Thursday 13 January 2022

छत्तीसगढ़ी दशा.. रामनाथ साहू-7

-

*आधुनिक छत्तीसगढ़ी कविता :दशा अउ दिशा*
----------------------------------

                   (भाग- 7 )

          समय के संगे -संग छत्तीसगढ़ी कविता के परिदृश्य घलव बदलत रहिस।कई ठन जिनिस मन वोला प्रभावित करत रहिन।आवव वो कारक मन ल थोरकुन देख ली -

*छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण और छत्तीसगढ़ी कविता*
-----------------------------------------------------
         1 नवंबर सन 2000 के दिन छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण होइस । छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण होय ले इहाँ के  लेखक -रचनाधर्मी मन अब्बड़ खुश होइन । एकर से  इहाँ के रहइया मन के खुश होवइ हर स्वभाविक  रहीस  । एहर कोई अप्रत्याशित घटना नइ रहिस ।  हमर अपन पहली के राज मध्यप्रदेश म छत्तीसगढ़ अंचल के खास चिन्हारी रहिस । मध्यप्रदेश म मालवा, बघेलखंड अउ बुंदेलखंड मन  एकठन अन्चल आंय फेर छत्तीसगढ़ हर तो एकठन समग्र संस्कृति आय । राज बनिस तब इहां के कवि मन राज भक्ति और माटी के मया में सराबोर होके, नाना प्रकार के गीत-गोविंद लिखिन । राजभक्ति अउ माटी मया के अतिरेक अतेक होगय कि लिखइया मन  भुला तक गिन कि हमन पहली  भारतीय अन तेकर पाछु  छत्तीसगढ़िया ।

         नाना विध के रचना फेर ये रचना मन म इतिवृत्तात्मकता अतेक कि किंजर बुल के वोइच नदी वोइच पहाड़ वोइच बरा वोइच सुंहारी । तभो ले ये बीच गंभीर साहित्य के लेखन होवत रहिस -

*सुशील भोले*
------------------
जोहार दाई..
मोतियन चउंक पुरायेंव... जोहार दाई
डेहरी म दिया ल जलायेंव ....जोहार दाई
छत्तीसगढ़ महतारी परघाये बर,
अंगना म आसन बिछायेंव... जोहार दाई...

ओरी-ओरी धान लुयेन, करपा सकेलेन
बोझा उठा के फेर, सीला बटोरेन
पैर बगरायेन अउ दौंरी ल फांदेन
रात-रात भर बेलन घलो, उसनिंदा खेदेन
तब लछमी के रूप धरे, धान-कटोरा जोहारेंव... जोहार दाई...

बस्तर के बोड़ा सुघ्घर, सरगुजा के चार
जशपुर के मउहा फूल सबले अपार
शबरी के बोइर गुत्तुर, रइपुर के लाटा
नांदगांव के तेंदू पाके, हावय सबके बांटा
महानदी कछार ले, केंवट कांदा मंगायेंव..... जोहार दाई...

छुनुन-छानन साग रांधेंव, गोंदली बघार डारेंव
मुनगा के झोर सुघ्घर, बेसन लगार मारेंव
इड़हर के कड़ही दाई, अम्मट जनाही
अमली के रसा सुघ्घर, कटकट ले भाही
दही-लेवना के मथे मही, आरुग अलगायेंव..... जोहार दाई...

चूरी-पटा साज-संवागा, जम्मो तो आये हे
खिनवा-पैरी सांटी-बिछिया, करधन मन भाये हे
चांपा के कोसा साड़ी, जगजग ले दिखथे
रायगढ़ के बुने कुरती, सुघ्घर वो फभथे
राजधानी के सूती लुगरा, मुंहपोंछनी बनायेंव..... जोहार दाई...

खनर-खनर झांझ-मंजीरा, पंथी अउ रासलीला
करमा के दुम-दुम मांदर, रीलो के हीला-हीला
भोजली के देवी गंगा, जंवारा के जस सेवा
गौरा संग बिराजे हे, देखौ तो बूढ़ा देवा
कुहकी पारत ददरिया संग, सुर-ताल मिलायेंव...जोहार दाई...

