(छत्तीसगढ़ी भाषा के इस भजन को मैंने अपने आध्यत्मिक साधनाकाल में उस समय लिखा था, जब लोग मुझे पागल हो गया है कहकर मेरे आस-पास भी नहीं आते थे। मेरे घनिष्ठ मित्र भी मुझसे दूर भागते थे। तब मैंने उन्हीं परिस्थितियों को रेखांकित करते हुए इस भजननुमा गीत को लिखा था।)
मैं तो बइहा होगेंव शिव-भोले,
तोर मया म सिरतोन बइहा होगेंव.....
तोर मया म सिरतोन बइहा होगेंव.....
घर-कुरिया मोर छूटगे संगी, छूटगे मया-बैपार
जब ले होये हे तोर संग जोड़ा, मोरे गा चिन्हार
लोग-लइका बर चिक्कन पखरा कइहा होगेंव गा.....
जब ले होये हे तोर संग जोड़ा, मोरे गा चिन्हार
लोग-लइका बर चिक्कन पखरा कइहा होगेंव गा.....
खेत-खार सब परिया परगे, बारी-बखरी बांझ
चिरई घलो मन लांघन मरथे, का फजर का सांझ
ऊपरे-ऊपर देखइया मन बर निरदइया होगेंव गा......
चिरई घलो मन लांघन मरथे, का फजर का सांझ
ऊपरे-ऊपर देखइया मन बर निरदइया होगेंव गा......
संग-संगवारी नइ सोझ गोठियावय, देथे मुंह ला फेर
बिन समझे धरम के रस्ता, उन आंखी देथे गुरेर
मैं तो संगी तोरे सही बस आंसू पोछइया होगेंव गा...
बिन समझे धरम के रस्ता, उन आंखी देथे गुरेर
मैं तो संगी तोरे सही बस आंसू पोछइया होगेंव गा...
सुशील भोले
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
54-191, डॉ. बघेल गली,
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