Thursday, 31 December 2015
Wednesday, 30 December 2015
Tuesday, 29 December 2015
मैं तो बइहा होगेंव शिव-भोले...
(छत्तीसगढ़ी भाषा के इस भजन को मैंने अपने आध्यत्मिक साधनाकाल में उस समय लिखा था, जब लोग मुझे पागल हो गया है कहकर मेरे आस-पास भी नहीं आते थे। मेरे घनिष्ठ मित्र भी मुझसे दूर भागते थे। तब मैंने उन्हीं परिस्थितियों को रेखांकित करते हुए इस भजननुमा गीत को लिखा था।)
मैं तो बइहा होगेंव शिव-भोले,
तोर मया म सिरतोन बइहा होगेंव.....
तोर मया म सिरतोन बइहा होगेंव.....
घर-कुरिया मोर छूटगे संगी, छूटगे मया-बैपार
जब ले होये हे तोर संग जोड़ा, मोरे गा चिन्हार
लोग-लइका बर चिक्कन पखरा कइहा होगेंव गा.....
जब ले होये हे तोर संग जोड़ा, मोरे गा चिन्हार
लोग-लइका बर चिक्कन पखरा कइहा होगेंव गा.....
खेत-खार सब परिया परगे, बारी-बखरी बांझ
चिरई घलो मन लांघन मरथे, का फजर का सांझ
ऊपरे-ऊपर देखइया मन बर निरदइया होगेंव गा......
चिरई घलो मन लांघन मरथे, का फजर का सांझ
ऊपरे-ऊपर देखइया मन बर निरदइया होगेंव गा......
संग-संगवारी नइ सोझ गोठियावय, देथे मुंह ला फेर
बिन समझे धरम के रस्ता, उन आंखी देथे गुरेर
मैं तो संगी तोरे सही बस आंसू पोछइया होगेंव गा...
बिन समझे धरम के रस्ता, उन आंखी देथे गुरेर
मैं तो संगी तोरे सही बस आंसू पोछइया होगेंव गा...
सुशील भोले
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
Monday, 28 December 2015
ज्ञानी व्यक्ति...
ज्ञानी व्यक्ति कथावाचक अथवा प्रवचनकार का जीवन नहीं जीता। वह तो समाज को झंझावातों से निकालने के लिए एक नये मार्ग का सृजन करता है। एक नई क्रांति को जन्म देता है।
* सुशील भोले *
* सुशील भोले *
नवा बिहान के आस....
मुंदरहा के सुकुवा बिखहर अंधियारी रात पहाये के आरो देथे। सुकुवा के दिखथे अगास म अंजोर छरियाये के आस बंध जाथे। चिरई-चिरगुन मन चंहचंहाये लगथे, झाड़-झरोखा, तरिया-नंदिया आंखी रमजत लहराए लगथें। रात भर के खामोशी नींद के अचेतहा बेरा के कर्तव्य शून्य अवस्था ले चेतना के संसार म संघराये लगथे। तब कर्म बोध होथे, अपन धरम-करम के गोठ सुझथे, सत्-सेवा के संस्कार जागथे, अपन-बिरान अउ अनचिन्हार के पहिचान होथे।
नवा बछर घलो बीतत बछर के अनुभव के माध्यम ले लोगन ल अइसने किसम के नवा आस देथे, नवा बिसवास देथे, नवा रस्ता देथे, नवा नता-गोता, संगी-साथी अउ हितवा मन के संसार देथे। अपन पाछू के करम मन के गुन-अवगुन अउ सही गलत के पहिचान कराथे। करू-कस्सा, सरहा-गलहा मन ले पार नहकाथे, खंचका-डबरा अउ कांटा-खूंटी मन ले अलगे रेंगवाथे। तब जाके मनखे ह मनखे बनथे, वोकर छाप ह जगजग ले उज्जर अउ सुघ्घर दिखथे। लोगन ओला संहराथें, पतियाथें अउ आदर्श मान के ओकर अनुसरण करथें।
छत्तीसगढ़ अभी विकास के दृष्टि ले भारी पिछड़े हवय। डेढ़ दसक बीत गे हे, एकर स्वतंत्र अस्तित्व के सिरजन होये। तभो कोनो बने गढऩ के सुध लेवइया नइ मिलत हे, जबकि इही अवस्था ककरो भी निर्माण के बेरा होथे। वोला सुंदर आकार, संस्कार अउ सदाचार के गुन म पागे के। आज जइसे एकर नेंव रचे जाही, तइसे काल के एकर स्वरूप बनही। सैकड़ों अउ हजारों बछर ले पर के गुलामी भोगत ये माटी के रूआं-रूआं म लूटे के, हुदरे के, चुहके के, टोरे के, फोरे के, दंदोरे के, भटकाये के, भरमाये के, तरसाये के, फटकारे के चिनहा दिखत हे।
अभी घलोक एला अपन पूर्ण स्वरूप के चिन्हारी नइ मिल पाये हे। काबर ते कोनो भी राज के चिन्हारी वोकर खुद के भाखा अउ खुद के संस्कृति के स्वतंत्र पहिचान ले होथे, जे अभी तक अधूरा हे। अउ ये स्वतंत्र स्वरूप के चिन्हारी आज के पीढ़ी ल करना परही। हमर ददा-बबा मन के पीढ़ी ह एला स्वतंत्र पहिचान देवाये खातिर एक अलग प्रशासनिक ईकाई के रूप म तो बनवाये के बुता ल पूरा कर देइन। अब एकर संवागा के जोखा हम सबके हे। कइसे एला आकार देना हे, विस्तार देना हे, पहिचान देना हे, साज अउ सिंगार देना हे, ये हमार पीढ़ी के बुता आय।
ददा-बबा मन जेन सपना ल देखे रहिन हें, वो सपना ल, वो सुघ्घर रूप ल हमन ल गढऩा हे। एकर भाखा ल, साहित्य ल, कला ल, संस्कृति ल, जुन्ना आचार-व्यवहार ल, जीये के उद्देश्य अउ धर्म-संस्कार ल हमन ल बनाना हे। एकर बर पूरा ईमानदारी के साथ हर किसम के स्वारथ ले ऊपर उठ के समरपित भावना ले काम करे के जरूरत हे। ए बुता सिरिफ राजनीति के माध्यम ले पूरा नइ हो सकय, एकर बर हर वो माध्यम अउ मंच ल आगू आये के जरूरत हे, जेकर द्वारा समाज संचालित होथे।
छत्तीसगढ़ ल अपन पूर्ण स्वरूप के चिन्हारी मिलय इही आसा अउ बिसवास के साथ आप सबो झन ला नवा बछर के बधाई अउ जोहार-भेंट.....
