Friday 14 January 2022

छत्तीसगढ़ी काव्य.. खैरझिटिया-2

*(स)छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रगतिकाल(1950 ले 2000)*

देश के आजादी के बाद अंग्रेज मनके अत्याचार ले आहत भारत वर्ष के नवनिर्माण खातिर कलम के सिपाही मन अपन लेखनी के माध्यम ले देश राज के नवनिर्माण मा लग गिन। ये नवनिर्माण के समय मा कवि मन नवगीत, कविता रच के जनमानस ला, एक होके चले बर संदेश दिन। यहू काल ला 1950 ले 1975 अउ 1975 ले 2000 तक के काल खंड मा विभाजित करे जा सकत हे, फेर रचनाधर्मिता, काव्य कलेवर अउ लगभग उही कवि मनके उपस्थिति विभाजन काल मा सटीक नइ बइठे, रचना मा समसामयिकता समय अनुसार जरूर दिखथे। ये काल मा छत्तीसगढ़ी भाषा सबे विधा मा खूब फलिन फुलिन। सबे बंधना ले मुक्त होके ये दौर मा कविता ऊँच आगास मा स्वच्छंद उड़ावत दिखिस। कविता मा नवा नवा प्रयोग अउ काव्य के विविध विधा घलो देखे बर मिलिस।
ये समय कवि हरिठाकुर, श्यामलाल चतुर्वेदी, मुकुटधर पांडेय,बद्री विशाल परमानंद, नरेन्द्रदेव वर्मा,हेमनाथ यदु, रविशंकर शुक्ल,भगवती सेन, नारायण लाल परमार, डॉ विमल पाठक, लाला जगदलपुरी, बृजलाल शुक्ल, संत कवि पवन दीवान,दानेश्वर शर्मा, मदनलाल चतुर्वेदी, शेषनाथ शर्मा शील, विधाभूषण मिश्र, राम कैलाश तिवारी, हेमन्त नायडू राजदीप, शेख हुसैन,हेमनाथ वर्मा विकल,उधोराम झखमार, मेहत्तर राम साहू, विसम्भर यादव, माखन लाल तम्बोली, मुरली चन्द्राकर, मनीलाल कटकवार, अनन्त प्रसाद पांडे, अमृत लाल दुबे, कृष्ण कुमार शर्मा, कांति जैन, डॉ बलदेव, देवी प्रसाद वर्मा, नरेंद्र कौशिक, अमसेनवी, बुधराम यादव, मेदनी पांडे, मंगत रविन्द्र, हरिहर वैष्णव, कृष्ण रंजन, किसान दीवान, राजेन्द्र सोनी,उदयसिंह चौहान, आनंद तिवारी, ईश्वर शरण पांडेय, चेतन आर्य,ठाकुर जेवन सिंह,गोरे लाल चन्देल, प्रेम सायमन, भगतसिंह सोनी, लखनलाल गुप्त, मकसूदन साहू, चेतन आर्य, ललित मोहन श्रीवास्तव, बाबूलाल सीरिया, नन्दकिशोर तिवारी, पीसी लाल यादव,विद्याभूषण मिश्र, मुकुन्द कौशल,गुलशेर अहमद खां, अब्दुल लतीफ घोंघी, विकल, मन्नीलाल कटकवार, रघुवर अग्रवाल पथिक, लक्ष्मण मस्तूरिहा, डॉ. सुरेश तिवारी, ललित मोहन श्रीवास्तव, डॉ॰ पालेश्वर शर्मा, राम कुमार वर्मा, निरंजन लाल गुप्ता, बाबूलाल सीरिया, नंदकिशोर तिवारी, प्रभंजन शास्त्री, रामकैलाश तिवारी, एमन दास मानिकपुरी,डॉ॰ हीरालाल शुक्ल, डॉ॰ बलदेव, डॉ॰ मन्नूलाल यदु, डॉ॰ बिहारीलाल साहू, डॉ॰ चितरंजन कर, डॉ॰ सुधीर शर्मा, डॉ॰ व्यासनारायण दुबे, डॉ॰ केशरीलाल वर्मा, रामेश्वर शर्मा, रामेश्वर वैष्णव, गणेश सोनी, मदन लाल चतुर्वेदी, बुलनदास कुर्रे,गयारामसाहू,अलेखचन्द क्लान्त, गजानंद प्रसाद देवांगन, सुशील भोले,उमेश अग्रवाल,  डॉजे आर सोनी,भागवत कश्यप, लक्ष्मण मस्तूरिहा, परमानन्द कठोलिया, दुर्गा प्रसाद पार्कर, सीताराम श्याम, प्रदीप कुमार दीप, पुरषोतम अनाशक्त------
आदि के आलावा अउ कतको कलम के सिपाही मन छत्तीसगढ़ी भाषा मा उत्कृष्ट काव्य सृजन करिन अउ करत हे, ये समय के साहित्य मा सबे रस रंग के संगे संग सबे कलेवर के रचना खोजे जा सकत हे।

