Monday 7 December 2015

शब्दभेदी बाण संधान कला नहीं साधना आय : कोदूराम वर्मा

कोदूराम वर्मा
 छत्तीसगढ़ म एकमात्र शब्दभेदी बाण अनुसंधानकर्ता कोदूराम वर्मा जी ह नवा राज बने के बाद इहां के मूल संस्कृति के विकास खातिर होवत बुता ले संतुष्ट नइये ओमन कहिथे के हमर इहां के नवा पीढ़ी के कलाकार मन म तको अपन अस्मिता के गौरवशाली रूप ल जीवित राखे के बजाय झपकुन प्रसिद्धि अउ पइसा कोति भागत हावय। इही सेती कलाकार के सोच ह व्यवसायिक होगे हे अउ कला ल आरूग राखे के उदीम ल छोड़ व्यवसायीकरण करत जावथे। 88 बच्छर के उमर म तक कोदूराम जी ह इहां के लोककला  ल आरूग राखत जन-जन तक पहुँचाय के उदिम म रमें हावय, ओमन आज भी ओतके सक्रिय हावय जतका अपन कला जीवन के सुरूवाती दौर म रिहिन। पाछू दिन धमतरी जिला के ग्राम मगरलोड म संगम साहित्य समिति डहर ले ओमन ला 'संगम कला सम्मान ले सम्मानित करे गिस उही मउका म ओकर सो होय गोठबात ह खाल्हे म साफर हावय-
* कोदूराम जी आपके जनम कब अउ कहाँ होइस?
मोर जनम ग्राम भिंभौरी जिला-दुर्ग म 1 अप्रैल 1924 के हाय हवय। मोर महतारी के नाव बेलसिया बाई अउ पिता के नाव बुधराम वर्मा हवय।

* अब आप ये बताव के आप पहिली लोककला के क्षेत्र म आयेव के शब्दभेदी बाण चलाय के क्षेत्र म?
मैं सबले आगू लोककला के क्षेत्र म आयेव। 18 बछर के उमर म करताल अउ तम्बुरा ले भजन गाए के सुरू करेवं ओ बखत आज जइसन वाद्ययंत्र तो नइ रिहिसे, पारंपरिक लोकवाद्य ही राहय। दरअसल मोर रुचि अध्यात्म कोति सुरूच ले रिहिस इही पाके भजन गायन ले कला के क्षेत्र म आना होइस। अऊ करीब 1947-48 के आसपास मैं नाचा कोति आकर्षित होके जोक्कड़ के काम करवं।

कोदूराम जी वर्मा के साथ लेखक सुशील भोले
* आगू तो नाचा म खड़े साज के चलन रिहिसे, आप कइसे ढंग ले प्रस्तुति देवव?
हव, खड़े साज अउ मशाल नाचा के दौर रिहिस, फेर हमु मन दाऊ मंदरा जी ले प्रभावित होके तबला हारमोनियम के संगत म बइठ के प्रस्तुति देवन।

* अच्छा... ओ बखत नाचा-गम्मत के विषय का होवय?
ओ समय ब्रिटिश, मालगुजारी प्रथा, सामाजिक कुरीति ल विषय बनाके मंच म गम्मत देखवन।

* आप तो आकाशवाणी के घलोक गायक रेहे हव, ओकरो बारे म कुछू बतातेवं?
आकाशवाणी म मैं सन् 1955-56 के आसपास लोकगायक के रूप म पंजीकृत होयेवं। ओ समे मै ज्यादातर भजन ही गावत रेहेवं। आकाशवाणी म मोर भजन- 'अंधाधुंध अंधियारा, कोई जाने न जानन हारा, 'भजन बिना हीरा जमन गंवाया...  जइसन भजन गजब धुम मचइस। अबही घलोक कभु कभाबर मउका मिलथे तव थोर बहुत गुनगुना लेथवं। भजन ले अध्ययात्मिक शांति मिलथे।

* आपमन के लोक सांस्कृतिक पार्टी तको चलथे का?
हां चलथे अभी... 'गंवई के फूल के नाम से। पहिली येमा 40-45 कलाकार होवेय अब स्वरूप थोड़ा छोटे होगे। साठ के दशक म दाऊ रामचंद्र देशमुख के अमर प्रस्तुति 'चंदैनी गोंदा ह एक इतिहास होगे।

