Friday 3 June 2022

डाॅ. बलदेव के लिखे भूमिका 'छितका कुरिया'

सुरता//
'छितका कुरिया' खातिर डाॅ. बलदेव के लिखे भूमिका
-----------
    'छितका कुरिया' सुशील वर्मा के कविता के पहिली किताब आये। नानकन बीज में सइघो पेड़ समाय रइथे, वोइसने ए संकलन म एक जनवादी कवि के संभावना छिपे हवय | एमा उवत सूरज के अंजोर हे , जेमा लुकाय हुए चीज अउ बदले हुए मनखे के सकल-सूरत दिखे लागथे। कवि के किशोर भावना इहाँ जीवन के कटु यथार्थ ले उपजे हे। ओमा युग व्यापी असंतोष, रोष अउ विद्रोह ल व्यक्त करे के भारी छटपटाहत देखे जा सकत हे। इहाँ कवि कहूं मेर कल्पना के सरग रचत या हवाई महल खड़े करत नजर नइ आवत हे, ओकर जमीन ठोस हे, वो मुरमी जमीन म खड़े हे, एकरेच कारन वोकर बानी म ठनक हे, ओकर कविता के सेवाद अउ गंध पसीना जइसे नमकीन हवय।
      कवि परम्परा के पोषक नोहय, ओकर सोंच सुराज के बाद जटिल परिस्थिति ले उपजे सोच आय, आज के कवि के वास्तविक चिन्ता का होना चाहिए, ए बात के प्रमान ए किताव म जगा जगा मिलथे-
         गांधी के सपना सुराज आत्ते - आत नंदागे
        रोटी के दौरी म तन मन आज फंदागे
            बियाज सही बाढ़त हे छन छन म भूख
            खाता म लिखागे जिनगी भर बर दुख

   अन्तिम डांड़ सूजी के नोक असन नुकीला हे, घाव के मुड़ी ल छुवाय के देरी हे। ए देस म खास करके छत्तीसगढ़ जइसन पिछड़ा इलाका म हर साल अंकाल पड़थे। सावन म हरियर खेत उजर जाथे। चारों मुड़ा पलायन होथे, गरीब के दुख के ओर छोर नइये। नकटी के नाक कस मंहगाई बाढ़त हे। आदमी बन्धवा मजदूर हो गय हे, सुशील वर्मा ए स्थिति ल पंचतंत्र जइसन पात्र के निर्मान करकें अभिव्यक्ति देथें-
      पीठ म सील लादे आवत / बेलदार के गदहा •   
      तरिया ले गठरी आदे आवत / धोबी के गदहा ल
                                               पूछिस-
      कस जी ! बन्धवा मजदूर काला कइथें?

    दूसर डहर फक् उज्जर कपड़ा पहिने खद्दर धारी हें, जउन मौका बेमौका मेचका कस टर्राथें। इन देस के बेंदरा बिनास कर दीन इंकर सह म पनपत हे बयपारी, अप्सर, खाकी वर्दीधारी अउ पटवारी थाना म कुकरी अउ दारू के जोर हे। बहू-बेटी के इज्जत लूटे जात हे। थाना म पुलिस के मार ले कोनो मर जाही त ओहर हत्या नोहय, कानून जइसे कोनो चीज नइ रह गइस, जेकर लाठी अउ पइसा तेकर कानून। सब जगह सोसन अउ अत्याचार के बोलबाला हे। कवि ल कार्य - कारन के स्पष्ट पहिचान हे, ओकर चोट सधे हुए हवय -

      सिट्ठागे अब तो सेवा के गोठ ह
      चोरहा ल राजा बना दिस हमर वोट ह

      कवि अइसन स्थिति म खटिया म सूते नइ बर्रावें, वो अन्याय अउ सोसन के विरोध म जोमियाय लागथे, ओकर आवहान सुनो-

      अरे चलव बढ़व लाठी - गोली खाए बर फेर आघू  आवव
      अंगरेजवा के नास करेव अव अंगरेजियत के नास करव
            लेकिन आज नवा पीढ़ी दिसाहीन हे, ओती ले कवि निरास हे- ' नान- नान पतरेंगवा टुरा होगे रे मुड़पिरवा ' जइसन पंक्ति में कवि के दुख अउ रोष हर प्रकट होवत हे ।
        सन् १८५७ के गदर के बाद इहाँ लगातार दुकाल पड़िस आदमी पलायन करिन अउ महामारी के सिकार होइन, अइ समय हमर देस म पूंजीवादी सभ्यता के फैलाव होइस, वो आज ले जारी हे, कवि के व्यंग देखे लाइक हे-