*नवा बिहान के आरो मा विद्याभूषणमिश्र जी लिखथें*

आही किरन सकेले मोती, सुरूज़ चढ़ही छान्ही मा।
घाट-घठौधा लिखै प्रभाती, देखा फरियर पानी मा।
उषा सुंदरी हर अकास मा
कुहकू ला बगराये हे।
दुख के अंधियारी ला पी के
सुख-अंजोर ला पाये हे ।
का अंतर हातै चंदा मा, अउ बीही के चानी मा।
आही किरन सकेले मोती, सुरूज़ चढ़ही छान्ही मा।

*हँसी खुशी मंगल कामना मया मीत के गीत धरे हरि ठाकुर जी लिखथें*

आज अध-रतिहा मोर फूल बगिया मा
आज अध-रतिहा हो
चन्दा के डोली मा तोला संग लेगिहव
बादर के सुग्घर चुनरिया मा रानी
आज अध-रतिहा हो
आज अध-रतिहा मोर फूल बगिया मा
आज अध-रतिहा हो

*सुराज मिले के बाद घलो आम जन के स्थिति बने नइ रिहिस, उही ला इंगित करत भगवती सेन जी लिखथें*-

अपन देश के अजब सुराज
भूखन लाघंन कतकी आज
मुरवा खातिर भरे अनाज
कटगे नाक, बेचागे लाज
कंगाली बाढ़त हे आज
बइठांगुर बर खीर सोंहारी
खरतरिहा नइ पावै मान,जै गगांन'

*किसान मनके खेती खार ला व्यपारी उधोगपति मनके हाथ बेंचावत, अउ कारखाना के नुकसान बतावत हरि ठाकुर जी कइथे*-

सबे खेत ला बना दिन खदान
किसान अब का करही
कहाँ बोही काहां लूही धान
किसान अब का करही
काली तक मालिक वो रहिस मसहूर
बनके वो बैठे हे दिखे मजदूर।
लागा बोड़ी में बुड़गे किसान –
उछरत हे चिमनी ह धुंगिया अपार
चुचवावत हे पूंजीवाला के लार
एती टी बी म निकरत हे प्रान--

*सर्वहारा वर्ग के प्रतिनिधित्व करत, उन ला जगावत भगवती लाल सेन जी के पंक्ति-*

सिखाये बर नइ लागय।
गरु गाय ला।
बैरी ला हुमेले बर।।

अपने मूड़ पेल गोठ ला, अब झन तानव जी।
चेथी के आँखी ला, आघु मा लानव जी।।

आजादी के बाद छत्तीसगढ़ ला राज बनाये के सुर घलो कवि मनके कविता मा दिखिन- माखनलाल तम्बोली जी लिखथे--*

नया लहू के मांग इही हे,
छतीसगढ़ ल राज बनाओ ।
बाहिर ले आए हरहा मन,
कतेक चरिन छत्तीसगढ़ ल ।
बाहिर ले आये रस्हा मन,
चुहक डरिन छतीसगढ़ ल ।
शोमन के फादा ल टोर के,
छतीसगढ़ ल चलो बचाओ ।