(ये गीत हर साहित्य अकादमी के तत्वावधान म आयोजित एक भारत : श्रेष्ठ भारत -गुजराती छत्तीसगढ़ी सम्मेलन अहमदाबाद म 08 अक्टूबर, 2017 के पाठ करे गय रहिस,जेकर साक्षी माननीय प्रो.(डॉ.)केशरीलाल जी वर्मा (कुलपति ),डॉ. परदेशी राम वर्मा (मरिया कहानी ),जनाब मीर अली मीर (नन्दा जाही का रे)अउ खुद आलेख- लेखक (रामनाथ साहू -गति मुक्ति कहानी ) रहिन ।

*दुरगा प्रसाद पारकर*
----------------------------
        अपन वर्णन चातुरी बर प्रसिद्ध कवि पारकर के रचना मन म वर्णन हो हावे फेर प्रमाणिकता के स्तर म -

(तीजा पोरा गीत)
दीदी कुलकत हे सुवना, तीजा पोरा बर दीदी कुलकत हे ना |
मन ह झूमरत हे सुवना, मइके जाए बर मन ह झूमरत हे ना ||

तीजा लेगे बर भइया ह मोर आही
मइके के मया मोटरी धर के लाही
घाटे -घठौंदा मोला   जोहत  होही
सांटी मांजे बर नोनी आवत   होही
दीदी कुलकत हे सुवना ,तीजा पोरा बर दीदी कुलकत हे ना |
मन ह झूमरत हे सुवना, मइके जाए बर मन ह झूमरत हे ना ||

करु भात खाबोन हम्मन आरा पारा
झूलना झूलाही सुग्घर पीपर के डारा
संगी जउँरिया संग करबोन ठिठोली
मीठ मीठ लगही हमला मइके के बोली

दीदी कुलकत हे सुवना, तीजा पोरा बर दीदी कुलकत हे ना |
मन झूमरत हे सुवना, मइके जाए बर मन ह झूमरत हे ना ||

भादो के बादर कस तन मन ह घुमरत हे
रहि रहि के चोला ह मइके ल सुमरत हे
करबोन सिंगार नवा लुगरा पहिर के
फरहारी करबोन सिव संकर ल सुमरि के

दीदी कुलकत हे सुवना, तीजा पोरा बर दीदी कुलकत हे ना |
मन ह झूमरत हे सुवना, मइके जाए बर मन ह झूमरत हे ना ||

*डॉ. बलदाऊ राम साहू*
------------------------------
        हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी बाल गीत मन के पर्याय डॉ बलदाऊ राम साहू के बालगीत मन म जउन कसावट अउ तरलता हे ,वोहर विलक्षण हे-
          1.
सुख छरियागे

होगे      बिहान
सुन गा सियान।
ठगते       हावै
इहाँ    भगवान।

सावन    भादो
घाम      निटोरे
तब किसान हर
माथा       फोरे।

संसो   मा   जी
चेत        हरागे
दुख   हर  आगे
सुख  छरियागे।

करिया  बादर
दोगला    लागे
बुड़ती   आ के
उत्ती      भागे।

             2.
             फुग्गा

कक्का   फुग्गा  ले  के  आबे
हमरो  मन  के  मन  बहलाबे।

फुग्गा   लाल   पींवरा   होही
करिया अउ चितकबरा होही।

आसमान   मा   पंछी  जइसे
बिन पाँख के ये  उड़ते  कैसे?

अतका ताकत  कहाँ ले पाथे
बोल  कका ये  का-का खाते?

थोरिक  तैं  समझा  दे कक्का
समझ म आये हमला पक्का।

          3
  सुख ला पाबो

पानी      आगे
मन     हरसागे।

भाई      छत्तर
आगे     बत्तर।

धर  ले   नाँगर
समरथ जाँगर।

बाँवत   कर ले
निकल घर  ले।

खेत  म  जाबो
सुख  ला पाबो।

ये   जिनगानी
हरे     कहानी।

                   ठीक अइसन शम्भू लाल शर्मा 'वसन्त 'के बाल गीत मन हर हें ।

*छंद आंदोलन और 'छंद के छ'*
---------------------------------------
       कविता म  मुक्त छंद के अराजक स्थिति के प्रतिक्रिया बरोबर छंद बद्ध रचना मन  बर आग्रह बढिस ।  मुक्त छंद अउ छंद मुक्त कुछु भी कह लो ,अइसन कविता के हालत अतेक खराब होगिस  कि  मनखे मन वोमन ल पढ़े -सुने ल छोड़ दिन ।मुक्त छंद में भी छंद हे फिर गदय कविता रचत रचत वोमन का न का लिख दिन।  कविता के जो राग तत्व हे, वोहर समाप्त हो गए । बात बढ़त बढ़त इहां तक बढ़ गय कि अइसन लिखइया उत्तर आधुनिक अउ उत्तर उत्तर आधुनिक कवि मन विराम चिन्ह मन तक ल पूरा के पूरा छोड़ दिन । अइसन अराजक स्थिति के सहज प्रतिक्रिया स्वरूप, सबो भाषा में छंद के पुन: आवाहन चालू हो गए । बहुत ही जोर -शोर के साथ एक नवा पीढ़ी छंद रचे में लग गए ।