सुशील भोले
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
Sunday, 27 December 2015
नवा बछर जब आथे....
नव-दुल्हिन कस सज-संवर के नवा-बछर जब आथे
जिनगी ल रसदार करे बर, नव-रस ल बरसाथे....
ठुडग़ा पेंड़ म जइसे बरसा, लाथे उल्हवा-केंवची पान
इही किसम के नवा-किरन ह जिनगी म लाथे नवा-बिहान
तब करू-कस्सा ह बिसराथे, अउ गुरतुर सबो जनाथे...
नवा-बछर जब आथे.....
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ठुडग़ा पेंड़ म जइसे बरसा, लाथे उल्हवा-केंवची पान
इही किसम के नवा-किरन ह जिनगी म लाथे नवा-बिहान
तब करू-कस्सा ह बिसराथे, अउ गुरतुर सबो जनाथे...
नवा-बछर जब आथे.....
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
Saturday, 26 December 2015
Friday, 25 December 2015
अद्वितीय अटल ....
पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के 91 वें जन्म दिन पर शुक्रवार 25 दिसंबर को सिविल लाईन रायपुर स्थित वृंदावन सभागार में अखिल भारतीय साहित्य परिषद छत्तीसगढ़ प्रांत द्वारा अद्वितीय अटल कार्यक्रम का आयोजन किया गया। राज्यसभा सांसद नंदकुमार साय के मुख्यआतिथ्य एवं पूर्व सांसद श्रीगोपाल जी की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं पर आधारित गोष्ठी में वक्ताओं ने अपने विचार संस्मरण सुनाये। मैंने वाजपेयी जी की कविताओं का छत्तीसगढ़ी भाषा में अपने द्वारा किये गये अनुवाद का पाठ किया।
-----------------------------------------
ऊँचई
(पूर्व प्रधानमंत्री, भारतरत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता *ऊँचाई* का छत्तीसगढ़ी भावानुवाद)
ऊँच पहार म
पेंड़ नइ जामय
नार नइ लामय
न कांदी-कुसा बाढय़।
जमथे त सिरिफ बरफ
जेन कफन कस सादा
अउ मुरदा कस जुड़ होथे
हांसत-खुखुलावत नरवा
जेकर रूप धरे
अपन भाग ऊपर बूंद-बूंद रोथे।
अइसन ऊँचई
जेकर पारस
पानी ल पखरा कर दय
अइसन ऊँचई
जेकर दरस हीन भाव भर दय
गर-माला के अधिकारी ये
चढ़इया बर नेवता ये
वोकर ऊपर धजा गडिय़ाये जा सकथे।
फेर कोनो चिरई
उहां खोंधरा नइ छा सकय
न कोनो रस्ता रेंगइया
वोकर छांव म सुरता सकय।
सच बात ये आय के
सिरिफ ऊँच होवइ ह
सबकुछ नइ होवय
सबले अलग
लोगन ले बिलग
अपन ले कटे
अकेल्ला म खड़े
पहार के महानता नहीं
मजबूरी आय
ऊँचई अउ गहरई म
अगास-पताल के दुरिहाई हे।
जेन जतका ऊँच
ततके अकेल्ला होथे
जम्मो बोझा ल खुदे बोहथे
मुंह ल मुच ले करत
मने-मन रोथे।
जरूरी ये आय के
ऊँच होवई के संग
फैलाव घलोक होय
जेकर ले मनखे
ठुडग़ा कस खड़े झन राहय
लोगन संग मिलय-जुलय
ककरो संग रेंगय।
भीड़ म भुलाना
सुरता म समाना
खुद ल बिसरना
अस्तित्व ल अरथ देथे
जिनगी ल महकाथे।
धरती ल बठवा मन के नहीं
ऊँच-पूर मनखे के जरूरत हे
अतका ऊँच ते अगास ल अमर लय
नवा-दुनिया म प्रतिभा के बीजा बो दय।
फेर अतेक ऊँच नहीं
ते पांव तरी दूबी झन जामय
कोनो कांटा झन गडय़
न कोनो डोंहड़ी फूलय।
न बसंत न पतझड़ होय
सिरिफ ऊँचई के आंधी होय
कलेचुप ठगड़ा कस अकेल्ला।
हे भगवान,
मोला अतेक ऊँचई कभू झन देबे
पर ल घलोक नइ पोटार सकंव
अइसन निष्ठई कभू झन देबे।
मूल हिन्दी : अटल बिहारी वाजपेयी
छत्तीसगढ़ी भावानुवाद : सुशील भोले
Saturday, 19 December 2015
शिव ही जीव समाना...