*छत्तीसगढ़ मा उजास के आरो पावत लूथर मसीह जी लिखथें*

चारों मुड़ा अंधियार,अउ सन्नाटा मं
सुते रहिस छत्तीसगढ़ माई पिल्ला
दिया मं अभी तेल हावय
धीरे धीरे सूकवा उवत हे
पहाटिया के आरो होगे हे
ओखर लउठी के ठक ठक
बिहान होए के संदेशा
छत्तीसगढ़ के आंखी उघरत हे
अपन अधिकार बार लड़त हे
छत्तीसगढ़ मंअब अंजोर होही
अब अंजोर होही ॥

*छत्तीसगढ़ी बोली के गुणगान मा गजानन्द देवांगन जी लिखथें*

हमर बोली छतीसगढ़ी
जइसे सोन्ना-चांदी के मिंझरा-सुघ्घर लरी।

गोठ कतेक गुरतुर हे
ये ला जानथे परदेशी।
ये बोली कस बोली नइये
मान गेहें विदेशी॥
गोठियाय मा त लागधेच
सुने मा घला सुहाथे –देवरिया फुलझड़ी

*मजदूर,किसान बनिहार, दबे कुचले मनके पीरा ला घलो कवि मन अपन कलम मा उँकेरे हे। सुशील भोले जी के काव्य मा रेजा मन के कलपना देख*

चौड़ी आए हौं जांगर बेचे बार, मैं बनिहारिन रेजा गा
लेजा बाबू लेजा गा, मैं बनिहारिन रेजा गा...
सूत उठाके बड़े बिहन्वे काम बुता निपटाए हौं
मोर जोड़ी ल बासी खवाके रिकसा म पठोए हौं
दूध पियत बेटा ल फेर छोड़ाए हौं करेजा गा
लेजा बाबू लेजा गा, मैं बनिहारिन रेजा गा॥

*हेमनाथ यदु जी समाज मा छाये कलह क्लेश ला देखत लिखथें*

भाई भाई म मचे लड़ाई, पांव परत दूसर के हन
फ़ूल के संग मां कांटा उपजे, अइसन तनगे हावय मन
धिरजा चिटको मन म नइये, ओतहा भइगे जांगर हे।

*लाला जगदलपुरी जी घलो भीतरी कलह क्लेश ला उजागर करत लिखथें*

गाँव-गाँव म गाँव गवाँ गे
खोजत-खोजत पाँव गवाँ गे।
अइसन लहँकिस घाम भितरहा
छाँव-छाँव म छाँव गवाँ गे।
अइसन चाल चलिस सकुनी हर
धरमराज के दाँव गवाँ गे।
झोप-झोप म झोप बाढ़ गे
कुरिया-कुरिया ठाँव गवाँ गे।
जब ले मूड़ चढ़े अगास हे
माँ भुइयाँ के नाँव गवाँ गे।

*गाड़ी घोड़ा ला संघेरत चितरंजन कर जी लिखथें*

घुंच-घुंच गा गाड़ीवाला, मोटरकार आत हे
एती-ओती झन देख तें, इही डाहार आत हे
तोर वर नोहे ए डामर सड़क हा
तोर वर नोहे गा तड़क-भड़क हा
तोर गाड़ी ला खोंचका-डिपरा मेड-पार भाथे
तोर बइला मन के दिल हे दिमाग हे
कार बपरी के अइसन कहां भाग हे
ओला नइ पिराय कभु जस तोला पिराथे

*लक्ष्मण मस्तुरिया जी गिरे थके के सहारा बनत कहिथे*

मोर संग चलवरे मोर संग चलवरे
वो गिरे थके हपटे मन,अउ परे डरे मनखे मन
मोर संग चलव रे ऽऽमोर सगं चलव गा ऽऽ।
अमरइया कस जुड़ छांव में,मोर संग बैठ जुड़ालव
पानी पिलव मैं सागर अंव,दुख पीड़ा बिसरालव
नवा जोंत लव, नवा गांव बर,रस्ता नव गढ़व रे।
मैं लहरि अंव, मोर लहर मां
फरव फूलव हरियावो,महानदी मैं अरपा पैरी,
तन मन धो हरियालो,कहां जाहू बड़ दूर हे गंगा
पापी इंहे तरव रे,मोर संग चलव रे ऽऽ

