Monday 21 October 2013

गुन-गुन आथे हांसी....

पहुना मन बर पलंग-सुपेती, अपन बर खोर्रा माची
उंकर दोंदर म खीर-सोंहारी, हमर बर जुच्छा बासी
मोला गुन-गुन आथे हांसी, रे मोला......

जेन उमर म बघवा बनके, गढ़ते नवा कहानी
तेन उमर म पर के बुध म, गंवा डारेस जवानी
आज तो अइसे दिखत हावस, जइसे चढग़े हावस फांसी ... रे मोला...

ठग-जग बनके आथे इहां, जइसे के ज्ञानी-ध्यानी
पोथी-पतरा के आड़ म उन, गढ़थें किस्सा-कहानी
तुम कब तक उनला लादे रइहौ, कब तक रही उदासी... रे मोला...

धरम-करम के माने नोहय, पर के बुध म रेंगत राहन
दुख-पीरा अउ सोसन ल, फोकट के साहत राहन
ये तो आरुग अंधरौटी ये, नोहय अंजोर उजासी... रे मोला...
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com http://www.youtube.com/watch?v=UZF5k3c1h3A&feature=youtu.be

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