शिव सनातन ये, आदि ये अंदत ये, हम सबके जीवन के गीत ये संगीत ये। संत कबीर दास जी उंकर संबंध म कहे हें- 'ज्यूं बिम्बहिं प्रतिबिम्ब समाना, उदिक कुम्भ बिगराना, कहैं कबीर जानि भ्रम भागा शिव ही जीव समाना।" माने शिव सब कुछ ये, साकार ये, निराकार ये। समुंदर म छछले पानी कस निराकार घलो उही ये, त कोनो मरकी करसी म समा के वोकर रूप के आकार धरे साकार घलो उही ये। उही आत्मा ये, उही परमात्मा ये। जीव घलो उही ये अउ शिव रूपी परमात्मा घलो उही ये।
महादेव के ये पावन परब म आज उंकर जम्मो रूप के, सरूप के सुरता करे के मन होवत हे। काबर उनला सर्वस्व कहे जाथे, माने जाथे एला सिरिफ साधना के माध्यम ले जे आत्मज्ञान मिलथे वोकरे द्वारा जाने जा सकथे। हर आदमी ल वो साधना करना चाही। काबर ते आज हमर मन जगा जतका भी लिखित अउ प्रकाशित रूप म साहित्य उपलब्ध हे, सब आपस म विरोधाभास पैदा करथें। तेकर सेती जेन कोनो ल भी सत्य तक पहुंचना हे, शिव तक पहुंचना हे, सुन्दर तक पहुंचना हे, वोला किताबी जंजाल ले निकल के स्वतंत्र रूप ले साधना के माध्यम ले ज्ञान प्राप्त करना चाही।
शिव ल मुख्य रूप ले तीन रूप म हमर आगू रखे जाथे- शिव लिंग, जटाधारी अउ ज्योर्ति बिन्दु। शिव ये तीनों रूप म लोगन ल अपन चिन्हारी दिए हे, उपासना के प्रतीक दिए हे अउ जीये के रस्ता बताये हे। ज्योति स्वरूप ह वोकर मूल रूप ये, लिंग स्वरूप ह वोकर पूजा प्रतीक ये अउ जटा स्वरूप ह वोकर जीवन दर्शन ये।
हमन ल जुन्ना ग्रंथ म एक कथा मिलथे के सृष्टिकाल म ब्रम्हा अउ विष्णु म कोन बड़े आय ये बात के सेती झगरा होवत रहिथे। दूनों अपन आप ल बड़े कहंय, तब दूनों के बीच म अग्नि स्तंभ के रूप म परमात्मा के प्रादूर्भाव होइस, अउ उनला ये कहिके शांत कराए गिस के असली तो मैं आंव, तुमन आपस म काबर लड़त हौ। तुंहला जेन बुता खातिर भेजे गे हवय वोला पूरा करव। तब जाके ब्रम्हा अउ विष्णु के झगरा थिराइस। ये अग्नि या ज्योति परगट होए के तिथि ह अगहन महीना के पुन्नी के तिथि आय। एकरे सेती अगहन महीना ल विशेष महीना माने जाथे। अग्नि स्वरूप परमात्मा ल अग्नि स्वरूप, ज्योति स्वरूप या ज्योर्तिबिन्दु के रूप म उल्लेख करे गे हवय।
लागथे एकर असल कारन वो रूप के साक्षात करने वाला मनला वो दृश्य ल व्यक्त करे खातिर सहज ढंग ले जेन प्रतीक मिलिस तेकर उल्लेख करीन फेर आय सब एके मूल चीज। साधना काल म जब परमात्मा प्रसन्न होके साधक जगा ऊपर ले आथे तब जगाजग चमकत आके वोकर माथ म प्रवेश कर जाथे या फेर दिया जलाके रखे गे होथे वोकर बरत बाती म आसन पाथे। सृष्टि निरमान के बाद जब देवता मन परमात्मा ले अपन पूजा अउ उपासना के प्रतीक दिये के गोहार लगाइन तब उनला शिव लिंग के पूजा प्रताक दिये गिस। शिवलिंग के बारे म ए जानना जरूरी हवय के वोहर तेज रूप म संपूर्ण ब्रम्हाण्ड म व्याप्त सर्वव्यापी परमात्मा के प्रतीक स्वरूप आय।
साधना काल म जब साधक ध्यान साधना म मगन रहिथे, तब तेज रूप म सर्वव्यापी परमात्मा अपन सबो रूप के दर्शन कराथे। सरी धरती अगास म संचरे वो परम शक्ति ह साधक ल दिखथे। वोकर ऊपरी आवरण ह हल्का भगवा गढऩ के दिखाई देथे। एकरे सेती परमात्मा के सर्वव्यापी रूप के प्रतीक स्वरूप शिवलिंग के पूजा करे जाथे अउ अवरण के रूप म भगवा रंग के वस्त्र के चलन हेइस। परमात्मा शिव लिंग के रूप म पहिली बार सावन महीना के पुन्नी तिथि म परगट होए रिहिस हे तेकरे सेती सावन महीना ल ओकर पूजा के विशेष महीना के रूप म मनाये जाथे।
सृष्टि संचालन होए लगिस त कतकों किसम के गुन अवगुन अउ सही गलत के चिनहा अनचिनहा के भेद म मति भ्रम के अवस्था बनत गिस। बने मनखे, गिनहा मनखे के भेद अउ न्याय व्यवस्था के स्थापना के जरूरत महसूस करे गिस तब परमात्मा जटाधारी रूप म परगट होईन अउ लोगन ल जीवन दर्शन देइन संगे-संग न्याय व्यवस्था के स्थापना खातिर संहारकर्ता के भूमिका घलोक निभाइन। आज तक बेरा-बेरा म जब अत्याचारी मन के चारों खुंट फैलाव हो जाथे तब न्याय रूपी धर्म के स्थापना खातिर अपन अंश के सिरजन करत रहिथें।
सृष्टि के विकास क्रम म जतका भी अवतारी पुरुष संहारकर्ता के रूप म आवत रेहे हें सब वोकरे अंश यें। मोला तो इहां तक बताए गिस के राम अउ कृष्ण घलोक ह वोकरे अंशावतार आंय। ज्ञान प्राप्ति काल म उन मोरे जगा पूछ बइठिन के संहारकर्ता काला कहिथें रे? त फेर राम अउ कृष्ण ह अपन जीवन म एकर छोड़ अउ का करे हे? यदि वोमन विष्णु के अवतार होतीन त संहारकर्ता के बदला सिरिफ पालनकर्ता के ही जीवन नइ जीए रहितीन?
मैं बार-बार किताबी जंजाल ले निकले के बात करथंव। साधना के माध्यम ले ज्ञान प्राप्त करे के बात करथंव। तेकर असल कारन इही आय। असल म हमर इहां जतका भी किस्सा-कहानी के रूप म जतर-कतर किताब मन धर्म-ग्रंथ के रूप म चलत हें, वो सबला नष्ट करके प्रमाणित अउ हर किसम ले तर्क संगत ढंग ले नवा धर्म ग्रंथ या मार्गदर्शक ग्रंथ लिखे जाना चाही। कबीर दास जी एक जगा कहे हें- "तेरा-मेरा मनवा कैसे एक होई रे, तू कहता कागद की लेखी, मैं कहता आंखन देखी रे।" अइसने काल्पनिक किस्सा-कहानी मनके सेती आय तइसे लागथे।
परमात्मा अपन जीवन-दर्शन दिए खातिर जेन जटाधारी रूप म आए रिहिन हें वो फागुन महीना के अंधियारी पाख के तेरस तिथि आय, जेला हमन महाशिवरात्रि के रूप म जानथन। हर देवता के साल म सिरिफ एके बार परब मनाये जाथे, फेर भोलेनाथ के तीन बार तीन अलग-अलग रूप म लोगन ल अपन चिन्हारी कराए हें तेकर सेती। उंकर साल म तीन पइत परब आथे- सावन पुन्नी, अगहन पुन्नी अउ फागुन अंधियारी पाख के तेरस तिथि। वइसे तो अपन आराध्य के हर दिन, हर पल सुमरनी करना चाही, फेर अइसन जेन वोकर मन के परगट होए के तिथि हे वोमा उंकर मन के पूजा उपासना के जादा महत्व अउ फलदायी होथे। भक्ति के, पूजा के, उपासना के कोई भी रूप हो सकथे, विविध विधि या शैली हो सकथे वोला पाये खातिर वो सबो ह सही अउ उचित होथे, पूर्ण होथे। एकरे सेती बिना कुछु अन्ते-तन्ते सोचे-गुने बिना परमात्मा पाये के मारग म आगू बढऩा चाही।
सुशील भोले
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
Friday, 18 December 2015
कथरी ह गोई रतिहा....
