Friday 25 December 2015

अद्वितीय अटल ....


पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के 91 वें जन्म दिन पर शुक्रवार 25 दिसंबर को सिविल लाईन रायपुर स्थित वृंदावन सभागार में अखिल भारतीय साहित्य परिषद छत्तीसगढ़ प्रांत द्वारा अद्वितीय अटल कार्यक्रम का आयोजन किया गया। राज्यसभा सांसद नंदकुमार साय के मुख्यआतिथ्य एवं पूर्व सांसद श्रीगोपाल जी की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं पर आधारित गोष्ठी में वक्ताओं ने अपने विचार संस्मरण सुनाये। मैंने वाजपेयी जी की कविताओं का छत्तीसगढ़ी भाषा में अपने द्वारा किये गये अनुवाद का पाठ किया।
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ऊँचई
(पूर्व प्रधानमंत्री, भारतरत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता *ऊँचाई* का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद)

ऊँच पहार म
पेंड़ नइ जामय
नार नइ लामय
न कांदी-कुसा बाढय़।

जमथे त सिरिफ बरफ
जेन कफन कस सादा
अउ मुरदा कस जुड़ होथे
हांसत-खुखुलावत नरवा
जेकर रूप धरे
अपन भाग ऊपर बूंद-बूंद रोथे।

अइसन ऊँचई
जेकर पारस
पानी ल पखरा कर दय
अइसन ऊँचई
जेकर दरस हीन भाव भर दय
गर-माला के अधिकारी ये
चढ़इया बर नेवता ये
वोकर ऊपर धजा गडिय़ाये जा सकथे।

फेर कोनो चिरई
उहां खोंधरा नइ छा सकय
न कोनो रस्ता रेंगइया
वोकर छांव म सुरता सकय।

सच बात ये आय के
सिरिफ ऊँच होवइ ह
सबकुछ नइ होवय
सबले अलग
लोगन ले बिलग
अपन ले कटे
अकेल्ला म खड़े
पहार के महानता नहीं
मजबूरी आय
ऊँचई अउ गहरई म
अगास-पताल के दुरिहाई हे।

जेन जतका ऊँच
ततके अकेल्ला होथे
जम्मो बोझा ल खुदे बोहथे
मुंह ल मुच ले करत
मने-मन रोथे।

जरूरी ये आय के
ऊँच होवई के संग
फैलाव घलोक होय
जेकर ले मनखे
ठुडग़ा कस खड़े झन राहय
लोगन संग मिलय-जुलय
ककरो संग रेंगय।

भीड़ म भुलाना
सुरता म समाना
खुद ल बिसरना
अस्तित्व ल अरथ देथे
जिनगी ल महकाथे।

धरती ल बठवा मन के नहीं
ऊँच-पूर मनखे के जरूरत हे
अतका ऊँच ते अगास ल अमर लय
नवा-दुनिया म प्रतिभा के बीजा बो दय।

फेर अतेक ऊँच नहीं
ते पांव तरी दूबी झन जामय
कोनो कांटा झन गडय़
न कोनो डोंहड़ी फूलय।

न बसंत न पतझड़ होय
सिरिफ ऊँचई के आंधी होय
कलेचुप ठगड़ा कस अकेल्ला।

हे भगवान,
मोला अतेक ऊँचई कभू झन देबे
पर ल घलोक नइ पोटार सकंव
अइसन निष्ठई कभू झन देबे।

मूल हिन्दी : अटल बिहारी वाजपेयी
छत्तीसगढ़ी भावानुवाद : सुशील भोले

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