*समाज मा व्याप्त निर्ममता ऊपर नारायण लाल परमार जी लिखथें*-

आंखी के पानी मरगे
एमा का अचरिज हे भइया
जेश्वर नइये कन्हिया
हर गम्मत मां देख उही ला
सत्ती उपर बजनिया
आंखी के पानी मरगे हे
अउ इमान हे खोदा
मइनखे होगे आज चुमुक ले
बिन पेंदी के लोटा।

*नवा राज के सपना ला साकार होवत बेरा, जेन स्थिति देखे बर  मिलिस वोला शब्द देवत मस्तूरिहा जी लिखथें*-

नवा राज के सपना, आंखी म आगे
गांव-गांव के जमीन बेचाथे
कहां-कहां के मनखे आके
उद्योग कारखाना अउ जंगल लगाथें
हमर गांव के मनखे पता नहीं कहां, चिरई कस
उड़िया जाथें, कतको रायपुर राजधानी म
रिकसा जोंतत हें किसान मजदूर बनिहार होगे
गांव के गौटिया नंदागे,
नवा कारखाना वाले, जमींदार आगे।

*आजादी जे बाद के हाल ला देखावत मस्तूरिहा जी लिखथें*-
सारी जिनगी आंदोलन हड़ताल हे
आज हमर देस के ए हाल हे

छाती के पीरा बने बाढ़े आतंकवाद
भ्रष्टाचार-घोटाला हे जिनगी म बजरघात
कमर टोर महंगाई अतिया अन संभार
नेता-साहेब मगन होके भासन बरसात
ओढ़े कोलिहा मन बधवा के खाल हे

हमर देस हमर भुंई हमरे सूराज हे
जिनगी गुलाम कईसे कोन करत राज हे
दलबल के ज़ोर नेता ऊपर ले आत हे
भूंई धारी नेता सबों मूड़ी डोलात हे
देस गरीब होगे नेता दलाल हे

*देश के दशा दिशा ला देखत जीवनलाल यदु जी लिखथें*

रकसा मन दिन-दिन बाढ़त हे, सतवंता मन सत छाड़त हें
काटे कोन कलेस ला? का हो गे हे मितान मोर देस ला?
गोल्लर मन के झगरा मं ख़ुरखुंद होवत हे बारी,
चोर हवयं रखवार, त बारी के कइसे रखवारी,
जब ले गिधवा-पिलवा के जामे हे पंखी डेना,
तब ले सत्ता के घर मं बइठे हे वन लमसेना,

*छत्तीसगढ़ राज के संगे संग राजभाषा बर घलो कवि मन कलम चलाइन- छत्तीसगढ़ी भाषा के बड़ाई मा बुधराम यादव जी लिखथें*

तोला राज मकुट पहिराबो ओ मोर छत्तीसगढ़ के भाषा
तोला महरानी कहवाबो ओ मोर छत्तीसगढ़ के भाषा
तोर आखर में अलख जगाथे भिलई आनी बानी
देस बिदेस में तोला पियाथे घाट-घाट के पानी
तोर सेवा बर कई झन ऐसन धरे हवंय बनबासा
ओ मोर छत्तीसगढ़ के भाषा….

*मंहगाई मा किसान मजदूर मनके  पीरा- ,बद्रीविशाल परमानंद जी के काव्य मा*-

खोजत खोजत पांव पिरोगे
नइ मिलै बुता काम
एक ठिन फरहर, दू ठिन लाघन
कटत हे दिन रात
भूक के मारे रोवत-रोवत
लइका सुतगे ना।।
ये मंहगाई के मारे गुलैची
कम्भर टूटगे ना।।

*जीवन दर्शन करावत नरेंद्र देव वर्मा जी लिखथें*

दुनिया अठावरी बजार रे, उसल जाही
दुनिया हर कागद के पहार रे, उफल जाही।।
अइसन लागय हाट इहां के कंछू कहे नहि जावय
आंखी मा तो झूलत रहिथे काहीं हाथ न आवय
दुनिया हर रेती के महाल रे ओदर जाही।
दुनिया अठवारी बजार रे उलस जाही।