कथरी ह गोई रतिहा गजब सुहाथे
उत्ती के घाम असन कुनकुन जनाथे...
धुंका-धुर्री के संग म जब ले जाड़ आए हे
लइका-सियान सब्बो ल कंपकंप ले कंपाए हे
तब ले गउकिन चुरुमुरु सुतई ह सुहाथे....कथरी ह....
अग्घन-पूस के बेरा ह सुटरुंग ले पहाथे
फेर रतिहा जुलमी ह नंगत के सताथे
धन तो गोरसी के अंगरा ह देंह ल दंदकाथे... कथरी ह...
तरिया-नंदिया के पानी ले कुहरा तो उडिय़ाथे
बने ताते-तात होही, मनला वोऐ भरमाथे
फेर छूते साथ गोई करा कस जनाथे... कथरी ह ...
अइसने बेरा म आथे जब काकरो सुरता
मन मुचमुचाथे अउ मया के होथे बरसा
अंतस के भीतर तब ताते-तात जनाथे... कथरी ह...
सुशील भोले
डॉ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मो.नं. 080853-05931, 098269-92811
सतनाम धर्म में संत परंपरा पर संगोष्ठी...
अखिल भारतीय गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी द्वारा शुक्रवार 18 दिसंबर 2015 को न्यू राजेन्द्र नगर रायपुर स्थित गुरु घासीदास सांस्कृतिक भवन में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में मेरी भागीदारी, वक्तव्य एवं सम्मान... इस कार्यक्रम में देश भर से आये प्रमुख विद्वानों ने सतनाम धर्म में संत परंपरा विषय पर अपने विचार व्यक्त किए....
Thursday, 17 December 2015
आरक्षण, मोहन भागवत और मनुस्मृति जैसे ग्रंथ...
इस देश के बहुसंख्यक शोषित, पीड़ित और दलित वर्ग के लोगों को संवैधानिक तौर पर मिलने वाले आरक्षण पर फिर से विचार करने की बात कह चुके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत अब कह रहे हैं कि जब तक समाज में भेदभाव है तब तक आरक्षण रहना चाहिए।
मित्रों एक प्रश्न जो मेरे मन में अक्सर उठता है, कि जब हम सब यह मानते और समझते हैं कि मनुस्मृति जैसे ग्रंथ जब तक इस देश में है तब तक सामाजिक असमानता और भेदभाव को रोका नहीं जा सकता है। तब एेसे तमाम ग्रंथों और उससे प्रेरित विचारों को हमेशा के लिए अलविदा क्यों नहीं कहा जाता? बजाय आरक्षण पर चर्चा करने के एेसे ग्रंथों और उसके मानने वालों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जाता? अाखिर सामाजिक भेदभाव कैसे दूर होगा? आप क्या कहते हैं...?
सुशील भोले
मो. 098269-92811, 080853-05931
मित्रों एक प्रश्न जो मेरे मन में अक्सर उठता है, कि जब हम सब यह मानते और समझते हैं कि मनुस्मृति जैसे ग्रंथ जब तक इस देश में है तब तक सामाजिक असमानता और भेदभाव को रोका नहीं जा सकता है। तब एेसे तमाम ग्रंथों और उससे प्रेरित विचारों को हमेशा के लिए अलविदा क्यों नहीं कहा जाता? बजाय आरक्षण पर चर्चा करने के एेसे ग्रंथों और उसके मानने वालों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जाता? अाखिर सामाजिक भेदभाव कैसे दूर होगा? आप क्या कहते हैं...?
सुशील भोले
मो. 098269-92811, 080853-05931
Monday, 14 December 2015
Sunday, 13 December 2015
Saturday, 12 December 2015
सरना पूजा स्थल और तालाब...
पहाड़ी कोरवा समाज के अध्यक्ष अंधरू राम जी नेबताया कि उनके वनग्राम राजपुर वि.खं.बगीचा जिला-जशपुर (छत्तीसगढ़) में इसी स्थल पर वे सरना पूजा करते हैं। सरना पूजा के रूप में गौरी माता की पूजा करने की बात कही गई, जिनकी एक छोटी प्रतिमा इस तालाब के ऊपरी भाग (मेड़) पर एक पेंड़ के नीचे जड़ पर स्थापित है।
ज्ञात रहे लोग अंधरू राम जी को पंडा कहकर भी संबोधित करते हैं, क्योंकि यहां के देवस्थलों के मुख्य पुजारी वे ही हैं। उन्होंने गांव के ही दो-तीन अन्य लोगों को अपना शिष्य भी बना लिया है, जिनके माध्यम से वे सभी प्रकार के आध्यत्मिक कार्यों को संपन्न करते हैं।

पहाड़ी कोरवा प्रमुख के साथ....
वनग्राम राजपुर निवासी एवं पहाड़ी कोरवा समाज के अध्यक्ष अंधरू राम के साथ मैं सुशील भोले, बगीचा में जिनके घर पर मैं ठहरा था वे अजीत कुमार मिंज और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती अनिमा मिंज जी....
ज्ञात रहे छत्तीसगढ़ की पहाड़ी कोरवा जाति भारत सरकार द्वारा संरक्षित जातियों की श्रेणी में शामिल है।
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
ज्ञात रहे लोग अंधरू राम जी को पंडा कहकर भी संबोधित करते हैं, क्योंकि यहां के देवस्थलों के मुख्य पुजारी वे ही हैं। उन्होंने गांव के ही दो-तीन अन्य लोगों को अपना शिष्य भी बना लिया है, जिनके माध्यम से वे सभी प्रकार के आध्यत्मिक कार्यों को संपन्न करते हैं।
पहाड़ी कोरवा प्रमुख के साथ....
वनग्राम राजपुर निवासी एवं पहाड़ी कोरवा समाज के अध्यक्ष अंधरू राम के साथ मैं सुशील भोले, बगीचा में जिनके घर पर मैं ठहरा था वे अजीत कुमार मिंज और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती अनिमा मिंज जी....
