Thursday 9 June 2022

अमर रचनाकार मुकुटधर पाण्डेय जी

30 सितम्बर जयंती म सुरता//
हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी के अमर रचनाकार पद्मश्री मुकुटधर जी पाण्डेय
    भीड़ ले अलग हट के कुछ मौलिक अउ आरुग अंतस के गोठ लिखने वाला साहित्यकार ल एती-तेती के गाड़ा-गाड़ा रचना लिख के खरही गाँजे के जरूरत नइ परय. वो वतकेच म ही अमर अउ कालजयी रचनाकार हो जाथे.
    जांजगीर-चांपा जिला के गाँव बालपुर म 30 सितम्बर 1895 म महतारी देवहुती देवी अउ सियान पं. चिंतामणि जी के घर जनमे पद्मश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय जी अइसने साहित्यकार रिहिन हें, जेन मन दू-चार रचना म ही साहित्य जगत म अमर हो गय हें. एकर खातिर 'सरस्वती' के संपादक रहे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के वो पाती उंकर बर रस्ता देखाए के बुता करे रिहिसे, जेमा लिखाय रिहिसे- 'आप साल भर म तीन रचना ही भेजे करौ. उंकर सीख रिहिसे के, कम लिखौ फेर पोठ लिखौ. अच्छा लिखे म रचनाकार दू-चार रचना म ही अमर हो जाथे. जबकि जादा लिखे म घलो लोगन उनला चालीस-पचास बछर म बिसर डारथें.' आचार्य द्विवेदी जी के ए पाती ह मुकुटधर पाण्डेय जी खातिर गुरु मंत्र साबित होए रिहिसे.
    मोला पं. मुकुटधर पाण्डेय जी के दर्शन अउ घंटा भर बइठ के उंकर संग मुंहाचाही करे के सौभाग्य तब मिले रिहिसे, जब हमन सन् 1988 के दिसंबर महीना म 'छत्तीसगढ़ी भाषा-साहित्य प्रचार समिति' के प्रदेश स्तरीय जलसा रायपुर के रामदयाल तिवारी स्कूल म करवाए रेहेन.
    असल म ए जलसा म छत्तीसगढ़ी के सियान साहित्यकार मन के सम्मान घलो होना रिहिसे, जेमा मुकुटधर पाण्डेय जी के नॉंव घलो शामिल रिहिसे, फेर उन स्वास्थ्य गत कारण के सेती रायपुर नइ आ पाए रिहिन हें. तब हमन डाॅ. व्यास नारायण दुबे जी, जागेश्वर प्रसाद जी अउ मैं, हम तीनों रायगढ़ जाके उंकर घर म ही समिति के डहार ले सम्मान करे रेहेन. ए कारज म डाॅ. बलदेव साव के संगे-संग रायगढ़ के अउ साहित्यकार मन के अच्छा सहयोग मिले रिहिसे. ए बेरा म श्रद्धेय पाण्डेय जी ह रायपुर ले गए हम तीनों झनला महाकवि कालिदास के अमरकृति 'मेघदूतम्' के छत्तीसगढ़ी अनुवाद के प्रति ल अपन हस्ताक्षर कर के दिए रिहिन हें. उही छत्तीसगढ़ी कृति के माध्यम ले ही मैं 'मेघदूत' ल पढ़ पाए रेहेंव, अउ वोकर ले प्रभावित होके छत्तीसगढ़ी म एक गीत लिखे रेहेंव-
अरे कालिदास के सोरिहा बादर, कहाँ जाथस संदेशा लेके
हमरो गाँव म धान बोवागे, नंगत बरस तैं इहाँ बिलम के
थोरिक बिलम जाबे त का यक्ष के सुवारी रिसा जाही
ते तोर सोरिहा के चोला म कोनो किसम के दागी लगही
तोला पठोवत बेर चेताय हे, जोते भुइयाॅं म बरसबे कहिके
अरे कालिदास के सोरिहा बादर...

