Thursday 13 January 2022

छत्तीसगढ़ी दशा... रामनाथ साहू-8

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*आधुनिक छत्तीसगढ़ी कविता :दशा अउ दिशा*
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छत्तीसगढ़ी कविता के राग तत्व ल बगराय के बुता म एकठन नहीं कई ठन पीढ़ी मन आज ले घलव बड़ मेहनत करत लगे हांवे ।

*श्री मिलन मलरिहा*

            *एदे बादर आगे*
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एदे    बादर    आगे  रे,      एदे   पानी  बरसगे रे
संगेसंग   करा-पथरा  हा,   घलो   एदे   गिरगे रे....
अझिचतो धान ला, लुइके हमन, तियार होएहन
बिड़ियाएबा बाचे हे करपा, एदे सब्बो हा फिलगे रे....

आए के दिन मा नई आए, किसाने ला रोवा डारे
नहर के पातर धार खातिर, बड़ झगरा करा डारे...
कब आबे तै कब जाबे, कहुँ ठिकाना नई हे गा
कभु जादा कभु कमती, मति मा तोर बसा डारे

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*शोभा मोहन श्रीवास्तव* ------------------------------
*तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे ।*
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तैं तो पूरा कस पानी उतर जावे रे ।
ए माटी के घरघुंदिया उझर जाबे रे ।।

जीव रहत ले मोहलो-मोहलो,काया के का मोल ।
छूट जही तोर राग रे भौंरा,बिरथा तैं झन डोल ।।

आही बेरा के गरेरा तैं बगर जाबे रे ।
तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे ।।

हाड़ा जरही मास टघलही,जर बर होबे राख।
बाचे रही तोर बानी जग में,तैं हा लुकाले लाख ।।

पाँचो जिनीस में सरबस मिंझर जाबे रे।
तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे ।।

जेन फूल ले गमकत हावै,जिनगी के फुलवारी ।
काल रपोटत जाही सबला,देखबे ओसरी पारी ।।

अरे डुँहडू तहूँ फूल बन झर जाबे रे ।
तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे ।।

सक के रहत ले रामभजन कर,छिनभंगुर संसार ।अगम हे दहरा ऊँचहर लहरा,धुंँकना धुंँकत बयार ।।

शोभामोहन रटन कर तर जाबे रे ।
तैं तो पूरा कस पानी उतर जाबे रे ।।

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*सुधा शर्मा*
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*मोर देश के धुर्रा माटी*
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मोर देश के धुर्रा माटी,
मया गीत गावत हे।
डेना पसरे सोन चिरैया,
मान ला बढ़ावत हे।  

खलखल खलखल   नदिया हाँसत,
मिले मयारु ल भागय।
चंदा संग अकास चँदैनी,
रात रात भर जागय।

सुग्घर पुरवा राग बसंती 
गीत ला सुनावत हे।

डेना पसरे------

होत बिहान सुरूज देवता,
लकलक ओन्हा साजय।
मस्जिद मा अजान हा गूंजय,
मंदिर  घ॔टी बाजय।

राम- रहीम ह सँघरा खेले,
मान सबो पावत हे।
डेना पसरे---

देवी- देवा रिसी- मूनि सब,
जनम धरके  आइन।
खेलिन- कूदिन पबरित माटी,
नाव शोर ल जगाइन।

बाँटे ग्यान अँजोरे सबला,          

गुरू जग कहावत हे।

डेना पसरे---

हीरा सोना अन उपजाये,
खेत -खार हे हरियर।
मीठ- मया के बोली- ठोली,
सबके मन हा फरियर।

धुर्रा फुतकी हावे चंदन,
मूड़ सब  नवावत हे।

डेना पसरे---
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*श्री शशिभूषण स्नेही*
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                      *काबर*
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अँगना के मुनगा सुखावत हावै काबर
मँउरे आमा म फ़र लागत नइ हे काबर
काबर नँदावत हे डोंगरी के तेन्दु-चार
थोरकुन गुनव अउ करव ग बिचार|

चौपाल के पीपर रुख घलो चूँन्दागे
गाँव के हितवा के आँखी हर मुँदागे
बारी -बखरी होगे बिन करेला नार
थोरकुन गुनव अउ करव ग बिचार|

