सुरता वो 'कवि नाचा' के
तब कवि सम्मेलन के जादा चलन नइ रिहिसे. रायपुर म राठौर चौक के गंज स्कूल मैदान म साल म एक बार अखिल भारतीय कवि सम्मेलन होवय, जेमा जम्मो प्रदेश भर के कविता प्रेमी मन रात भर जुरियाए राहंय. एकर छोड़ एकाद-दू ठन अउ कभू भोरहा म हो जावत रिहिसे. छत्तीसगढ़ी के नांव म तब 'छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति' के गोष्ठी ही जादा होवय. लोहार चौक अउ लाखेनगर चौक के बीच म देवबती सोनकर स्मृति धरमशाला म. गाँव-गंवई म तो कवि सम्मेलन का होथे, तेनो ल बने गढ़न के जानत नइ रिहिन हें. कोनो शिक्षित अउ बड़का गाँव जेन शहर के तीर म राहय ते मन म भले एकर सोर बगरगे रिहिसे, फेर आम गाँव मन म बिल्कुल नहीं.
हमर पुरखा साहित्यकार केयूर भूषण जी तब रायपुर लोकसभा के सांसद रिहिन हें. ब्राह्मण पारा के उंकर जुन्ना घर म हमर मन के आना-जाना राहय. सुशील यदु अउ रामप्रसाद कोसरिया तो ठउका पहुंची जावंय. सुशील यदु के घर घलो उहीच जगा राहय, तेकर सेती वोकर जवई जादा राहय.
रायपुर लोकसभा के सांसद होए के सेती केयूर भूषण जी के इहाँ जम्मो किसम के लोगन जुरियावंय. हमन तब "मयारु माटी" म उंकर उपन्यास "कुल के मरजाद" ल धारावाहिक छापत रेहेन. तेकर सेती केयूर भूषण जी के पीए मेहतरलाल साहू हमन ल बनेच चिनहय. हमन ल देखतीस, तहाँ ले एक बगल वाला दरवाजा राहय तेमा ले लेग के केयूर भूषण जी के सीधा कुरिया म लेग के बइठार देवय. ए दृश्य ल देख के बाहर बइठक म बइठे लोगन ल लागय, के हमन भारी एप्रोच वाला हवन, तेकर सेती सोझ कुरिया म जा के गोठिया लेथे. जबकि बात अइसन नइ राहय. केयूर भूषण जी के मेहतरलाल ल आदेश रिहिसे के साहित्यकार मन कोनो आवंय, उंनला सोझ मोर कुरिया म ले आए करव कहिके.
उहाँ एक दिन सिमगा तीर के गाँव हरिनभट्ठा के सरपंच पहुंचे राहय. वोकर नांव के तो अभी मोला सुरता नइ आवत हे, फेर अतका हे, के उहाँ घेरी-भेरी जवई के सेती सुशील यदु संग वोकर बनेच चिन्हारी होगे राहय. तब सुशील यदु छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन खातिर उहाँ पहुंचे लोगन मन जगा जुगाड़ जमावत राहय. हरिनभट्ठा के सरपंच एक दिन तैयार होगे, हव हमर गाँव म कवि सम्मेलन करवाबो कहिके. वो गुनिस होही के एमन भारी एप्रोच वाला यें, एमन ल कवि सम्मेलन करवा के खुश कर देहूं, त एमन केयूर भूषण जी ल कहिके मोरो काम ल करवा देही.
अवई-जवई अउ कुछु-कांही के गोठ-बात सुशील यदु दूनों वोमन कर डारिन. देवारी के आगू-पाछू अइसने कोनो छुट्टी के दिन राहय. तब जाड़ घलो नंगत दंदोरय. अब तो रूख-राई जंगल-झाड़ी मन के नंदई के सेती पहिली कस जाड़ेच नइ परय.
निश्चित दिन अउ बेरा म हमन रायपुर के जुन्ना बस स्टैंड म सकलाएन. उहाँ देखेन त सिरिफ पांचे झन- बद्री विशाल यदु 'परमानंद', सूरजबली शर्मा, रामप्रसाद कोसरिया, सुशील यदु अउ मैं. अतका ल देख के परमानंद डोकरा सुशील ऊपर भड़कगे- पांचे झन म कवि सम्मेलन कइसे होही? त सुशील बताइस, के सिमगा क्षेत्र के एक-दू अउ कवि मनला खबर भेज डारे हंव वो मन उही डहार ले शामिल हो जाहीं.
रायपुर ले बस चढ़ के हमन सिमगा म उतरेन. उहाँ हमन ल हरिनभट्ठा लेगे खातिर कोनो नइ आए राहय. सुशील यदु बताए राहय के हमन ल लेगे खातिर लोगन वो गाँव ले आहीं. काबर ते हमन वो क्षेत्र बर एकदम नवा राहन. वो गाँव ल देखई तो दुरिहा जाय, वोकर नांव तक कभू नइ सुने राहन.