     अंटावत तरिया के पिलवा मछरी पूछिस
     कस दाई - पानी नइ गिरे ले / दुकाल हर
     हमरेच बर काबर परथे?
     वो 'सादा' पांख वाला / कोकड़ा बर तो
     एकर ले एकदम सुकाल होथे

'छितका कुरिया' शीर्षक कविता कवि के विचारधारा के केन्द्रीय बिन्दु आय। एकर बहाना म वो पूरा देश के गरीबी अउ दुरदसा के बरनन करें हावय। मनखे के भाग जइसन कविता म कवि के व्यंग्य बड़ बारीक अउ असरदार हे। वो नियतवाद ' जइसन धारना के खुल के मखौल उड़ाय हे-

       कइसे के आय बगीचा विधाता
       एके जगा सब फूल फूले हे
       एक ठन देव के सीस चघत हे
       अउ एक ठन ह अइंला के मरत हे

संस्कृत के कोनो कवि के कथन हे-
         कुसुमस्तबकस्येंव द्वयी वृत्तिर्मनस्विनः
         मूदिर्नवा सर्वलोकस्य विशीर्येतवनेऽथवा

लेकिन सुशील वर्मा आज के कवि आंय 'विधाता' के नकाब ल उन खींच के निकाल देहे म भय नई करें। राजनीति के दांव - पेंच ल भले ही जुन्ना - फुन्ना पटन्तर के दुवारा व्यक्त करथे, फेर लोक प्रचलित धारना घलउ ल उन कगरिया के असली मार के जगह पहुंच जाथें। एक ठन उदाहरन देखा-

      बसन्त के उमंग ह। राँड़ी बर आन अउ
      एंहवाती बर आन होथे
      लोहा ह । कसाई बर आन, अउ मंदिर बर आन होथे

आगे उंकर व्यंग्य हर धारदार हो जाथे-

    वोइसनेच | ए पानी के कमी हवय ।
    हमर बर आन, अउ
    कोकड़ा बर आन होथे ।

     देस के संस्कृति कृषि प्रधान आय। छत्तीसगढ़ तो ठेठ खेतिहर इलाका आय। लेकिन आजो ले इहाँ जमीन रोकाय जमींदार अउ मालगुजार भरे हें, उंकर हुकूमत पहिलीच कस चले आत हे। श्रम करे म आदमी कतराय लगे हें - दुधारी कविता के मार देखा-

    जांगर खातिर जब ककरो खेती परिया परथे
   अउ बिन खेती के जब कोनो जांगर परिया परथे

कवि अपन किशोरे अवस्था म जिम्मेदार सियान कस बात करे लगत हे, ए समय तो ओला आन संगी जंवरिहा कस अपन उमर के गीत गाना रहिसें। फेर जब छय महीना के लइका ल वो खड़े मंझनिया, टूटहा घर के रखवारी करत देखथे, त अवाक हो जाथे। महतारी बेटा के बीच म गउंटिया के भूती लछमन रेखा कस खिंचाय जउन हावय। तभ्भो ले ओ गंवई - गांव के सरलता, सहज , सरस जीवन अउ प्रकृति के सुन्दरता ल अपन कल्पना के रंग देहे म नइ चूके हे। बसन्त अउ जड़कल्ला के बरतन म तो उन कमाल कर देहे हावय। कवि प्रचलित मुहाविरा के भरपूर उपयोग करे हे, लेकिन ओमा मौलिकता के भी कमी नइये। सुशील वर्मा अपन ज्येष्ठ कवि हरि ठाकुर , श्यामलाल चतुर्वेदी, नारायण लाल परमार जइसन कवि से बड़ परभावित हे। उन इंकर कविता से अपन काव्य - संस्कार ल बड़ सुघ्घर रूप में विकसित करे हाबंय। कवि समर्थ कवि मन के प्रभाव ग्रहण करय अउ उंकर मंजिल ले आघू के यात्रा सुरू करय , अइ हर जातीय चेतना कहलाथे, जे साहित्य म बहुत बड़े चीज आय। कवि सुशील वर्मा म एकर पूरा पूरा संभावना हे, संक्षेप म उन सचेत कवि आय, अउ अपन समय ले बेखवर नइये। उंकर कविता के मूल स्वर व्यंग्य आय। आवा ए निडर अउ साहसी कवि के संग मुखा - माखी करा, इंकर से, इंकर कविता से चिन्हारी करा-

    अरे एही हर तो । पंचाइती राज के सुरूआत ये .    
    अब तो रोज हत्या होही। बैंक लुटाही। इज्जत      बेचाही
    अउ राजनीति के यज्ञ म । तभे तो गांधी के भारत
    एक्कीसवीं सदी म जाही ।

                डॉ . बलदेव
  श्री शारदा साहित्य सदन,बैकुण्ठपुर ,

रायगढ़ १०-३-१९ ८ ९

No comments:

Post a Comment