ज्ञात रहे छत्तीसगढ़ की पहाड़ी कोरवा जाति भारत सरकार द्वारा संरक्षित जातियों की श्रेणी में शामिल है।
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
पहाड़ी कोरवा गांव में...
छत्तीसगढ़ की आदिम जनजाति पहाड़ी कोरवा को केन्द्र सरकार द्वारा संरक्षित जनजाति के अंतर्गत शामिल किया गया है। जशपुर जिला में इनकी आबादी करीब 40 हजार बताई जाती है। इनके विकास के लिए पहाड़ी कोरवा आदिवासी विकास प्राधिकरण का गठन किया गया है। इस प्राधिकरण के माध्यम से कोरोड़ों रुपये की राशि इनके विकास के लिए खर्च की जाती है, लेकिन विकास का सपना कहीं भी साकार होते नहीं दिखता। आज भी ये हर दृष्टि से पिछड़ेपन का नायाब उदाहरण बने हुए हैं।

पिछले दिनों बगीचा प्रवास के दौरान ब्लाक मुख्यालय बगीचा से जशपुर मार्ग पर करीब 16 कि.मी. की दूरी पर स्थित वनग्राम राजपुर जाने का अवसर मिला। पहाड़ और छोटी-छोटी पहाड़ी नदियों से घिरा यह ग्राम मुख्य मार्ग से लगा हुआ है। यहां सौर ऊर्जा के माध्यम से स्वच्छ जल और बिजली की व्यवस्था की गई है। लेकिन अन्य विकास की बातों का कहीं कोई दर्शन नहीं हुआ।
आश्चर्य जनक बात यह है कि इस गांव के प्रमुख अंधरु राम पूरे पहाड़ी कोरवा समाज के अध्यक्ष हैं, तथा पूर्व में ये पहाड़ी कोरवा विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष पद को भी सुशोभित कर चुके हैं। जब इनके गांव की दशा ऐसी है, तो अन्य गांव और लोगों की दशा को खुद ब खुद समझा जा सकता है।
वनग्राम राजपुर में स्थित थुहापाट नामक पहाड़ी पर कोरवा समाज के प्रमुख आराध्य देवी-देवताओं का स्थल है। यहां सात आलग-अलग स्थानों पर इनके आराध्य हैं, जहां ये स्वयं ही पूजा-पाठ और देखरेख का काम करते हैं। अंधरू राम जी अपने समाज के अध्यात्मिक क्षेत्र के भी प्रमुख हैं, वे ग्राम के ही अन्य लोगों को अपना शिष्य बनाकर उनके माध्यम से सभी धार्मिक कार्यों को पूर्ण करवाते हैं।
इनके प्रमुख देवताओं में महादेव, ब्रम्हा, विष्णु, काली, गौरी एवं हनुमान आदि प्रमुख हैं। थुहापाट पर स्थित धाम में प्रति मंगलवार एवं गुरुवार को रात्रि में भजन-पूजन, नृत्य-गायन एवं अन्य पारंपरिक लीलाओं का प्रदर्शन होता है। नवरात्र के अवसर पर यहां मेला जैसा रौनक होता है, लोग दूर-दूर से यहां अपनी मनौती मनाने आते हैं। जनआस्था है कि यहां आने वालों की हर मनोकामना पूर्ण होती है।
थुहापाट पर बिखरी हमारी मूल संस्कृति संरक्षण एवं संवर्धन की बाट जोह रही है। यदि यहां शासन के स्तर पर रंगमंच और मंदिर आदि का निर्माण हो जाये तो बहुत ही उत्तम कार्य हो जायेगा।
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
पिछले दिनों बगीचा प्रवास के दौरान ब्लाक मुख्यालय बगीचा से जशपुर मार्ग पर करीब 16 कि.मी. की दूरी पर स्थित वनग्राम राजपुर जाने का अवसर मिला। पहाड़ और छोटी-छोटी पहाड़ी नदियों से घिरा यह ग्राम मुख्य मार्ग से लगा हुआ है। यहां सौर ऊर्जा के माध्यम से स्वच्छ जल और बिजली की व्यवस्था की गई है। लेकिन अन्य विकास की बातों का कहीं कोई दर्शन नहीं हुआ।
आश्चर्य जनक बात यह है कि इस गांव के प्रमुख अंधरु राम पूरे पहाड़ी कोरवा समाज के अध्यक्ष हैं, तथा पूर्व में ये पहाड़ी कोरवा विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष पद को भी सुशोभित कर चुके हैं। जब इनके गांव की दशा ऐसी है, तो अन्य गांव और लोगों की दशा को खुद ब खुद समझा जा सकता है।
इनके प्रमुख देवताओं में महादेव, ब्रम्हा, विष्णु, काली, गौरी एवं हनुमान आदि प्रमुख हैं। थुहापाट पर स्थित धाम में प्रति मंगलवार एवं गुरुवार को रात्रि में भजन-पूजन, नृत्य-गायन एवं अन्य पारंपरिक लीलाओं का प्रदर्शन होता है। नवरात्र के अवसर पर यहां मेला जैसा रौनक होता है, लोग दूर-दूर से यहां अपनी मनौती मनाने आते हैं। जनआस्था है कि यहां आने वालों की हर मनोकामना पूर्ण होती है।
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
Friday, 11 December 2015
Wednesday, 9 December 2015
Tuesday, 8 December 2015
वीर नारायण तोर सपना ह...

छत्तीसगढ़ में स्वाधीनता आन्दोलन के प्रथम शहीद
वीर नारायण सिंह
को
उनके शहादत दिवस
10 दिसंबर पर श्रद्धांजलि सहित.....
वीर नारायण तोर सपना ह सुफल कहां फेर होवत हे
बस्ती-बस्ती गांव-गांव ह, भूख म आजो रोवत हे...