जेखर भरोसा म मनखे के जिनगानी
एको बूँद कहूँ  मेर दिखत नइ हे पानी
ठाढे़ देखत हँव निहार मँय नदिया पार
थोरकुन गुनव अउ करव ग बिचार|

दिन-दिन गरमी अउ घाम हर बाढ़त हे
एक ठउर छिन भर बादर नइ माढ़त हे
कइसे अन्न ल  उपजाही खेत-खार
थोरकुन गुनव अउ करव ग बिचार|

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*श्री अरुण निगम*
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        *जिनगी छिन भर के*
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              (विष्णुपद छन्द)

मोर - मोर  के  रटन  लगाथस, आये  का धर के
राम - नाम जप मया बाँट ले, जिनगी छिन भर के

फाँदा किसिम - किसिम के फेंकै, माया हे दुनिया
कोन्हों   नहीं  उबारन  पावै , बैगा  ना   गुनिया

मोह  छोड़  जेवर - जाँता के, धन - दौलत घर के
दुन्नों  हाथ  रही  खाली  जब , जाबे  तँय मर के

वइसन  फल  मिलथे दुनिया-मा , करम रथे जइसे
धरम-करम बिन दया-मया बिन, मुक्ति मिलै कइसे

बगरा  दे  अंजोर  जगत - मा, दिया असन बर के
सदा  निखरथे  रंग  सोन  के, आगी - मा  जर के ।

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*स्व.गजानन्द प्रसाद देवांगन*
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*प्रजातंत्र के मरे बिहान*

उघरा लइका नंगरा सियान
प्रजातंत्र  के मरे बिहान

लबरा मन के नौ नौ नांगर
सतवादी के ठुठुवा गियान
बिन पेंदी के ढुंढवा ठाढ़हे
बने गवाही छाती तान
उघरा लइका नंगरा सियान
प्रजातंत्र के मरे बिहान

बइठके गद्दी पेटलामन बोलय
सेफला मन धरव धियान
अलगे राखव राजनीति ले
धरम करम ला दे के परान
उघरा लइका नंगरा सियान
प्रजातंत्र के मरे बिहान

देखत सुनत कहत मन मन के
जागत सोवत जियत तन के
चोर चोर मौसेरे भाई
महतारी परे अतगितान
उघरा लइका नंगरा सियान
प्रजातंत्र के मरे बिहान

भूंकत कुकुर ला रोटी डारत
सिधवा मन ला मुसेट के मारत
जइसने तइसने बेरा टारत
फोकट गजब बघारय सान
उघरा लइका नंगरा सियान
प्रजातंत्र के मरे बिहान

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*श्री मिनेश कुमार साहू*
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        *मंय बेटी अंव गउ जात*
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    मंय बेटी अंव गउ जात..
                      रे संगी...२
    कोनो मारय खोर दुवारी,
    कोनो मारय लात...रे संगी...
    मंय बेटी अंव गउ जात।

  नव महिना कोख म संचरेंव,
  आयेंव जग के बाट।
  कतको बर होगेंव गरु मंय,
  फेंकिन अवघट घाट।।
                          
    कतको नीयत के नंगरा मन हा,
    छेंकत हे दिन रात... रे संगी!
    मंय बेटी अंव गउ जात...!
   
    जुग जुग नारी ल अबला जाने,
    आजो उहि दिन आवत हे।
    कोनो दाईज लोभी त कोनो।
    बेंदरा नाच नचावत हे।।             
        
  अग्नि परीक्षा कतको दे दे,
  कोनो नइ पतियात... ‌रे संगी  !
  मंय बेटी अंव गउ जात...रे संगी।

मूंड़ म बोहेंव दुख के बोझा,
जिनगी लटपट काटत हंव।
घर दुवार अउ समाज ला,
सुख के बेरा मा बांटत हंव।

    उही पूत हा काबर मोला,
    मारत हवै लात...रे संगी!
    मंय बेटी अंव गउ जात...
   
