Friday 14 January 2022

छत्तीसगढ़ी काव्य.. खैरझिटिया-4

*छत्तीसगढ़ी काव्य सृजन मा महिला शक्ति*-

जे राज के आदिकालिन साहित्य के मुहतुर अहिमन रानी गाथा, केवला रानी गाथा, रेवा रानी गाथा, दसमत कयना गाथा आदि विदुषी महिला मन ले होथें, भला वो राज के नारी शक्ति मन काव्य सिरजन मा कइसे पिछवाय रहीं। साहित्य सृजन प्रसव पीड़ा कस होथे, अउ येला नारी शक्ति मन ले जादा भला कोन जान पाही, तभे तो आज नारी शक्ति मन घलो साहित्य सृजन मा अघवा हे। वइसे तो छत्तीसगढ़ी साहित्य के पहली बेर लिखित प्रमाण भक्ति काल मा मिलथे, ये काल मा धनी धरम दास जी मन काव्य सृजन करिन। संग मा उंखर धर्मपत्नी आमीन माता के छत्तीसगढ़ी मा काव्य सृजन के बात घलो सामने आथे। आजादी के पहली छत्तीसगढ़ी के काव्य सृजन मा नारी शक्ति मनके वर्णन नइ मिले, फेर आजादी के बाद छत्तीसगढ़ी साहित्य मा उन मन बढ़ चढ़ के साहित्य सृजन करत दिखथें। लगभग साठ, सत्तर के दशक मा महिला शक्ति मन छत्तीसगढ़ी साहित्य सृजन करे बर लग गे रिहिन।फेर छत्तीसगढ़ राज बने के बाद छत्तीसगढ़ी साहित्य मा नारी शक्ति के योगदान के का कहना। 2000 के बाद के काल ला उड़ान काल बनाये मा नारी शक्ति मनके घलो भरपूर योगदान हे। ये काल मा कवयित्री मन बढ़ चढ़ के छत्तीसगढ़ी भाँखा मा साहित्य सृजन करिन अउ अभो साहित्य सिरजाते हें। सन 1968 मा प्रकाशित छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह "पतरेगी" ला छत्तीसगढ़ के पहली कविता संग्रह अउ ओखर रचयिता कवयित्री डॉ निरुपमा शर्मा ला छत्तीसगढ़ी के पहली महिला कवयित्री के रूप मा माने जाथें। इही समय शकुंतला शर्मा जी मन घलो काव्य सृजन करत रिहिन, उंखर प्रथम कृति "चंदा के छाँव मा ढाई आखर"  प्रकाशित होइस। आजो सरलग छत्तीसगढ़ी भाषा मा अपन मन के उदगार ला डॉ निरुपमा शर्मा,शकुंतला शर्मा के संगे संग डाँ शकुंतला तरार, डॉ अनसुइया अग्रवाल, डॉ सत्यभामा आडिल, सरला शर्मा, डॉ शैल चन्द्रा, सुधा वर्मा,उर्मिला शुक्ला, तुलसीदेवी तिवारी,मृणालिका ओझा, आशा दुबे,दीप देवी दुर्गवी,रंजना शर्मा, डॉ गिरिजा शर्मा, अर्चना पाठक,इंद्रा परमार, संतोष झाँझी,वासंती वर्मा, गीता शर्मा, ज्योति गबेल, सुधा शर्मा,संध्या रानी शुक्ला, चन्द्रावती नागेश्वर, सन्तोषी महंत श्रद्धा, गीता साहू,आशा देशमुख, शोभामोहन श्रीवास्तव, शशि साहू,आशा ध्रुव,संध्या सरगम,आशा दुबे, चित्रा श्रीवास,गीता विश्वकर्मा, सुधा शर्मा,लक्ष्मी करियारे, रश्मि रामेश्वर गुप्ता,नीलम जायसवाल,चन्द्र वैष्णव,गीता देवी हिमधर,योगेश्वरी साहू,आशा भारद्वाज, अनिता सिंह, सुधा देवांगन, आशा मेहर, आशा आजाद, द्रौपती साहू सरसिज, इंद्राणी साहू साँची,सरस्वती चौहान,डाँ मीता अग्रवाल, पद्मा साहू पर्वणी,सुधा झा,उर्मिला देवी उर्मी, अनिता मंदिलवार,प्रभा साहू,पुनीता दरियाना, सुनीता कुर्रे, प्रतिभा प्रधान, चित्ररेखा तिवारी, रामकली कारे,सुजाता शुक्ला,सुमित्रा कामड़िया, केंवरा यदु मीरा, तुलेश्वरी धुरन्धर, शैल शर्मा, प्रिया देवांगन प्रियु, मेनका वर्मा, संगीता वर्मा, भारती राजपूत, निर्मला ब्राम्हणी,द्रौपती साहू, प्रियंका गुप्ता, मधुलिका दुबे,भारती पटेल,ममता राजपूत, सरिता लहरे,अनिता चन्द्राकर, जागृति बाघमार,सुखमोती चौहान,धनेश्वरी सोनी गुल, वसुंधरा पटेल, अन्नापूर्णा पवार,सुष्मा पटेल,हिमकल्याणी सिन्हा, कविता वर्मा,गीता चन्द्राकर, सुचि भुवि,जमुना देवी गढ़ेवाल,शैलेन्द्री परिहार,गीता दुबे आदि अउ कतको कवयित्री मन व्यक्त करत हें। आवन छत्तीसगढ़ी भाषा महतारी ला समर्पित नारी शक्ति मनके मन के उद्गार के एक बानगी देखिन-