बाना बोहे तोर सपना के, मरगें फेर कतकों बलिदानी
नांव लिखा के इतिहास म, होगे सब अमर कहानी
सुंदर-प्यारे-खूबचंद कस बेटा जनमिन ए माटी म
भुखहा-दुखहा बर तोरे सहीं रेंगिन सत् के परिपाटी म
आज के लइका आंखी मूंदे, नीत-अनीत फेर झेलत हें
झीके छोंड़ के शोषक मनला, आगू डहर अउ पेलत हें
दावन ढीलाय हे फेर जंगल म बरगे कतकों सोनाखान
का होही ये देश ल सोच के, रोवत होही खुद भगवान
आज कहूं तैं इहां होते, बंदूक-भाला-तिरशूल उठाते
माखन बनिया के गोदाम कस कतकों ल फेर बंटवाते
आथे सुरता जब-जब तोर, आंखी ले आंसू ढरथे
फेर बोहे बर तोर बाना ल, भुजा हर मोर फरकथे
का होही काल के चिंता, काकर बर हम करबो
तोरे देखाये रस्ता म, अब जिनगी भर फेर रेगबो
सुशील भोले
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
ईमेल - sushilbhole2@gmail.com
Monday, 7 December 2015
शब्दभेदी बाण संधान कला नहीं साधना आय : कोदूराम वर्मा
![]() |
कोदूराम वर्मा |
* कोदूराम जी आपके जनम कब अउ कहाँ होइस?
मोर जनम ग्राम भिंभौरी जिला-दुर्ग म 1 अप्रैल 1924 के हाय हवय। मोर महतारी के नाव बेलसिया बाई अउ पिता के नाव बुधराम वर्मा हवय।
* अब आप ये बताव के आप पहिली लोककला के क्षेत्र म आयेव के शब्दभेदी बाण चलाय के क्षेत्र म?
मैं सबले आगू लोककला के क्षेत्र म आयेव। 18 बछर के उमर म करताल अउ तम्बुरा ले भजन गाए के सुरू करेवं ओ बखत आज जइसन वाद्ययंत्र तो नइ रिहिसे, पारंपरिक लोकवाद्य ही राहय। दरअसल मोर रुचि अध्यात्म कोति सुरूच ले रिहिस इही पाके भजन गायन ले कला के क्षेत्र म आना होइस। अऊ करीब 1947-48 के आसपास मैं नाचा कोति आकर्षित होके जोक्कड़ के काम करवं।
![]() |
कोदूराम जी वर्मा के साथ लेखक सुशील भोले |
हव, खड़े साज अउ मशाल नाचा के दौर रिहिस, फेर हमु मन दाऊ मंदरा जी ले प्रभावित होके तबला हारमोनियम के संगत म बइठ के प्रस्तुति देवन।
* अच्छा... ओ बखत नाचा-गम्मत के विषय का होवय?
ओ समय ब्रिटिश, मालगुजारी प्रथा, सामाजिक कुरीति ल विषय बनाके मंच म गम्मत देखवन।
* आप तो आकाशवाणी के घलोक गायक रेहे हव, ओकरो बारे म कुछू बतातेवं?
आकाशवाणी म मैं सन् 1955-56 के आसपास लोकगायक के रूप म पंजीकृत होयेवं। ओ समे मै ज्यादातर भजन ही गावत रेहेवं। आकाशवाणी म मोर भजन- 'अंधाधुंध अंधियारा, कोई जाने न जानन हारा, 'भजन बिना हीरा जमन गंवाया... जइसन भजन गजब धुम मचइस। अबही घलोक कभु कभाबर मउका मिलथे तव थोर बहुत गुनगुना लेथवं। भजन ले अध्ययात्मिक शांति मिलथे।
* आपमन के लोक सांस्कृतिक पार्टी तको चलथे का?
हां चलथे अभी... 'गंवई के फूल के नाम से। पहिली येमा 40-45 कलाकार होवेय अब स्वरूप थोड़ा छोटे होगे। साठ के दशक म दाऊ रामचंद्र देशमुख के अमर प्रस्तुति 'चंदैनी गोंदा ह एक इतिहास होगे।
* आप ल तब के प्रस्तुति अउ अब के म का अंतर दिखथे?
काफी अतंर आगे हवय। पहिली के कलाकार स्वाधीनता आन्दोलन के दौर ले गुजरे रिहिसे, ओमन म अपन माटी के प्रति, कला अउ संस्कृति के प्रति अटूट निष्ठा रिहिस। अब के कलाकार म ओ सब नइ दिखे। अब तो संस्कृति के नाम म अपसंस्कृति के प्रचार ज्यादा होवत हावय। लोगन के भीतर अपन अस्मिता कोति लगाव कमतियावत हाबे ओकर नजरिया पूरा व्यावसायिक होगे हवय।
* का इहां के कला-साहित्य-संस्कृति बर राज शासन उदासीन नजर आथे?
पूरा-पूरा नहीं तो नइ केहे सकन फेर अलग राज बने के बाद जोन अपेक्षा रिहिस वो पूरा नइ हो पावथे।
* अब आपके वो विधा के गोठबात करथन जेन सबले जादा आप ख्याति देवाइयस। ये बतातेवे के शब्दभेदी बाण चलाना कैइसे सीखेव?
ये समे के बात आए जब मै मैं भजन गायन के संग दुर्ग के हीरालाल जी शास्त्री के रामायण सेवा समिति म जुरे रेहेवं। हमन सेवा समिति के माध्यम लेे मांस-मदिरा जइसन तमाम दुर्व्यवसन ले मुक्ति के आव्हान करत लोगन म जन-जागरण के बुता करन। उही बखत उत्तर प्रदेश के बालकृष्ण शर्मा संग मोर भेट होइस जोन ह रामायण के कार्यक्रम प्रस्तुत करत आखिर म शब्दभेदी बाण के प्रदर्शन करय ओमन आँखी म पट्टी बांध के 25-30 फीट दूरिहा ले एक लकड़ी के सहारा झूलत धागा ल आसानी ले काट देवय। मैं ओकर ये प्रतिभा ले काफी प्रभावित होके ओकर सो अनुरोध करेवं कि महु ल ये विद्या सीखा दव। पहिली तो बालकृष्ण जी ह ना-नुकुर करिन फेर बाद म ओमन एक शर्त म ये विद्या सीखोइस के मैं जीवन भर सबो प्रकार के दुर्व्यवसन ले दूरिहा रहूँ। मैं ओकर संग करीब तीन महीने तक रेहेवं अउ ये विद्या ले सीखवं। अउ अपन घर म आगे दोहराव। अइसने अभ्यास करत करत महूं पारंगत होगेवं।
* आपमन भी अपन ये विद्या ल कोनो ल सीखाय हवं का?
अभी तक तो कोनो ल ये विद्या म पारंगत नइ करे हवं।
* का पायके?