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*  श्री गयाप्रसाद साहू*
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     *चल संगी चल,बढ़ चल*
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घानी के बईला मत बन
चल रहे संगी चल बढ़ चल
उन्नति के रद्दा अपनाबो जी
गंवई-गांव ला शहर बनाबो जी
देश-राज ला सरग बनाबो जी
    घानी के बईला मत बन,
    चल रहे संगी .......

धर ले झउहा रांपा-कुदारी
गैंती टंगिया चतवारी
मेहनत के फल गुरतुर होथे
ठलहा झन बैठौ गली-दुवारी
जुर-मिल के हम खूब कमाबो
दुख के दिन बिसराबो
     घानी के बईला मत बन ,
     चल रहे संगी.....

पखरा ले पानी ओगराबो
खंचवा-डीपरा ला सुधारबो
सुमता के हथियार बनाबो
दुख-अंधियार भगाबो
मेहनत धरम-ईमान हे संगी
मेहनत के अलख जगाबो"
      घानी के बईला मत बन,
      चल रे संगी ........

नवा-नवा तकनीक आ गे
नवा उदीम अपनाबो जी
नवा-नवा कारखाना खुल गे
नवा रोजगार पाबो जी
गंवई-गांव शहर ले जुड़ गे
'गया' खूब ब्यापार बढ़ाबो
    घानी के बईला मत बन,
    चल रे संगी .....

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*शशि साहू*
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*(सरसी छंद)*
*तरिया*

निस्तारी के ठउर ठिकाना,मिले जुले के ठाँव।
चुहुल पुहुल तरिया हर लागय, सफ्फा राखय गाँव।।
आमा अमली पीपर छइहाँ, मनखे बइठ थिराय।
बरदी के सब गरवा बछरू, अपनो प्यास बुझाय।।
घाट घटौदा सफ्फा राखव, राखव फरियर नीर।
दँतवन चीरी लेसव बदलव, तरिया के तकदीर।।
तरिया के पथरा हर जानय, मन भीतर के बात।
कोने तिरिया कठलत हाँसय, कोन रोय हे रात।।
काखर खारो आँसू गिरके,पानी मा मिल जात।
कोन अभागिन दँदरत रोवय, अपन सुहाग गँवात।।

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         येहर तो एक बानगी ये। अइसन हजार हजार कलम आज छत्तीसगढ़ी महतारी के महिमा गावत,अपन समय के सरोकार अउ चुनौती मन ले दो दो हाथ करत  सर्जना करत हें। जउन  अकेला लोकाक्षर समूह म 200 कवि हैं। जउन संगवारी मन के रचना इहाँ नई आ पाइस  ये , वोमन घलव पोठ रचनाकार आंय । बस समय अउ मानवी सामर्थ्य के सीमा हे ।

*मंचीय कविता अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य*
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         छत्तीसगढ़ी साहित्य के विकास म मंचीय कविता मन के भी  बड़ महत्व हे। मंच में  पढ़ने वाला कवि अउ कविता मन 'तुरंत दान महा कल्याण ' में विश्वास रखथे ।  तड़का फड़ाक माला मुंदरी शाल कंबल नगद नारायण आत रहिथें अउ कविता चलत रहिथे । ये कर्म म कभु कभु  बहुत सुंदर कविता मन, वोमन के डायरी म ही रह जाथें । मंचीय कवि  मन वोमन ल संग्रह निकाले के प्रति ज्यादा गंभीर नहीं रहें । छत्तीसगढ़ी  मंचीय कविता मन के समृद्ध संसार हे । आज मीर अली मीर, रामेश्वर वैष्णव, स्वर्गीय मुकुंद कौशल , डॉ. सुरेंद्र दुबे, किशोर तिवारी जइसन मंचसिद्ध कवि मन, अपन आप में एकठन स्कूल आंय , फेर आज जरूरत हे मंचीय कविता मन ल घलव लिखित रूप में संग्रहित और संरक्षित करे के ।