*मजदूर बनिहार मनके मन ला पढ़के हेमनाथ यदु जी कहिथें*

सुनव मोर बोली मा संगी
कोन बनिहार कहाथय
कारखाना लोहा के बनावय
सुध्धर सुध्धर महल उठावय
छितका कुरिया मा रहि रहिके,
दिन ला जऊन पहाथय
सुनव मोर बोली मा संगी
कोन बनिहार कहाथय

*किसान मजदूर मनके असल हालत ला देख तुतारी मारत रघुवीर अग्रवाल पथिक जी कइथे*

ये अजब तमाशा, सूरज आज मांगय अंजोर
गंगा हर मराय पियास अउर मांगै पानी ।
या मांगै कहूँ उधार पाँच रूपिया कुबेर
रोटी बर हाथ पसारै, कर्ण सरिख दानी ।1।
बस उही किसम जब जेला कथै अन्न दाता
जो मन चारा दे, पेट जगत के भरत हवै ।
तुम वो किसान के घर दुवार ल देखौ तो
वो बपुरा मन दाना दाना बर मरत हवै ।2।

*गाँव गँवई मा जागरूकता के बिगुल बाजत देख,चेतन भारती जी लिखथें*

निच्चट परबुधिया झन जानव,
गवई-गांव अब जागत हे।
कुदारी बेंठ म उचका के कुदाही,
छाये उसनिंदा अब भागत हे।।
जांगर टोरे म बोहाथे पसीना,
जाके भुइयां तब हरियाथे
चटके पेट जब खावा बनथे,
चिरहा पटका लाज बचाथे ।।
स्वारथ ल चपके पंवरी म,
ढेलवानी रचत, करनी तोर जानत हे ।
मोर गंवई गांव...

*खेती किसानी अउ गांव गँवई के चित्रण करत डॉ बलदेव जी लिखथें*

लगत असाढ़ के संझाकुन
घन-घटा उठिस उमड़िस घुमड़िस घहराइस
एक सरवर पानी बरस गइस
मोती कस नुवा-नुवा
नान्हे-नान्हे जलकन उज्जर
सूंढ़ उठा सुरकै-पुरकै
सींचै छिड़कै छर छर छर
पाटी ल धुन हर चरत हे, खोलत हे
घुप अंधियारी हर दांत ल कटरत हे
मुड़का म माथा ल भंइसा हर ठेंसत हे
मन्से के ऊपर घुना हर गिरत हे झरत हे

*आसा विश्वास के दीया बारत मुंकुंद कौशल जी लिखथें*

आंसू झन टपकावे
सुरता के अंचरा मा
तुलसी के चौंरा मा
एक दिया घर देवे।
मोर लहूट आवट ले
सगुना संग गा लेवे
रहिबे झन लांघन तै
नून भात खा लेव

*जिनगी के बिरबिट अँधियारी रात मा अँजोर के आस जगावत पी सी लाल यादव जी लिखथें*-

चंदा चम-चम चमके, चंदेनी संग अगास म I
जिनगी जस बिरबिट रतिहा, पहावे तोर आस म II
देखाये के होतीस त,
करेजा चान देखातेंव I
पीरा के मोट रा बांध,
तोर हाथ म धारतेंव II
डोमी कस गुंडरी मारे, पीरा बसे हे संस म I
जिनगी जस बिरबिट रतिहा पहावे तोर आस म II

*रामेश्वर वैष्णव जी के रचना 94 के पूरा, पूरा के हाल ला पूरा बयां कर देवत हे*

गंवागे गांव, परान, मकान पूरा मं एंसो
बोहागे धारोधार किसान पूरा मं एसो
सुरजिनहा होईस वरसा त पंदरा दिन के झक्खर
जीव अकबकागे सब्बो के कहे लंगि अब वसकर
भुलागेंन काला काला कथें विहान पूरा मं एसों...

पैरी-सोंढुर महनदी, हसदों अरपा सिवनाथ
खारुन इंद्रावती-मांद, वनगे सव काले के हाथ
लहूट गे जीवलेवा कोल्हान पूरा मं एसों ....

वादर फाटिस, जइसे कंहू समुंदर खपलागे
रातो रात इलाका ह पानी मं ढकलागे
परे सरगे सच विजहा धान पूरा मं एसों..