        हमर छत्तीसगढ अउ छत्तीसगढ़ी येकर ले अछूता नई रह गिस । कईझन छंदकार मन छंद के पुनर्स्थापना के प्रयास म अपन आप ल होम कर दिन ।श्री अरुण निगम जी घलव एकझन अइसन छंद गुरु आंय अउ आज उँकर शुरू करे ' छंद के छ ' ऑनलाइन छंद शाला हर छत्तीसगढ़ी महतारी के नित नूतन श्रृंगार करत हे ।  एहर नाभिकीय विखंडन असन प्रक्रिया रहिस । एक से अनेक गुरु बनत  अभी नवा -दसवां पीढ़ी के छंद -गुरु मन , इच्छुक मन ल छंद सिखात हें । छत्तीसगढ़ी हिंदी कविता ल समृद्धि बनाय म एकर बड़ हाथ हे।

               आलोचक -समीक्षक मन छंद आंदोलन उपर कविता ल पांच सौ साल पीछू धकेले के आरोप लगाथें । वोमन के कहना हे कि तुलसीदास जी ल अउ बढ़िया का दोहा चौपाई लिखे जाही। गिरधर ल बढ़िया तँय का कुंडलियां लिख डारबे ।

           फेर छंद आंदोलन म श्रुत -बहुश्रुत- अश्रुत सबो किसिम के शास्त्रीय छंद म रचना लिखत हें । हां ,वोमन ल देशज छत्तीसगढ़ी छंद मन ल घलव पोठ करे के काम आय ।

            आवा कुछ छत्तीसगढ़ी छन्दबद्ध -छांदस रचना मन ल देखी -  
    
*श्री बोधनराम निषाद*
-
-----------------------------
*अमृतध्वनि छंद*

(1) पानी-पानी
देखव पानी के बिना , होवय हाहाकार।
नदिया तरिया सूख गे,बंजर परगे खार।।
बंजर परगे, खार सबो जी,सुनलौ भाई।
देखव पानी, बचत करव ओ, दाई-माई।।
एखर ले हे, जम्मो जन के, ए  जिनगानी।
ए भुइयाँ हा, माँगत  हावय,देखव पानी।।

(2) तीरथ बरथ
कतको तीरथ घूम लव,काशी हरि के द्वार।
गंगा जमना डूब लव,पी लौ अमरित धार।।
पीलौ अमरित,धार अबिरथा,नइ हे  सेवा ।
मात-पिता के, सेवा  करलव, पाहू  मेवा।।
इँखर चरन मा,जम्मो देबी,झन तुम भटको।
पा लव दरशन,इहाँ बसे हे, तीरथ कतको।।

*श्रीमती वसंती वर्मा*
---------------------------                  
    (कुकुभ छंद )

*बेटी*-

बेटी ला इस्कुल भेजव जी,
बेटी मन मान बढ़ाहीं ।
पढ़-लिख के बेटी मन सुघ्घर,
ग्यान घरों-घर बगराहीं ।1।

नई भेजिहा पढ़े ल ओला,
अनपढ़ नोनी रह जाही ।
नोनी-बाबू म फरक करिहा,
तव ओखर जी दुख पाही ।2।

बेटा बेटी दुनों बरोबर,
अलग अलग झन जानौं गा ।
सबो काम बेटी कर सकथे,
बात मोर जी मानौ गा ।3।

सिच्छा के अधिकार मिले हे,
होय ज्ञान के उजियारी।
बेटी पढ़ही जिनगी गढ़ही,
इस्कुल भेजव सँगवारी ।4।

तुलसी-चौंरा घर के मैना,
बेटी पुन्नी के चंदा।
उड़नपरी हे बेटी सुघ्घर,
बाँधव झन गोड़ म फंदा ।5।

जग में नाम कमाही बेटी,
जननी दुर्गा अवतारी।
मान बढ़ाही बेटी घर के,
मइके के राजदुलारी ।6।

बेटी पढ़ही ता का मिलही?
अइसन गोठ तुमन छोड़ा।
चुल्हा-चौंका घर के करही,
जुन्ना भरम तुमन तोड़ा ।7।

बेटी बचावा पोठ पढ़ावा,
नावा जुग हा अब आगे।
बेटी सुघ्घर अघवावत हे,
देख सुरुज कस अब भागे ।8।

*श्री जितेंद्र कुमार वर्मा*
------------------------------
*मोर गॉव अब शहर बनगे....*