*दृश्य- श्रव्य माध्यम ,मल्टीमीडिया ,इंटरनेट अउ आधुनिक छत्तीसगढ़ी कविता*
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         दृश्य- श्रव्य माध्यम मन म सबले पुरजोर अउ पावरफुल रहिस  अपन समय में रेडियो हर । आकाशवाणी रायपुर , बाद में कईठन अउ आन केंद्र मन म प्रसारित  होवइया कविता, लोकगीत मन घलव छत्तीसगढ़ी साहित्य के अनमोल खजाना आंय । आकाशवाणी रायपुर के 'सुर -सिंगार', 'चौपाल' मैं बाजत गीत , 'चंदैनी गोंदा' , 'कारी ' जइसन जैसे पब्लिक प्लेटफॉर्म मन म बजत गीत ,सिनेमा - चलचित्र में बाजत गीत , अभी के समय में सबले लोकप्रिय ब्लॉग अउ यूट्यूब में भराय गीत -संगीत मन घलव छत्तीसगढ़ी साहित्य के अनमोल निधि आंय ।

         डॉ विनय कुमार पाठक द्वारा लिखे गए नवगीत 'तोर बिना सुन्ना हे...",  प्रो. राम नारायण ध्रुव के द्वारा लिखे गए गीत- कुंआ हे बड़ा गढ़ा रे ...अपन मधुरता के संगे -संग साहित्यिक महत्व घलव रखत हें । व्यवसायिक गीत लिखेया दिलीप षडंगी, नीलकमल वैष्णव  ,डॉक्टर पीसी लाल यादव जी के रचे गीत मन  उत्कृष्ट गीत होये के सेती, छत्तीसगढ़ी कविता ला समृद्ध करत हें । छत्तीसगढ़ी व्यवसायिक  गीत मन के भी एक खूबी है कि वोमन म रंच मात्र अश्लीलता नई झलके । अउ जउन गीत अश्लील हें  दर्शक मन वोला खारिज कर देथें । व्यवसायिक गीत मन म घलव अभिव्यंजना शक्ति के चरमोत्कर्ष है । सीमा कौशिक के गाए गीत - टूरा नई जाने बोली ठोली माया के... में प्रयुक्त पद 'मोर मया ल गैरी मता के ' , 'मोर तन के तिजोरी ल...' कतेक अधिक पावरफुल अभिव्यंजना देवत हें । अइसन व्यंजना के आगु म पांच- परगट अश्लील गावत  यूपी- बिहार वाले तथाकथित  विश्वव्यापी भाषा- बोली  के गीत मन पानी भरत हें ।
*छत्तीसगढ़ी कविता के प्रकाशित पुस्तक*
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    छत्तीसगढ़ी काव्य कृति मन के संख्या हजारों म होही , फेर होम -धूप असन दु चार कविता  किताब के नांव इहाँ देवत हंव -
* सांवरी- लक्ष्मण मस्तुरिया
* सवनाही -रामेश्वरशर्मा
* मंजूर झाल -अनिल जांगड़े गंवतरिहा
* हरिहर मड़वा- रमेश कुमार सोनी
* नोनी बर फूल - स्व.शंभू लाल शर्मा 'वसंत'
*छिटका कुरिया - सुशील भोले
*बिन बरसे झन जाबे बादर - डॉ. बी.आर.साहू *अमृत ध्वनि - बोधन राम निषाद
*मैं कागद करिया कर  डारेंव - शोभा मोहन श्रीवास्तव
* गजरा- स्व.गजानन प्रसाद देवांगन
*जिंदगी ल संवार - ओम प्रकाश साहू 'अंकुर' *गंवागे मोर गाँव - जितेंद्र वर्मा 'खैरझिटिया'
* जोत  जंवारा - गया प्रसाद साहू

        छत्तीसगढ़ी कविता के दशा पोठ अउ दिशा सही अउ परछर हे ।

*सन्दर्भ*-
*इंटरनेट के बहुत अकन वेबसाइट
*राहुल सिंह जी के ब्लॉग
*नन्दकिशोर तिवारी जी के 'छत्तीसगढ़ी साहित्य :दशा और दिशा '
* मोर अपन प्रकाशकधीन पुस्तक 'सदानीरा चित्रोत्पला'
*छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर व्हाट्सएप ग्रुप के सामग्री ।

सबो ल कर जोर आभार !

*रामनाथ साहू*
देवरघटा डभरा
जिला -जांजगीर चाम्पा
छत्तीसगढ़

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