*प्राकृतिक छटा मन मा नव उमंग भर देथे, उही ला डॉ निरुपमा शर्मा जी कहिथें*

मन मउरे मउहा महक मारे ना।
सुरता के हिरना डहक मारे राजा महक मारे ना
दोनु आंखी मा तोला मैं काजर बनाएवं
नदिल गेंदवा मा रे पिरोहिल बैठारेंव ।
एक एक बोली मा चहक मारेव मैना ……..
लाली चूरी टिकली रे लाले हे महाउर
मोहनी आंखी के हे कटारी आमा मउर
हुलकथे जीउ अधिआये डारे मैना......

*सरसी छन्द मा,गोस्वामी तुलसीदास जी ला भाव पुष्प अर्पित करत, शकुन्तला शर्मा जी लिखथें*-

आशा के प्रतीक ए तुलसी धरिस एक अभियान
राम - नाव के पाइस डोगा शकुन देख अउ जान ।
रामचरित आधार बनिस हे जाग शकुन तै आज
पय-डगरी जब मिल जाथे तव सुफल होय सब काज ।
जैसे सोच समझ फल तैसे चिंतन लै आकार
शुभ चिंतन के फल भी शुभ हे देख शकुन हर बार ।
तुलसी राज-धर्म समझाइस शकुन तोर  अधिकार
धर्म - अर्थ चारों ला पा ले भवसागर कर पार ।
मनखे जनम बहुत दुर्लभ हे शकुन बात ला मान
धर्म गली मा चल तुलसी कस तै मत बन अनजान ।
तुलसी - बबा बताइस धरसा शकुन तहू पहिचान
अब दिन बूडत हावै नोनी झट के तंबू तान ।

*शिक्षा के अलख जगावत शकुन्तला तरार जी लिखथें*-

पढ़े बर चल दीदी
पढ़े बर चल बहिनी
पढ़े बर चल वो दाई
 भाग ल हम अपन चमकाबो
पढ़े बर चल वो दीदी
आवो चल कमला तयं
अउ चल बिमला तयं रे...
 मेटाबो अगियानता के अंधियारा ला
 शिक्षा के जोत बारबो रे
नान्हे-नान्हे लईका चलव
बूढ़ी दाई काकी चलव रे...
नईं हम रहिबोन अब अनपढ़ वो
बिद्या के गंगा लानबो रे
बनी भूती हम जाबोन
 ठिहा कमाये जाबोन...
दिन भर मिहनत ला हम करबोन
संझा पढ़े जाबों रे...
अब कोनो नई ठगही
अंगठा हम नई चेपावन रे...
रद्दा खुदे हम अपन गढ़ लेबोन
नवा निरमान करबो रे...

*कोरोनाकाल मा जनजागरण करत आशा देखमुख जी के एक समसामयिक शंकर छंद*

आये हावय कोरोना हा, लोगन बड़ डराय।
फइलत हवय महामारी कस,कोन कहाँ लुकाय।
संसो मा सरकार घलो हे,देत हें संदेश।
जनता ला मिलके लड़ना हे,भागय सबो क्लेश।
सावचेत हें देश प्रशासन ,कोनो झन डराव।
जागरूकता फ़इलावव सब ,सुरक्षा अपनाव।
साफ सफाई बहुत जरूरी,धोवत रहव हाथ।
मेल जोल से दूर रहव सब, देश हावय साथ।।
रूप धरे ईश्वर हा देखव,डॉक्टर वो कहाय।
कतको मन के प्राण ल देखव,सेवा कर बचाय।
जनता कर्फ्यू लगत हवय जी,लोग मानौ बात।
मर जाये दुष्टिन कोरोना ,मारव अबड़ लात।