शहरिया शोर म सिरागे ,
सियन्हिन के ताना |
लहलहावत खेतखार म बनगे,
बड़े-बड़े कारखाना |
नदिया नहर जबर होगे ,डहर बनगे बड़ 
चँवड़ा|
पड़की परेवा फुरफुंदी नँदा, नँदागे 
तितली भँवरा|
सड़क तीर के बर पीपर कटगे, कटगे 
अमली आमा|
सियान के किस्सा नइ सुहावै,सब देखे 
टीवी ड्रामा|
पहट के आहट,अउ संझा के सुकून
आज कहर बनगे...|
मँय हॉसव कि रोवौ,मोर गॉव आज   
शहर बनगे.........|

संगमरमर के मंदिर ह,देवत हवे नेवता|
कहॉ पाबे गली म, बंदन चुपरे देवता?
तरिया ढोड़गा सुन्ना होगे,घर म होगे 
पखाना सावर|
बोंदवा होगे बिन रूख राई के,डंगडंग 
ले गड़गे टावर|
मया के बोली करकस होगे,लइका होगे 
हुशियार|
अत्तिक पढ़ लिख डारे हे,दाई ददा ल 
देहे बिसार|
बिहनिया के ताजा हवा घलो,अब जहर 
बनगे....|
मँय हॉसव कि रोवौ,मोर गॉव आज 
शहर बनगे...|

मंदिर-मस्जिद गुरूद्वारा संग, सबला 
बॉट डरिस|
जंगल अउ रीता भुंइया ल,चुकता चॉट 
डरिस|
छत के घर म, कसके तमासा|
सब कोई छेल्ला ,
नइ करे कोई कखरो आसा|
होरी देवारी तीजा पोरा,घर के डेहरी म 
सिमटागे|
चाहे कोनो परब तिहार होय,सब एक 
बरोबर लागे|
नक्सा खसरा संग आदमी बदलगे,नइहे 
गाना बजाना|
चाकू छुरी बंदूक निकलगे,  सजगे  
मयखाना |
चपेटागे बखरी बियारा,पैडगरी अब 
फोरलेन डहर बनके....|
मै हॉसव कि रोववौ मोर गॉव आज   शहर बनगे.....

    
*कन्हैया साहू 'अमित*
--------------------------
  *धरती महिमा*
          
नँदिया  तरिया  बावली, जिनगी जग रखवार।
माटी  फुतका  संग  मा, धरती हमर अधार।

जल जमीन जंगल जतन, जुग-जुग जय जोहार।
मनमानी अब झन  करव, सुन भुँइयाँ  गोहार।

*चौपाई:-*

पायलगी हे धरती मँइयाँ, अँचरा तोरे पबरित भुँइयाँ।
संझा बिहना माथ नवावँव, जिनगी तोरे संग बितावँव।1।

छाहित ममता छलकै आगर, सिरतों तैं सम्मत सुख सागर।
जीव जगत जन सबो सुहाथे, धरती मँइयाँ मया लुटाथे।2।

फुलुवा फर सब दाना पानी, बेवहार बढ़िया बरदानी।
तभे कहाथे धरती दाई, करते रहिथे सदा भलाई।3।

देथे सबला सुख मा बाँटा, चिरई चिरगुन चाँटी चाँटा।
मनखे बर तो खूब खजाना, इहें बसेरा ठउर ठिकाना।4।

रुख पहाड़ नँदिया अउ जंगल, करथें मिलके जग मा मंगल।
खेत खार पैडगरी परिया, धरती दाई सुख के हरिया।5।

जींयत भर दुनिया ला देथे, बदला मा धरती का लेथे।
धरती दाई हे परहितवा, लगथे बहिनी भाई मितवा।6।

टीला टापू परबत घाटी, धुर्रा रेती गोंटी माटी।
महिमा बड़ धरती महतारी, दूधभात फुलकँसहा थारी।7।

आवव अमित जतन ला करबो, धरती के हम पीरा हरबो।
देख दशा अपने ये रोवय, धरती दाई धीरज खोवय।8।

बरफ करा गरमी मा गिरथे, मानसून अब जुच्छा फिरथे।
छँइहाँ भुँइयाँ ठाड़ सुखावय, बरबादी बन बाढ़ अमावय।9।

मतलबिया मनखे मनगरजी, हाथ जोड़ के हावय अरजी।
धरती ले चल माफी माँगन, खुदे पाँव झन टँगिया मारन।10।

*श्री पोखन लाल जायसवाल*
--------------------------------------
*बाँचे हे अउ का पता, कतका गिनवा साँस।*
                  
