो.. अउ अइसन‌ दृश्य ले बॉंचे खातिर ए जरूरी हावय के अब एकर खातिर मैदानी  रूप म भीड़ना हे. 

    का हमूं मन अपन इहाँ के मूल देवी-देवता मन के पूजा उपासना के विधि अउ उंकर गौरव गाथा के प्रचार-प्रसार ल दुनिया भर नइ बगरा‌ सकन? तेमा दुनिया के लोगन, हमर इहाँ के पारंपरिक देवी-देवता, हमर पूजा विधि, हमर जीवन पद्धति ल जानंय अउ अपनावंय?

    "आदि धर्म जागृति संस्थान" के नॉव ले हमन अभी जे उदिम चलाए के जोखा मढ़ाए हावन, अउ अपन सख भर जनजागरण के बुता घलो करतेच रहिथन, तेने ह असल म अपन मूल देवी-देवता मन के पॉंव परे के ही उदिम आय। त आवव, आप सब जम्मो झन मिल के हमर अपन इहाँ के  पारंपरिक देवी-देवता के, हमर अपन जुन्ना पूजा अउ उपासना विधि ले पॉंव परन, उंकर अलख जगावन, हमर अपन भाखा- संस्कृति के, हमर इतिहास अउ गौरव के, हमर सम्पूर्ण अस्मिता अउ जीवन पद्धति के सोर ल पूरा दुनिया म बगरावन।

   संगी हो एक बात ल तो गॉंठ बॉंध के जान लेवौ, के छत्तीसगढ़ आध्यात्मिक रूप ले अतका समृद्ध अउ पोठ हे, ते हमला कोनो भी एती-तेती आने देश-राज के न तो कोनो संत के जरूरत हे, न कोनो ग्रंथ के जरूरत हे अउ न ही कोनो देवता के। ‌हमर इहाँ सब हे, जरूरत बस अतके हे के हम अपन मूल ल जानन समझन, कोनो भी दूसर के बताए भरमजाल ले बाहिर के आवन.. अपन पुरखौती देवी-देवता, पूजा विधि अउ जीवन पद्धति ल आत्मसात कर लेवन, तहाँ ले कोनो भी मनखे धार्मिक या सांस्कृतिक रूप ले न तो हमला अपन गुलामी के रद्दा म रेंगा सकय, न कोनो गुरुघंटाल के रूप म हमर मुड़ी म चघे के हिमाकत कर सकय। 

जोहार छत्तीसगढ़.. जय मूल धर्म

-सुशील भोले, आदि धर्म जागृति संस्थान