Thursday 13 January 2022

छत्तीसगढ़ी दशा.. रामनाथ साहू-2

-
                    

                *आधुनिक काल के छत्तीसगढ़ी कविता : दशा अउ दिशा*
-------------------------------------------------

                    ( भाग -2 )

               जइसन की  जम्मो भाखा म होथे , छत्तीसगढ़ी साहित्य के शुरुआत काव्य रचना ले ही होइस। छत्तीसगढ़ी भाखा  म  आधुनिक साहित्य के बीजारोपण हो गय रहिस । जुन्ना भक्ति भाव अउ आधुनिक बहुरंगी साहित्य के बीच जोड़े के  सेतु  बरोबर काम बाबू रेवाराम जी (गुटका )  के रचे भजन मन  करिन । येहर एक प्रकार ले संक्रमण काल रहीस।

       एकर बाद 1904 म पंडित लोचन प्रसाद पांडे जी के रचना मन  आईंन ।  सन 1909 म  वोमन के  लिखे 'वंदना गीत '  प्रकाशित होइस-

जयति जय जय छत्तीसगढ़ देस
जनम भूमि,  सुंदर    सुख खान
जहां  के तिल,सन, हर्रा    लाख
गहूँ  अउ  नाना  विध    के धान
बनिया  बैपारी         के आधार
बढ़ाथै देस राज         के महान

              ठीक अइसन बेरा म   सन 1915 म पंडित सुंदरलाल शर्मा जी के छत्तीसगढ़ी दानलीला प्रकाशित  होइस ।दोहा अउ चौपाई म लिखे गए ये कृति हर श्रृंगार रस म उबुक -चुभुक। होवत हे । ए कृति म  पूरी तरह से एक  प्रकार ले पूरा कृष्ण वांग्मय  के छत्तीसगढ़ीकरण होगय । गोपी- ग्वाल मन  ल छत्तीसगढ़ी पहनावा छत्तीसगढ़ी गहना- गुरिया में देखके पढ़के  सुनके  छत्तीसगढ़ी मनखे हर गदगद हो गए -

पहिरे लुगरा लाली   पिंवरा
देखत मा मोहत हे  जिवरा
डोरिया पातर सारि  ऊंचहा
मेघी चुनरी  कोर   लपरहा ।

                         अइसन समय म भाव- भक्ति ले भरे रचना मन लगातार आवत रहिन । भक्त कवि नरसिंह दास के  तीन ठन कृति मन के परिचय  मिलथे-
1.जानकी माई हित विनय
2. नरसिंह चौतीसा
3. शिवायन

          शिवायन हर बहुत प्रसिद्धि रहीस अपन के समय मा -
आइगे बारात गांव तीर भोला बाबा जी के
देखे जाबो चलो गिंया संगी ल जगावा रे ।
पहुंच गए सुखा    भये देखि भूत प्रेत कहें
नई     बांचन दाई  ददा प्राण रे भगावा रे !

         धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ी कविता म घलव जनवादी स्वर ,  देश -समाज के सरोकार मन देखे बर मिले लगिन । कवि गिरवर दास वैष्णव के ' छत्तीसगढ़ी सुराज '  हर  सन 1930 के रचना आय -

मजदूर किसान अभी भारत के
एक       संगठन    नइ करिहॅव
थोरिक दिन   म  देखत  रहिहौ
बिन        मौत   तुम  मरिहॅव ।

              सन 1954 में पंडित कपिल नाथ मिश्र जी के कृति ' खुसरा चिरई के बिहाव ' प्रकाशित  होइस ।  छत्तीसगढ़ी कविता म ध्वन्यात्मकता अउ बिंब प्रतीक विधान मन प्रवेश करे लगिन -

तेला     सुनके    निकरिस खुसरा
ठउका     मोटहा  अउ धम धुसरा
जो  तो      बटोरिस      आंखी ल
फट फट      करके        पांखी ल
कच पच कच पच करे लगिस जब
सबो     चिरई  सटक     गईन तब

        एइच रचना के एक अउ दृश्य देखव -

दूलहा हर तो दुलही पाइस
बाह्मन       पाइस   टक्का
सबो     बराती बरा सुहांरी
समधी धक्कम  धक्का ।।

       ये रचना म मनोरंजन हास के संग म सामाजिक जागृति के मधुरस हर पागे गय हे।

          ये समय के लिखईया बाबू बोधी सिंह 'प्रेम'  जी के 3 ठन काव्य कृति के जानकारी मिलथे -
1.कोइलारी दर्शन (1937 )
2. अमृतांजलि
3 भूत लीला

        इहाँ भी कवि के जनवादी स्वर हे।  'कोइलारी दर्शन'  में जनवादी चेतना बगरावत छत्तीसगढ़िया मनखे के  मुक्ति के कामना हे;  वोकर दरिद्रता- कंगाली ले , वोला निकले के रास्ता बतावत वोला 'इंटरप्राइज' करे के सलाह देवत हे कवि हर -

लंका  म      सोन के मोती
मर    जाबो   नाती    पोती
मैं    का जानेंव    मोर दाई
कुकरी ल ले जाही  बिलाई

             ये खण्ड म छत्तीसगढ़ी कविता हर भाव -भगति के संगे -संग अउ आन आन विषय मन ल अपन म समोखे के शुरू कर देय रहिस ।

(सरलग )

No comments:

Post a Comment