*पतझड़ जे बाद बहार आथे, दुख के बाद सुख आथे, इही बात ला, घनाक्षरी मा बाँधत शोभामोहन श्रीवास्तव जी लिखथें*-

पाना पतझर मा झरे,आवय तभे बहार ।
दुख पाछू सुख हे लगे,लहुटे पहुटे बार ।।
लहुटे पहुटे बार चलत नर ,लाख जतन कर ।
सुख के चक्कर,दुखद गली धर,कतको मर मर।
छोड़ गाँव घर,कहूँ मेर टर,नइ छोंड़य डर ।
बेरा हे खर,बोलत झरझर, पाना पतझर ।।

*बरवै छंद मा, बढ़े मँहगाई ला देखत शशि साहू जी लिखथें*-

मुँह फारे मँहगाई, सुरसा ताय।
जतका होय कमाई,मुँह मा जाय।
सबो जिनिस हर मँहगी,दुरिहा होय।
काला खाँव बचावँव,जिनगी रोय।
बाई मारय ताना, नइ तो भाय ।
घानी कस मँय बइला रथो फँदाय।
चुहके आमा दिखथे काया मोर।
मँहगाई के आघू, खडे़ धपोर।
अजगर कस फुफकारे,मारय पेट।
सबो जिनिस के बाढे़ हावय रेट।
मँहगाई हर मारे, रोजे लात।
पीठ पेट हर सँघरा रोवय रात।

*अमृत ध्वनि छंदछ्न्द मा पद्मा साहू पर्वणी राखी तिहार बर लिखथें*-

राखी के पबरित परब,  पुन्नी सावन मास।
भाई बहिनी के परब, दया मया के आस ।।
दया मया के, आस जगाथे, राखी धागा ।
बाँध कलाई, प्रीत बढ़ाथे, तब ये तागा।
माथे चंदन, तिलक लगाथे, दुनिया साखी।
बहिनी बाँधय, भाई ला जी, सुग्घर राखी।।

*वीर शहीद मनके सुरता करत सार छ्न्द मा चित्रा श्रीवास जी लिखथें*-

सुरता अब तुम करलव संगी,पावन दिन हा आगे ।
मिले रहिस आजादी हमला ,हमर भाग हा जागे।।
हाँसत झूलत फाँसी चढ़गे, खुदीराम बलिदानी ।
तिलक भगत अउ लक्ष्मी बाई,देइन हे कुर्बानी।।
बेटा भारत माता के सब ,हावन भाई भाई।
मिलजुल रहिबो जम्मो मनखे, होवन नही लड़ाई।।

*रक्तदान ला महादान कहिथें, उही ला बतावत रामकली कारे जी लिखथें*-

जग मा बढ़ के हे सुनौ, रक्त दान के दान।
बूॅद - बूॅद दे रक्त ले, बाॅचय मनखे प्रान।।
बाॅचय मनखे, प्रान रक्त दे, जस ला पावव।
नेक करम के, काम आज गा, कर देखावव।।
कली कहे सुन, मानवता भर, अपनो रग मा। 
सबो दान ले, रक्त दान हा, बढ़ के जग मा।।

*मद्यपान निशेष के संदेश देवत सुधा शर्मा जी कज्जल छंद मा लिखथें*-

करत हवे जिनगी उजाड़।
टूटत सबो घर परिवार ।।
बाढ़त नशा अतियाचार।  
हे समात मन मा विकार।।
गारी दाई बाप देत।  
बोले के गा नहीं चेत।।
कोनो देवत गला रेत।
नशा सेती सबोअचेत।।
छोड़व गा सब नशा पान।
एमा ककरो नहीं मान।।
डहर बने रेंगव मितान।
बनके सबो रहव सुजान।। 
जाँगर टूटत करे काम।
दारू भठ्ठी गये शाम।।
दिए कमाय पइसा फेंक। 
लाँघन लइका घर म देख।।

*कुंडलियाँ छ्न्द मा गुरु वंदना करत नीलम जायसवाल जी लिखथें*-

गुरु के चरण पखार लव, मन ले देवव मान।
गुरु के किरपा ले बनय, मूरख हा गुणवान।।
मूरख हा गुणवान, चतुर की निरमल बनथे।
जेखर पर गुरु हाथ, उही आकाश म तनथे।।
जइसे गरमी घाम, छाँव निक लागे तरु के।
वइसे शीतल होय, बचन हा हरदम गुरु के।

