Monday 6 April 2015

आ दरपन तैं देख जउंरिहा...



















आ दरपन तैं देख जउंरिहा कइसे दिखथे चेहरा
तोर रूप तो धंस गे हावय जइसे गड्ढा-दहरा
का बात के भरम म हावस कइसे चिक्कन अंग हे
करम के कालिख तो उपकत हे रंग घलो हे गहरा
*सुशील भोले*

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