जब बेरा बुड़े असन होए ले धरिस, त डोकरा फेर भड़किस. आखिर सुशील यदु के जोजियई म रेंगत हरिनभट्ठा जाए के जोम जमाएन. वो पांचों म मैं सबले छोटे राहंव, फेर गाँव गंवई के मनखे, मोर बर एकाद कोस के रेंगई ह जादा मुसकिल के बात नइ रिहिसे. फेर बद्री विशाल यदु 'परमानंद' अउ सूरजबली शर्मा ए दूनों सत्तर बछर के आसपास के होगे रिहिन हें. एकर मन के बारे म सोचे जा सकथे, का स्थिति रिहिस होही? मैं अपन जिनगी म पहिली बेर तब परमानंद डोकरा ल सुशील यदु ल वतका भारी-भरकम गारी देवत सुने रेहेंव.
कइसनो कर के हरिनभट्ठा पहुंचेन. गाँव म जाड़ के दिन म लोगन जल्दी बियारी करके खटिया जठना म ओधे ले धर लेथें. हमन सरपंच घर गेन तब तक उहू मन बोर-सकेल डरे राहंय. हमन ल देखिन त फेर खाना बनाए बर कहिस. अउ बताइस के मैं तो कवि सम्मेलन के बात ल भुलागे रेहेंव. तुमन आइच गे हव त कोनो मेर चार ठन बांस ल गड़िया के बोरा उरा टंगवा देथंव.
सरपंच ह अपन एक-दू झन कार्यकर्ता मन ल बांस गड़ियाए बर भेज दिस. अउ हमन ल चाय-पानी खातिर घर म बइठारिस.
अइसे-तइसे करत रात के नौ साढ़े नौ असन होगे. हमन ल कवि सम्मेलन ठउर म लेगिन. उहाँ चार ठन बांस गड़े राहय, तेकर ऊपर एक ठन बोरा ल सिल के बनाए तरपाल लगे राहय. वो तरपाल म एक ठन नानचुक बलफ ह जुगुर-जुगुर करत राहय. फेर आदमी के नांव म वो जगा वो सरपंच के दू-चार कार्यकर्ता के छोड़ अउ कोनो नइ राहय. सरपंच घलो मोला बिहनिया ले कछेरी जाना हे, कहिके अपन घर जाके सूतगे राहय.
वो जगा जेन चार-पांच मनखे रहयं, वोमन हमन ल वो ठउर म बिछे बोरा म बइठार के गोठियावत राहंय. एक झन काहत राहय-'मोला तो ए दूनों डोकरा जोक्कड़ बनत होहीं तइसे लागथे. अउ ए सब झनले छोटे हे, तेन ह परी बनत होही.'
दूसरइया कहिस- 'हो सकथे भई, फेर मोला ए समझ म नइ आवते, के ए मन बिन बाजा- रूंजी के कइसे 'कवि नाचा' करहीं? ए मन तो बाजा के नांव म कुछू लानेच नइए?'
मैं अउ रामप्रसाद उंकर गोठ-बात ल सुन के मुसकावत राहन. तभे परमानंद डोकर सुशील ऊपर खिसियाइस- कइसे कवि सम्मेलन होही इहाँ? न तो सुनइया कोनो हे, न माईक. बस जाड़ भर मरत ले लागत हे.
सुशील यदु कहिस- हमला का करना हे, कोनो राहय ते झन राहय. हमला अपन 'लिफाफा' ले के काम ल तो करनच हे. कहिके वो खड़ा होइस, अउ कवि सम्मेलन के भूमिका बांधत सबके परिचय कराए लागिस. तहाँ ले पहला कवि के रूप म रामप्रसाद कोसरिया ल बलाइस.
हमन ल लागत रिहिसे, के हमर मन के आवाज ल सुन के गाँव वाले मन सकलाहीं. फेर उल्टा होगे. रामप्रसाद जइसे अपन गीत -'गाड़ा रावन तोर गर के माला' ल गाए के चालू करिस, तहाँ ले वो मेर जेन सरपंच के कार्यकर्ता राहंय, तेनों मन अपन-अपन घर डहार रेंग दिन. तहाँ ले हमूं मन सरपंच घर जाके, उहाँ हमर मन बर बिछाए पैरा ऊपर बोरा म सूत गेन.
बिहनिया उठेन, त परमानंद डोकरा सुशील ल कहिस -'लिफाफा' देख ले जल्दी रायपुर पहुंचना हे. सुशील ह सरपंच ल पता करिस, त पता चलिस के वो तो हमर मन ले पहिलिच ले उठ के सिमगा जाए बर निकलगे हे.
सब तरुवा धर लिन. आखिर कइसनो कर के गिरत-हपटत रायपुर पहुंचेन. हमन कभू मजा ले खातिर ए घटना के चर्चा करन, त डोकरा मन तो भड़क जंय- हरिनभट्ठा म लेग के हमर मन के भट्ठा बोर दिस कहिके, फेर हम तीनों जवनहा जब भी वोकर सुरता करन, त पेट ल चपक-चपक के हांसन, जय हो 'कवि नाचा' के काहत-काहत.
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811
Monday, 17 May 2021
कवि नाचा' के सुरता//
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