*नवा शिक्षा के लाभ बतावत तातन्क छ्न्द मा आशा आजाद जी लिखथें*-

शिक्षा के अनमोल रतन ले,करलव मन उजियारा जी।
हर विपदा  मा पार  लगाही,मिट जाही अँधियारा जी।।
जम्मो कारज  बन जाथे जी,तुरते हल मिल जाथे जी।
जेखर मन मा ज्ञान दीप हे,जिनगी भर सुख पाथे जी।।
वैज्ञानिक बन जाथे कतको,खोज करें आनी बानी।
जब मशीन नावा खोजे ता,तब कहलाथे ओ ज्ञानी।।
शिक्षा के तकनीक देखले,नव विधि आज पढ़ाये गा।
प्रोजेक्टर  मा  चित्र  देख ले,सबला  देख  बताये गा।।
कम्यूटर  मा  सबो  आँकड़ा,राख  सुरक्षा  दे जानौ।
जनम मरन के कागद लेले,सुग्घर सुविधा ला मानौ।।

*करिया बादर देख पुष्पलता भार्गव लिखथें*-

जा रे, जा रे,करिया बादर
      जा के मुहूँ लुका  रे ...
संगी के सुरता आथे
        करौं में ह का रे...
तैं आथस त मन मा उठथे
     पीरा बिजुरी जइसे ...
का हो जाथे तन अऊ मन ला
     काहव में ह कइसे...
पानी मा तन ह जरगे,उठै गुंगुवा रे
जा रे,जा रे....
वो निर्मोही ,वो परदेसी
    आए नहीं अब ले....
रद्दा देखत पखरा बनगे
    आंखी मोरे कबले...
का जादू करके गे हे,वो टोनहा रे

*चेत धरे बर कहत द्रोपदी साहू सरसिज लिखथें*-

द्रोपती साहू "सरसिज"महासमुन्द, छत्तीसगढ़

का गरज परे हे दूसर के,
      तिहीं तोर रद्दा ला चतवार।
चर देही हरहा मन खेती,
      तिहीं अपन धनहा रखवार।।
पर भरोसा रहिबे झन तैं ,
      जिनगी अपन तँय संवार।
चेत लगाके बुता करबे,
      होबे झन गंजहा मतवार।।
चील जइसन नेत जमाए,
        बइठे जइसे हे हितवार।
केकरा कस रेंगे दुनो कोति,
      वो मन नो होय तोर लगवार।।

*बसंत पंचमी मा माँ वीवापानी ला भाव पुष्प अर्पित करत गायत्री श्रीवास जी लिखथें*-

सबके मन ला भागे संगी,सुग्घर मौसम आगे  |
ये बसंत पंचमी सुहावन,मन मा आस समागे|
अवतार लिये माँ हंसवाहिनी,वाणी के देवइया हा |
श्वेत वस्त्र ला धारन करथे,मातु शारदा मइया हा ||
मिल-जुल के सब पूजा करबो,हमर भाग हा जागे

*जाड़ा के आरो देवत कावेरी साहू जी लिखथें*-

जाड़ के महिना आगे दाई,जुड़हा हवा चलत हे।
सर-सर धुँकी चलत हे,हाथ अउ गोड़ कँपत हे।।
दाँत हा अइसे कटरत हे,जइसे चना चबावत हे
जूड़ चीज तो छुवन नइ भावय,ताते तात खवाथे।
बासी ला तो दुरिहा रखदे,भाते भात सुहाथे।।
पुरवइया हा मारत रहिथे,करा बरोबर जनावत हे।
गली गली मा भुर्री बरथे ,लइका सब सकलाथे।
कथरी हा तो छोड़न न भाये,जाड़ा गजब सताथे।।
साल स्वेटर छुंटय नहीं अब,सुरुज घलो लजावत हे।

*मतगयंद सवैया मा सुधा देवांगन जी लिखथें*-

आगय पावन सावन मास ह,दूध दही म नहावय भोले।
जाप करें उपवास करें, सबके जिबिया शिवशंकर बोले।
देय  बने वरदान ल शंकर, दुःख हरे जिनगी नइ डोले
पीर सबो जन के हरके, शिव नाम दबे सुख भाग ल खोले।

