Wednesday 16 October 2013

वाल्मीकि जयंती पर.....

गीत मेरा बन जाता है... 
(इस गीत की प्रेरणा महर्षि वाल्मीकि जी हैं। एक बहेलिया द्वारा क्रौंच पक्षी के जोड़े को धनुष-तीर से मार देने पर अचानक उनके मुंह से कविता निकल पड़ी थी, जिसके कारण हम उन्हें दुनिया का प्रथम कवि कहते हैं। हमारे छत्तीसगढ़ में तुरतुरिया नामक स्थान पर वाल्मीकि आश्रम है, जो कि मेरे घर से मात्र 45 कि.मी. की दूरी पर है। शरद पूर्णिमा 18 अक्टूबर को वाल्मीकि जयंती पर विनम्र श्रद्धांजलि सहित .... )

जब-जब पाँवों में कोई कहीं, कांटा बन चुभ जाता है
दर्द कहीं भी होता हो, पर गीत मेरा बन जाता है.....

मैं वाल्मीकि का वंशज हँू, हर दर्द से नाता रखता हँू
कोई फूल टूटे या शूल चुभे, हर जख्म मैं ही सहता हूँ
क्रंदन करता क्रौंच पक्षी, तो मन मेरा कंप जाता है.....

मैं सावन का घुमड़ता बादल हूँ, सुख की फसलें उपजाता हूँ
कोई राजा हो या रंक सभी को, जीवन गीत सुनाता हूँ
आँखों में किसी की तिनका चुभे, तो आँसू मेरा बह जाता है..

मैं श्रमवीरों का सहोदर हूँ, कल-पुर्जों को धड़काता हूँ
देश की हर गौरव-गाथा में, ऊर्जा बन बह जाता हूँ
सीमा पर कभी फन उठता तो, लहू मेरा बह जाता है... 


सुशील भोले
संपर्क : 41-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा), रायपुर (छ.ग.)
मो.नं. 080853-05931, 098269-92811
http://www.youtube.com/watch?v=ye5HkmbTVS8&feature=youtu.be

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