बाँचे हे अउ का पता, कतका गिनवा साँस।
टूटै सुतरी-साँस झन, रहि रहि चुभथे फाँस।।

जिनगी के दिन चार ले, जोरे साँसा-तार।
बँधना माया मोह के, खाए हावै खार।

धन-दोगानी जोर के, जाना हे सब छोर।
बनके मितवा बाँट ले, दया-धरम तैं जोर।

ठगनी-माया मोह के, माया अपरम्पार।
माटी-तन माटी मिले, हावै अतके सार।

हावय साँसा के चलत, तोर पुछारी जान।
माटी हर माटी मिले, जगती छोड़ परान।।

दुनिया लागे छोटकुन, जिनगी के दिन चार।
दुनियादारी के इहाँ, झंझट हे भरमार ।।

*काव्या श्रीवास*
--------------------   
       
                 *मजदूर*
                 ---------
           *(जयकारी छंद)*
              
करथवँ मिहनत जाँगर तोड़ । ईटा पथरा गारा जोड़।
देथवँ महल अटारी  तान । पावँव कभू नहीं मँय मान।
कहिथे मोला सब मजदूर । कतका हावँव मँय मजबूर।
लाँघन गुजरे कतको रात । खुश हँव खाके चटनी भात।
जरके करिया होगे चाम । मिलथे कम मिहनत के दाम।
पानी पथरा ले ओगार । रद्दा बनगे देख पहार।
आथँव सबके मँय हा काम । देथँव सबला मँय आराम।
मोरो मिहनत ला पहचान । देवव मनखे मोला मान।

            
*रामकली कारे*
-------------------

                  *दुख पीरा*
                  ------------

पिंजरा के रे व्याकुल मैना,
टुकुर- टुकुर का देखत हस।
नइ खुलय तोर बर मया दुवारी,
घेरी- बेरी का पूछत हस,

कौन? सुनहि तोर के पुकार,
नइ मिलय इहाॅ मया उधार।
ऐ, तो मनखे के जात रे संगी,
देथे ऊँच- नीच अउ आघात।

बुंद- बुंद आँसु ल पीले,
अंतस के अंधियारी म जीले।
दुख- पीरा ल झन बिसराना,
हाॅस ले, गा ले अउ मुस्का ले।

रंग- बिरंगा देख ले दुनियाॅ,
जाड़- घाम तैं सेक ले मुनिया।
सिक्का के दू ठन पहलू हे,
चिट्ट अउ पट्ट के जादू हे।

तोर दशा घलो बदल जाही,
ऐ, हो जाही सब माटी।
आशा धीरज बाँध ले मन म,
जीवन तो हे अभी बाकी।

इक दिन तोर आही रे संगी,
दुख के बादर छॅट जाही रे ।
सुरुज- नरायण उवै के पहिली,
तोरे कपाट खुल जाही रे।

*श्री अश्विनी कोसरे*
-------------------------
                *मँहगाई*
                 ----------
महँगाई हे बाढ़े भारी, पइसा रुपिया गुणकारी|
रोज कमाले बाँचय नाही, तंगाई हर दिन जारी||

लालच राहय रुपिया खातिर, जिनगी भर तरसावत हे|
कमा कमा तन खुवार होगे, ए तो आवत जावत हे||

सबो परे एखर चक्कर मा, करत हवँय संसो भारी|
जोरे ले जखर बन जाथें, धन्ना धनृकेव्यापारी||

बस मा कर लँय  कोनो मनखे, धनदौलत ले लद जाहीं|
देख बने फिर दाना पानी, घर घर खुशहाली पाहीं||

   
*डॉ. अनिल भतपहरी*
-----------------------------
*मंगल पंथी गीत*
-------------------
-
साखी-
सत   फूल धरती     फूलय,
सुरुज     फूलय   अगास ।
कंवल फूल मन सागर फूले,
जिहाँ खेले गुरु घासीदास ।।

तोला नेवता हे आबे गुरु घासीदास
हमर       गांव     म         मंगल हे
आबे        आबे       गुरु घासीदास
जुनवानी       गांव    मं    जयंती हे...

करिया करिया बादर छाए हवय
घपटे            हे         अंधियार
मनखे ल मनखे       मानय नही
घोर                       अत्याचार।
बगरादे बबा सत के परकास...

दुनों आंखी    हवय फेर
होगे         मनखे अंधरा
मोह माया म मगन होके
पूजय         लोहा पथरा
सिरजादे मनखे मन के हिरदे मं धाम...

आगी लगगे चारो    मुड़ा म
जरगे                 ये संसार
आके अमरित चुहा दे बाबा
करदे                 ग उद्धार
विनय करत हवन हमन बारंबार ...

(सरलग)

No comments:

Post a Comment