    
*उपसंहार*-
छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य मा सबले जादा यदि कोनो विधा मा लिखे गेहे ता वो काव्य विधा आय। कवि मनके संख्या घलो दिन ब दिन बाढ़त दिखत हे। आज छत्तीसगढ़ मा अतेक कवि हे, जिंखर रचना अउ नाम के जिक्र कर पाना मुश्किल हे, तभो लेख मा कुछ कवि मनके नाम संघेरे के प्रयास करे हँव, उंखर नाम ला सोसल मीडिया या अन्य उपब्धत पुस्तक या फेर  कोनो पत्र पत्रिका पेज मा खोज करके,पूरा जानकारी लिये जा सकथे। उदाहरण स्वरूप दिये गय कुछ पंक्ति वो कवि अउ वो काल ला पूरा के पूरा बयां करे मा घलो असक्षम हे, तभो एक बागनी देय के प्रयास होय हे। आधुनिक काल के ज्यादातर कवि मन सोशलमीडिया मा जुड़े हे, उंखर रचना मन घलो फेसबुक, वॉट्सप मा दिख जथे, उंखर मनके चाहे तो नाम खोज के पढ़े जा सकत हे, बस अतेक नाम देय के अतके कारण हे। संगे संग एक कारण यहू हे कि वो कवि मन कोन काल मा रचना लिखिन या लिखत हे। काल विशेष मा संरेखाय कवि मनके नाम घलो आघु पाछु हो सकत हे, जइसे आजादी के
पहली के कवि मन आजादी के बाद घलो लिखिन, अउ आजादी के बाद के कवि मन छत्तीसगढ़ राज निर्माण के बाद लिखत रिहिन अउ कतको लिखते हें।
पर मुख्य बात तो आधुनिक काव्य के दशा दिशा ऊपर बात करना रिहिस, आलेख मा  सँरेखाय काव्य पंक्ति एक उदाहरण मात्र हे, जे वो समय ला ज्यादातर परिभाषित करत दिखिन, चाहे बात आदि काल के होय, या आधुनिक काल के। रचना के विषय वस्तु ही वो समय ला देखाथे, आधुनिक काल के समसायिक रचना जइसे कोरोना महामारी, महँगाई, बेमौसम बारिश, चन्द्रयान, शौचालय, चुनाव,धान खरीदी, मोबाइल, प्लास्टिक कचरा,नवा नवा यन्त्र औजार आदि समाज मा चलत वस्तु स्थिति के परिचय देवत दिखथे। नदी, पहाड़, धरती, पाताल, राम कृष्ण , दया मया मीत आदि सब,  आदि काल मा घलो रिहिस अउ आजो यथावत हे, ता स्वभाविक हे आजो येमा रचना होही अउ होवत घलो हे। फेर वो समय मोबाइल, शौचालय, चन्द्रयान आदि कई चीज नइ रिहिस ता नइ होइस। केहे के मतलब कवि के लेखन मा धरातल मा घटत विषय वस्तु के छाप रहिथे। आज आधुनिक काल के रचना ये काल ला दर्पण कस देखाय, एखर बर कवि मन ला समाज मा चलत चीज ला विषय वस्तु बनाके लिखना चाही, ताकि अवइया पीढी मन ये युग ला पढ़ के देख सके। 2000 के बाद के काल ला उड़ान काल केहे के मोर आशय ये हे, कि ये काल के कुछ दशक बाद कवि मनके संख्या अउ काव्य लेखन मा गजब के बढ़ोतरी होइस हे। *"आधुनिक युग के साहित्य मा पंख लग गेहे"* भाषाविद मन आधुनिक काल मा साहित्य के बढ़वार देख  अइसन कहत नइ थके। फेर पंख हे ता उड़ान तो दिखबे करही। आज साहित्य मा उड़ान देखते बनत हे। आज हजारों कवि कवयित्री मन छत्तीसगढ़ी काव्य के सृजन मा सरलग लगे हें।  छ्न्द के छ के आय के बाद  सन 2016 मा उड़ान भरत नव कलमकार मन ला *छ्न्द के छ नामक* एक माँजा डोर मिलिस, जे उन मन ला साहित्य के जमीन मा बाँधे रखिस, जेखर परिणाम स्वरूप आज छत्तीसगढ़ी काव्य साहित्य महतारी भाषा के अन्तस् मा बंधाये ऊँच आगास मा उड़त दिखत हे। यदि ये आंदोलन नइ रहितिस तभो ये काल उड़ान काल हो जतिस, काबर कि नव कलमकार मा साहित्य ला उड़ाय छोड़ खुदे मन के लिखत उड़ित रिहिन। आजो हवाई यात्रा सबले महँगा हे, फेर ओखर उड़े अउ उतरे के ठौर ठिकाना,तिथि बार हे तब।

जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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