*जिनगी जिये के मूल मंत्र देवत दानेश्वर शर्मा जी लिखथें*

डोंगरी साहीं औंटियावव तुम, नांदिया जस लहराव
ये जिनगी ला जीए खातिर फूल सहीं मुस्कावव

निरमल झरना झरथय झरझर परवत अउ बन मा
रिगबिग बोथय गोंदाबारी कातिक अघ्घन मा
दियना साहीं बरव झमाझम, कुवाँ सहीं गहिरावव
ये जिनगी ला जीए खातिर फूल सहीं मुस्कावव

*छत्तीसगढ़ के पहचान बासी ला कविता मा बाँधत टिकेंद्र टिकरिहा जी लिखथें*

अइसे हाबय छतीसगढ़ के गुद गुद बासी
जइसे नवा बहुरिया के मुच मुच हांसी
मया पोहाये येकर पोर पोर म
अउ अंतस भरे जइसे जोरन के झांपी
कपसा जड़से दग-दग उज्जर चोला
मया-पिरित के बने ये दासी
छल-फरेब थोकरो जानय नहीं
हमर छतीसगढ़ के ये वासी

ये काल मा लगभग सबे विषय मा अनेकों रचना कवि मन करिन, सबे कवि अउ उंखर रचना के जिक्र कर पाना सम्भव नइहे। काव्य के भाव पक्ष अउ पक्ष के घलो कोई तोड़ नई हे। कवि मनके कल्पना मा ऊँच आगास अउ पाताल के बीच विद्यमान सबे चीज समाये दिखिस। ये काल मा मुकुटधर पांडे जी जइसे मेघदूत के छत्तीगढ़ी मा अनुवाद करिन, वइसने अउ कई  धार्मिक पौराणिक ग्रंथ के अनुवाद होइस।
ये समय सृंगार के प्रेमकाव्य के साथ साथ वीर, करुण, अउ हास्य रस ला घलो कवि मन अपन कविता मा उतरिन। छत्तीसगढ़ी मा हायकू, गजल, बाल साहित्य के बीज घलो देखे बर मिलिस। ये काल मा कवि मनके कविता आम जन के अन्तस् मा गीत बनके समाय लगिस, हरि ठाकुर, प्यारेलाल गुप्त, रविशंकर शुक्ल, लक्ष्मण मस्तूरिहा, नारायण लाल परमार, मेहत्तर राम साहू, राम कैलाश तिवारी, पवन दीवान, द्वारिकाप्रसाद तिवारी विप्र, कोदू राम दलित,धरम लाल कश्यप, फूलचंद श्रीवास्तव,चतुर्भुज देवांगन,ब्रजेन्द्र ठाकुर,हेमनाथ यदु, भगवती लाल सेन, मुंकुंद कौशल, रामेंश्वेर वैष्णव,विनय पाठक जइसे अमर गीतकार मनके गीत रेडियो, टीवी अउ लोककला मंच के कार्यक्रम मा धूम मचावत दिखिस। आजादी के बाद नवनिर्माण के स्वर दिखिस ता नवा राज के सपना घलो कवि मनके कविता मा रिगबिगाय लगिस। किसान, मजदूर, दबे, गिरे, हपटे सबके स्वर ला अपन कलम मा पिरो के सात, सुमता अउ दया मया के पाग धरत कवि मन छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी ला नवा आयाम दिन। गाँव गँवई, शहर, डहर, खेत खार, भाजी पाला,चाँद सूरज, परब तिहार,  पार परम्परा,खेल मेल, दिन रात सबला कवि मन समायोजित करके अतका साहित्य ये दौर मा सिरजन करिन, कि  एको जिनिस कवि मनके कविता ले बोचक नइ सकिस। ये काल मा छत्तीसगढ़ी कविता खूब प्रगति करिस। तात्कालिकता के स्वर घलो समय समय मा मुखर होवत दिखिस। ये दौर मा छत्तीसगढ़ी काव्य कविता वो दौर के समाज के दशा दिशा ला हूबहू देखात दिखथे।

सरलग....

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