    छत्तीसगढ़ी मेघदूत के  भाषा ल पढ़ के अइसे नइ जनावय, के ए ह अनुवाद आय. वोला पढ़े म अइसे जनाथे, के एहि ह मूल प्रति आय. देखव छत्तीसगढ़ी मेघदूत के दू डांड़-
बता मित्र के काम करे बर तैं हर मन म ठाने?
उत्तर देबे तभे तोर स्वीकृति का जाही जाने?
बिन गरजे याचक चातक ला देथस तैं जल, जलधर,
काम कर दिहिन जन के पूरा, यही सुजन के उत्तर..

    मुकुटधर पाण्डेय जी ल छायावाद के प्रवर्तक के रूप म जेन कविता 'कुररी के प्रति' ह स्थापित करिस, वो ह जुलाई 1920 के 'सरस्वती' के अंक म छपे रिहिसे-
बता मुझे, हे विहग विदेशी, अपने जी की बात.
पिछड़ा था तू कहाँ, आ रहा जो कर इतनी रात?
निद्रा में जा पड़े कभी के, ग्राम्य मनुज स्वच्छंद.
अन्य विहग भी निज खेतों में सोते हैं सानंद.
इस नीरव घटिका में उड़ता है तू चित्रित गात.
पिछड़ा था तू कहाँ, हुई क्यों तुझको इतनी रात?
    मुकुटधर पाण्डेय जी बतावंय के वोमन 'कुररी' ऊपर तीन कविता लिखे रहिन हें. शायद उंकर दूसर रचना 1917 म छपे रिहिसे-
सच पूछो तो तुममे मुझमे भेद नहीं कुछ भारी
मैं हूँ थल चारी तो तू है विस्तृत व्योम विहारी
    तीसर रचना शायद 1939 म लिखे गे रिहिसे-

सुना, स्वर्ण मय भूमि वहाँ की मणिमय है आकाश
वहाँ न तम का नाम, कहीं है रहता सदा प्रकाश

     मुकुटधर पाण्डेय जी रामायण के उत्तरा कांड ल घलो छत्तीसगढ़ी ल लिखे रिहिन हें. वोकर एक झलक देखौ-
अब तो करम के रहिस एक दिन बाकी
कब देखन पाबो राम लला के झांकी

हे भाल पांच में परिन सवेच नर नारी
देहे दुबराइस राम विरह मा भारी

दोहा - सगुन होय सुन्दर सकल सबके मन आनंद।
पुर सोभा जइसे कहे, आवत रघुकुल चंद॥

महतारी मन ला लग, अब पूरिस मन काम
कोनो अव कहतेव हवे, आवत्त वन ले राम

जेवनी आंखी औ भूजा, फरके बारंबार
भरत सगुन ला जनके मन मा करे विचार

अअब तो करार के रहिस एक दिन बाकी
दुख भइस सोच हिरदे मंचल राम टांकी

कइसे का कारण भइस राम नई आईन
का जान पाखंडी मोला प्रभु बिसराईन

धन धन तैं लक्ष्मिन तैं हर अस बड़भागी
श्रीरामचंद्र के चरन कवल अनुरागी

चिन्हिन अड़बड़ कपटी पाखंडी चोला
ते कारन अपन संग नई लेईन मोला

करनी ला मोर कभू मन मा प्रभू धरही
तो कलप कलप के दास कभू नई तरही

जन के अवगुन ला कभू चित नई लावै
बड़ दयावंत प्रभु दीन दयाल कहावै

जी मा अब मोर भरोसा एकोच आवै
झट मिलहि राम सगुन सुभ मोला जनावै

बीते करार घर मा परान रह जाही
पापी ना मोर कस देखे मा कहूं आही

दोहा
राम विरह के सिन्धु मा, भरत मगन मत होत।
विप्र रूप धर पवन सुत, पहुंचिन जइसे पोत॥