* आप ल तब के प्रस्तुति अउ अब के म का अंतर दिखथे?
काफी अतंर आगे हवय। पहिली के कलाकार स्वाधीनता आन्दोलन के दौर ले गुजरे रिहिसे, ओमन म अपन माटी के प्रति, कला अउ संस्कृति के प्रति अटूट निष्ठा रिहिस। अब के कलाकार म ओ सब नइ दिखे। अब तो संस्कृति के नाम म अपसंस्कृति के प्रचार ज्यादा होवत हावय। लोगन के भीतर अपन अस्मिता कोति लगाव कमतियावत हाबे ओकर नजरिया पूरा व्यावसायिक होगे हवय।

* का इहां के कला-साहित्य-संस्कृति बर राज शासन उदासीन नजर आथे?
पूरा-पूरा नहीं तो नइ केहे सकन फेर अलग राज बने के बाद जोन अपेक्षा रिहिस वो पूरा नइ हो पावथे।

* अब आपके वो विधा के गोठबात करथन जेन सबले जादा आप ख्याति देवाइयस। ये बतातेवे के शब्दभेदी बाण चलाना कैइसे सीखेव?
ये समे के बात आए जब मै मैं भजन गायन के संग दुर्ग के हीरालाल जी शास्त्री के रामायण सेवा समिति म जुरे रेहेवं। हमन सेवा समिति के माध्यम लेे मांस-मदिरा जइसन तमाम दुर्व्यवसन ले मुक्ति के आव्हान करत लोगन म जन-जागरण के बुता करन। उही बखत उत्तर प्रदेश के बालकृष्ण शर्मा संग मोर भेट होइस जोन ह रामायण के कार्यक्रम प्रस्तुत करत आखिर म शब्दभेदी बाण के प्रदर्शन करय ओमन आँखी म पट्टी बांध के 25-30 फीट दूरिहा ले एक लकड़ी के सहारा झूलत धागा ल आसानी ले काट देवय। मैं ओकर ये प्रतिभा ले काफी प्रभावित होके ओकर सो अनुरोध करेवं कि महु ल ये विद्या सीखा दव। पहिली तो बालकृष्ण जी ह ना-नुकुर करिन फेर बाद म ओमन एक शर्त म ये विद्या सीखोइस के मैं जीवन भर सबो प्रकार के दुर्व्यवसन ले दूरिहा रहूँ। मैं ओकर संग करीब तीन महीने तक रेहेवं अउ ये विद्या ले सीखवं। अउ अपन घर म आगे दोहराव। अइसने अभ्यास करत करत महूं पारंगत होगेवं।

* आपमन भी अपन ये विद्या ल कोनो ल सीखाय हवं का?
अभी तक तो कोनो ल ये विद्या म पारंगत नइ करे हवं।

* का पायके?
असल म ये विद्या मात्र कला नोहय, बल्कि एक प्रकार से साधना आए।  लोगन कला ल सीखना जरूर चाहथे फेर साधना करना नइ चाहे। येला सीखे बर दुर्व्यवसन ले मुक्त होना पड़थे। कई ठिन संस्था वाले मन तको मोला बलाइस के लइका मनला धनुर्विद्या सीखाना हावे किके, मै उहां गयेवं तो जरूर फेर कुछ परिस्थिती अइसे बनगे के मोला खाली हाथ लहुंटना परिस।

* का धनुर्विद्या खातिर शासन कोति ले सम्मानित करे गे हावय?
धनुर्विद्या खातिर तो नहीं, कला के क्षेत्र म राज्य अउ केन्द्र दूनों ह सम्मानित करे हावय। केन्द्र सरकार डहर ले सन् 2003-04 म गणतंत्र दिवस परेड म करमा नृत्य प्रदर्शन खातिर बुलावा रिहिस, जेमा मैं 65 झिन लइका मनला लेके प्रदर्शन करेवं अउ उहां हमर कला मंडली ल सर्वश्रेष्ठ कला के पुरस्कार मिलिस। 'करमा सम्राट के उपाधि ले सम्मानित होय हाबव। अइसने राज सरकार डहर ले सन् 2007 म राज्योत्सव के दौरान कला के क्षेत्र म विशिष्ट योगदान खातिर दे जाने वाला 'दाऊ मंदरा जी सम्मान ले तको सम्मानित करे गे हावय।

* नवा पीढ़ी ले का कहना चाहत हव?
बस अतके कहना चाहत हवं के वोमन अपन मूल संस्कृति ल अक्षुण बनाये राखे के दिशा म ठोस बुता करें।

* सुशील भोले 
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811

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