Tuesday 8 October 2013

मोर घर...

खुमरी कस खदर ओढ़े बइठे हे मोर घर
फरिका म ओंगन आंजे हे झन लागय नजर....

जाड़ म बुढुवा कस खांसत रहिथे
कोनो बीमरहा कस कांखत रहिथे
एक्के तीर परे रहिथे, जइसे आय अजगर...

                                                     सुशील भोले

No comments:

Post a Comment