    हर मनखे ल अपन माटी, अपन भाषा अउ संस्कृति खातिर गजब मया होथे. वो एकर बखान ल कोनो न कोनो रूप म जरूर करथे. तब छत्तीसगढ़ राज एक स्वतंत्र राज के चिन्हारी पा जाही या नइ पाही, तेकर कोनो भरोसा नइ रिहिसे. तभो ले इहाँ के गुनी साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ के एक स्वतंत्र अस्तित्व के कल्पना करत ओकर जोहार-पैलगी अउ वंदन जरूर करीन. मुकुटधर पाण्डेय जी के 'प्रशस्ति' शीर्षक ले लिखे ए रचना ल देखौ-
सरगुजा के रामगिरि ह मस्तक-मुकुट संवारे.
महानदी ह निरमल जल मा जेकर चरन पखारे..
राजिम अउ शिवरीनारायन क्षेत्र जहाँ छवि पावै.
ओ छत्तीसगढ़ के महिमा ला भला कवन कवि गावै?
हैहयवंशी राजा मन के रतनपुर रजधानी.
गाइस कवि गोपाल 'राम परताप' सुअमरित बानी..
जहाँ वीर गोपालराय का करो करय नइ संका.
जेकर नांव के जग जाहिर दिल्ली म बाजिस डंका..
मंदिर, देउर डहर-डहर आजो ले खड़े निसानी.
कारीगरी गजब के जेमा, मुरती आनी-बानी..
ये पथरा के लिखा, ताम के पट्टा अउ शिवाला.
दान-धरम अउ बल-विकरम के देवत हवै हवाला..

    आचार्य द्विवेदी जी के बताए गुरुमंत्र ल धरे उन वाजिब म कम ही लिखिन, फेर गजब पोठ अउ अंतस ल छूने वाला साहित्य रचिन. उंकर प्रमुख लेखन म- पूजा फूल, लच्छमा अनूदित उपन्यास, हृदय दान कहानी, परिश्रम निबंध संग्रह, शैलबाला अनूदित उपन्यास, मामा अनूदित उपन्यास, छायावाद एवं अन्य निबंध, स्मृति पुंज, मेघदूत के छत्तीसगढ़ी अनुवाद, विश्वबोध काव्य संकलन आदि प्रमुख हे. एकर संगे-संग उंकर व्यक्तित्व-कृतित्व ले संबंधित अउ कतकों किताब प्रकाशन के अगोरा म हे.

    मुकुटधर पाण्डेय जी के तीन किताब - पूजा फूल (काव्य संग्रह) अउ उड़िया ले अनुदित उपन्यास 'शैलबाला', अउ 'लच्छमा' के लेखक पं. मुकुटधर शर्मा (पाण्डेय) के संगे-संग उंकर बड़े भाई मुरलीधर शर्मा (पाण्डेय) घलो हे. रायगढ़ के साहित्यकार बसंत राघव (सुपुत्र डाॅ. बलदेव साव) ए बात ल प्रमाण सहित कहिन हें.

    मोर सौभाग्य आय मोर पहला कविता संकलन 'छितका कुरिया' खातिर वोमन छत्तीसगढ़ी म अपन शुभकामना संदेश दिए रिहिन हें, अउ कहे रिहिन हें- मैं अपन जिनगी म पहिली बेर ककरो खातिर छत्तीसगढ़ी म संदेश लिखे हौं. उंकर ए संदेश के पांडुलिपि ल तब मैं ब्लाक बनवा के अपन संग्रह म छपवाए रेहेंव. आज घलो उंकर वो पाती ह मोर बर धरोहर बने हुए हे.

    6 नवंबर 1989 के 94 बछर के उमर म वोमन ए नश्वर दुनिया ले बिदागरी ले लेइन. उंकर सुरता ल पैलगी- जोहार🙏
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

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