Tuesday 1 December 2015

सतयुग आही कइसे...?


कलियुग के हाहाकार ले हलाकान होके जब कभू अच्छा दिन के सुरता करथन त सिरिफ एक्के बेरा के सुरता आथे... सतयुग के। नानपन ले सुने हावन सतयुग के मनखे सदाचारी, सत्यवादी अउ भगवान के मयारुक रहय। एकरे सेती उन कभू एक-दूसर के पीरा के सौदा नइ करत रिहिन।

आज के बेरा तो मार-काट, छीना-झपटी, ठगिक-ठगा, झूठ-लबारी, तोर-मोर, अपन-पराया के दलदल में बूड़े हावय। पेपर -गजट मन हत्या, बलात्कार, डकैती, भ्रष्टाचार, आतंकी अउ सीमा म गोलीबारी ले भरे रहिथे। त बतावव अइसन म शांत, सुंदर अउ संयम ले भरे युग के सुरता कइसे नइ आही?

फेर मन म इहू गुनान आथे.. आखिर अइसन बेरा आही कइसे..?  का सिरिफ सोचे भर म... ते ए ये रद्दा म रेंगे म? संगी हो, मैं हमेशा छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति के बात करथौं। आखिर का आय ये मूल संस्कृति ह? असल कहिन त उही ह सतयुग के संस्कृति आय, जेकर ऊपर द्वापर, त्रेता अउ न जाने काकर-काकर किस्सा-कहिली ल जोड़-सकेल के वोकर मूल रूप ल बिगाड़ दे गे हवय।

मैं कभू गुनथौं... का एकरे सेती इहां कलियुग ह डेरा डार के बइठ गे हवय? जाये के नामे नइ लेवत हे? फेर कभू मन म बिचार आथे- का सतयुग के देंवता ल छोड़ के अन्ते-तन्ते म उलझ गे हावन तेकर सेती उन शांत स्वरूप वाला मन रिसागे हवंय अउ याहा तरह के आगी-होरा भूंजे वाला खेल ल आज करत हावंय? का एकरे सेती हम कलियुग के आगी म धधकत हावन?

त का सतयुग के वापसी खातिर हमला फेर उही सतयुग के संस्कृति ल, सतयुग के देंवता ल अपन जिनगी के आधार  बनाये बर लागही? वोकर मूल रूप ल, मूल संस्कृति ल फेर चारों खुंट बगराये अउ लोगन के मन म बसाये पर परही? हां... अइसन तो करेच बर लागही। जइसन मन के पूजा-उपासना करबे... वइसने तो गुन-जस पाबे?

त आवव संगी हो... फेर उही सतयुग के रद्दा... सत्यम्... शिवम्... सुन्दरम् के रद्दा म... अपन मूल संस्कृति के रद्दा म... अपन मूल देंवता के रद्दा म... मूल म पानी रितोबो तभे जिनगी रूपी पेंड़ हरियाही... सिरिफ डारा-शाखा म पानी रितोबो त जड़ अउ पेंड़ के जिनगी सिरा जही..संग म हमरो मन के जिनगी के हरियाली सिरा जाही... जय कुल देंवता... जय मूल देंवता...

सुशील भोले 
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811

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