Wednesday 8 April 2015

सांस-सांस म जहर घुरत हे....














सांस-सांस म जहर घुरत हे जीना होगे भारी
धुंआ उड़ावत मोटर-गाड़ी जमराज के संगवारी
देख विकास के चिमनी घलो लेवत हवय परान
अलहन होगे तरिया-नंदिया मुश्किल हे निस्तारी
सुशील भोले

1 comment:

  1. विनाशी विकास है यह ..सार्थक रचना ..

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