छत्तीसगढ़ में कार्तिक अमावस्या को ईसरदेव-गौरा के विवाह को गौरा-गौरी पर्व के रूप में मनाया जाता है। कार्तिक माह की प्रथमा तिथि से ही इसकी तैयारी प्रारंभ हो जाती हैं। इस तिथि से यहां प्रात:काल में कार्तिक स्नान तथा शाम को सुआ नृत्य के माध्यम से इसका संदेश लोगों तक पहुंचाने की परंपरा प्रारंभ हो जाती है।
महिलाएं शाम के समय टोली बनाकर गांव के सभी घरों में जाती हैं। अपने साथ एक टोकरी में सुआ (तोता) रखकर उसके चारों ओर घूम-घूम कर नाचती और गाती हैं, तथा लोगों के द्वारा दिये गये धन (पैसा या चावल आदि) को कार्तिक अमावस्या को संपन्न होने वाले ईसरदेव-गौरा विवाह के लिए संग्रहित करती हैं।
ज्ञात रहे इस विवाह पर्व को छत्तीसगढ़ में कार्तिक अमावस्या अर्थात देवउठनी के दस दिन पूर्व ही संपन्न किया जाता है। यह इस बात का प्रमाण है कि छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति में चातुर्मास की व्यवस्था लागू नहीं होती, जिसमें कहा जाता है कि चातुर्मास में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्यों नहीं किये जाते।
ज्ञात रहे कि छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति, जिसे मैं आदि धर्म कहता हूं वह सृष्टिकाल की संस्कृति है, जिसे उसके मूल रूप में लोगों को समझाने के लिए हमें फिर से प्रयास करने की आवश्यकता है, क्योंकि कुछ लोग यहां के मूल धर्म और संस्कृति को अन्य प्रदेशों से लाये गये ग्रंथों और संस्कृति के साथ घालमेल कर लिखने और हमारी मूल पहचान को समाप्त करने की कोशिश कर रहे हैं।
सुशील भोलेसंजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 80853-05931, 98269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com