असल म ये विद्या मात्र कला नोहय, बल्कि एक प्रकार से साधना आए। लोगन कला ल सीखना जरूर चाहथे फेर साधना करना नइ चाहे। येला सीखे बर दुर्व्यवसन ले मुक्त होना पड़थे। कई ठिन संस्था वाले मन तको मोला बलाइस के लइका मनला धनुर्विद्या सीखाना हावे किके, मै उहां गयेवं तो जरूर फेर कुछ परिस्थिती अइसे बनगे के मोला खाली हाथ लहुंटना परिस।
* का धनुर्विद्या खातिर शासन कोति ले सम्मानित करे गे हावय?
धनुर्विद्या खातिर तो नहीं, कला के क्षेत्र म राज्य अउ केन्द्र दूनों ह सम्मानित करे हावय। केन्द्र सरकार डहर ले सन् 2003-04 म गणतंत्र दिवस परेड म करमा नृत्य प्रदर्शन खातिर बुलावा रिहिस, जेमा मैं 65 झिन लइका मनला लेके प्रदर्शन करेवं अउ उहां हमर कला मंडली ल सर्वश्रेष्ठ कला के पुरस्कार मिलिस। 'करमा सम्राट के उपाधि ले सम्मानित होय हाबव। अइसने राज सरकार डहर ले सन् 2007 म राज्योत्सव के दौरान कला के क्षेत्र म विशिष्ट योगदान खातिर दे जाने वाला 'दाऊ मंदरा जी सम्मान ले तको सम्मानित करे गे हावय।
* नवा पीढ़ी ले का कहना चाहत हव?
बस अतके कहना चाहत हवं के वोमन अपन मूल संस्कृति ल अक्षुण बनाये राखे के दिशा म ठोस बुता करें।
* सुशील भोले
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
Sunday, 6 December 2015
मनहर चौहान का कहानी पाठ...
राजधानी रायपुर की सक्रिय साहित्यिक संस्थाओं की ओर से हिंदी के प्रतिष्ठित कथाकार एवं संपादक (दमखम, मुंबई) मनहर चौहान जी का कहानी पाठ का आयोजन शनिवार 5 दिसंबर 2015 को, वृन्दावन सभाकक्ष में रखा गया था । उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व से परिचय कराने का सुखद अवसर मुझे प्राप्त हुआ।
ज्ञातव्य है, चौहान जी की अब तक 50 से अधिक किताबें प्रकाशित-समादृत हो चुकी हैं, उन्हें म.प्र. साहित्य परिषद, शिक्षा मंत्रालय (भारत सरकार), उ.प्र. हिंदी संस्थान, संस्कृति मंत्रालय (भारत सरकार) के साथ-साथ सारिका कहानी पुरस्कार, जीवन गौरव पुरस्कार, समाज गौरव सम्मान, सृजनगाथा सम्मान आदि सम्मानों व पुरस्कारों से अलंकृत किया जा चुका है। उन्हें बधाई एवं भविष्य के लिए शुभकामनाएँ.....
Saturday, 5 December 2015
जउंरिहा ल का हो जाथे...

जउंरिहा ल का हो जाथे रे, धनी ल का हो जाथे
बिहनिया आथे संझा चले जाथे, रतिहा ल कहां बिताथे...
मंदिर मस्जिद खोज डरे हौं, गुरुद्वारा म झांके हौं
चारों मुड़ा के चर्च मन म बही-भूति कस ताके हौं
निरगुन घाट म जाके घलो आंखी पथराथे रे... धनी ल....
मन बैरी मानय नहीं जिवरा धुक-धुक करथे
कोनो सउत के संसो म तन म आगी कस बरथे
करिया जाथे रे लाली रंग के सपना ह करिया जाथे...धनी...
चंदा उतरगे गांव म, जुग-जुग ले हे गली-खोर
फेर मोर मयारु संग जुड़ही कइसे मया के डोर
जमो आस सिरागे रे, बइरी बिरहा बिजराथे...धनी ल...
सुशील भोले
डॉ. बघेल गली, संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 098269-92811, 080853-05931
Thursday, 3 December 2015
मोर अंगना म आबे चिरइया......
मोर अंगना म आबे चिरइया मया के गीत सुनाबे
ये जग तो निरमोही होगे, तैं जीवन राग ल गाबे...
जंगल झाड़ी कस मोरो घर ह तिल-तिल करके उजरत हे
नता-गोता के चिन्हारी नइये सिरतोन सब्बो छूटत हे
पुरखा मन के ये कुंदरा ल फिर से तैं चहकाबे ... चिरइया.....
मन मंदिर म नइ तो जलत ये ककरो मया के जोती ह
न तो ककरो किस्सा कहानी नइए कागज अउ पोथी ह
बंजर बने ये जिवरा के हिरदय ल हरसाबे.... चिरइया.....
छम-छम बाजय पैरी पहिली ये अंगना अउ डेहरी म
सुख-दुख संग म नाचय गावय राग मिलावय मोहरी म
फिर से तैं ह वो बेरा के सुरता ल करवाबे... चिरइया....
तन तंबूरा कस होगे हे, अब तुन-तुन सिरिफ बाजत हे
छिन म टूट जाही तार एकर तो तइसे मोला जनावत हे
अब तो भइगे तोरे आसा जिनगी के स्वांसा चलाबे.. चिरइया...
सुशील भोले
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
बचपन वापस आ जाए....
ऐसा कर दो कोई करिश्मा, बचपन वापस आ जाए
जीवन चक्र घुमा दो मेरा, शाम, सवेरा हो जाए.....
मां की लोरी फिर कानों में, गूंज रही है सांझ-सवेरे
दादी किस्से सुना रही है, बाल सखाओं को घेरे
फिर आंगन में हाथों के बल, धमा-चौकड़ी हो जाए...
स्कूल के दिन फिर ललचाते, अक्षर-अक्षर मुझे बुलाते
दोहे और पहाड़े गाते, जाने क्या-क्या राग सुनाते
ऐसा कर दो कोई गुरुजी, छड़ी फिर से चमकाए....
मुझे बुलाती हैं वो गलियां, जहां कभी कंचा खेला
जीवन की पगदंडी पकड़ी, और देखा इंसा का रेला
ऐसा कर दो कोई उस पथ पर, कदम मेरा फिर चल जाए...
सुशील भोले
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
गनपति के पहिली पूजा काबर..?
मोर माथा बड़ दिन ले चिथियाये रिहिसे। आखिर गनपति ल पहिली पूजा के आशीष काबर दे दिये गिस? न तो वो कार्तिक ले बड़े ये, न दुनिया ल किंजर के आये वाला प्रतियोगिता म बने गतर के दुनिया ल घूमे हे? बस दुनिया के जगा म अपन दाई-ददा के परिक्रमा करके उंकर आगू म बइठ गे। तभो ले उही ल पहिली पूजा के वरदान?
मोला भोलेनाथ ऊपर खिसियानी लागय। अइसे जनावय के कार्तिक संग अन्याय होए हे। एकरे सेती कार्तिक ह रिसा के कैलाश ल छोड़ के दक्षिण भारत आगे रिहिसि हावय। महादेव-पार्वती वोला गजब मनाईन तभो ले दक्षिण ल नइ छोडि़स।
अब जब थोक-बहुत गुने-समझे के लाइक होए हावन त समझ म आवत हे के गनपति ल पहिली पूजा के वरदान काबर मिलिस?
दूनों भाई के बीच जेन शरत होए रिहिसे तेकर मुताबिक जेन पहिली दुनिया (पृथ्वी) ल किंजर के आ जाही वोही ल पहिली पूजा के वरदान मिलही। कार्तिक बलशाली रिहिसे, वोकर वाहन मयूर घलोक तेज रफ्तार म उडिय़ाने वाला, फेर गणेश के सवारी तो मुसवा बपरा। वो कइसे दुनिया ल किंजर के आतीस?
फेर गनपति रिहिस तेज बुद्धि अउ तर्क शक्ति वाला। वोला ये बात के जानकारी रिहिस हवय के महतारी ल घलोक पृथ्वी के रूप माने जाथे। एकरे सेती वो अपन महतारी-ददा के परिक्रमा करके उंकर आगू म आके बइठ गे।
भोलेनाथ एकरे सेती गनपति ल पहिली पूजा के वरदान दे दिस। असल म ये ह ज्ञान के महत्व ल बताये के बात आय, के ज्ञान अउ तर्क के स्थान सबले ऊपर हे। जेकर जगा ज्ञान अउ तर्क शक्ति हे वोकर स्थान सबले ऊपर हे। उही ह विघ्न विनाशक माने हर समस्या के समाधान करने वाला घलो हो सकथे, जेकर जगा ज्ञान हे, तर्क शक्ति हे।
त संगी हो हमूं मन ला पद, पइसा अउ शक्ति के पाछू भटके ल छोड़ के ज्ञान अउ तर्क के रद्दा म आना चाही, काबर ते असल बड़प्पन या कहिन प्रथम पूज्य के अधिकार एकरे ले मिलथे। त बोलव गणपति महराज के जय🙏🙏🙏
सुशील भोले
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
सुशील भोले
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
Tuesday, 1 December 2015
सतयुग आही कइसे...?
कलियुग के हाहाकार ले हलाकान होके जब कभू अच्छा दिन के सुरता करथन त सिरिफ एक्के बेरा के सुरता आथे... सतयुग के। नानपन ले सुने हावन सतयुग के मनखे सदाचारी, सत्यवादी अउ भगवान के मयारुक रहय। एकरे सेती उन कभू एक-दूसर के पीरा के सौदा नइ करत रिहिन।
आज के बेरा तो मार-काट, छीना-झपटी, ठगिक-ठगा, झूठ-लबारी, तोर-मोर, अपन-पराया के दलदल में बूड़े हावय। पेपर -गजट मन हत्या, बलात्कार, डकैती, भ्रष्टाचार, आतंकी अउ सीमा म गोलीबारी ले भरे रहिथे। त बतावव अइसन म शांत, सुंदर अउ संयम ले भरे युग के सुरता कइसे नइ आही?
फेर मन म इहू गुनान आथे.. आखिर अइसन बेरा आही कइसे..? का सिरिफ सोचे भर म... ते ए ये रद्दा म रेंगे म? संगी हो, मैं हमेशा छत्तीसगढ़ के मूल संस्कृति के बात करथौं। आखिर का आय ये मूल संस्कृति ह? असल कहिन त उही ह सतयुग के संस्कृति आय, जेकर ऊपर द्वापर, त्रेता अउ न जाने काकर-काकर किस्सा-कहिली ल जोड़-सकेल के वोकर मूल रूप ल बिगाड़ दे गे हवय।
मैं कभू गुनथौं... का एकरे सेती इहां कलियुग ह डेरा डार के बइठ गे हवय? जाये के नामे नइ लेवत हे? फेर कभू मन म बिचार आथे- का सतयुग के देंवता ल छोड़ के अन्ते-तन्ते म उलझ गे हावन तेकर सेती उन शांत स्वरूप वाला मन रिसागे हवंय अउ याहा तरह के आगी-होरा भूंजे वाला खेल ल आज करत हावंय? का एकरे सेती हम कलियुग के आगी म धधकत हावन?
त का सतयुग के वापसी खातिर हमला फेर उही सतयुग के संस्कृति ल, सतयुग के देंवता ल अपन जिनगी के आधार बनाये बर लागही? वोकर मूल रूप ल, मूल संस्कृति ल फेर चारों खुंट बगराये अउ लोगन के मन म बसाये पर परही? हां... अइसन तो करेच बर लागही। जइसन मन के पूजा-उपासना करबे... वइसने तो गुन-जस पाबे?
त आवव संगी हो... फेर उही सतयुग के रद्दा... सत्यम्... शिवम्... सुन्दरम् के रद्दा म... अपन मूल संस्कृति के रद्दा म... अपन मूल देंवता के रद्दा म... मूल म पानी रितोबो तभे जिनगी रूपी पेंड़ हरियाही... सिरिफ डारा-शाखा म पानी रितोबो त जड़ अउ पेंड़ के जिनगी सिरा जही..संग म हमरो मन के जिनगी के हरियाली सिरा जाही... जय कुल देंवता... जय मूल देंवता...
सुशील भोले
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
Monday, 30 November 2015
सतयुग आयेगा कैसे ...?
जब कभी हम कलियुग की भयावहता से निजात पाना चाहते हैं, तो केवल सतयुग की ही याद करते हैं। हम सोचते हैं कि आखिर वह सतयुग आयेगा कब, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह सत्यवादियों का, सदाचारियों का युग था। सत्यम् शिवम् सुन्दरम् का युग था। हमें बताया गया है कि समय का चक्र निरंतर चलता है। सतयुग के पश्चात त्रेता, उसके पश्चात द्वपर फिर कलियुग और कलियुग के पश्चात पुन: सतयुग आता है।
तो फिर आज का यह उन्मादीभरा समय, युद्ध की विभिषिका, हिंसा और प्रतिहिंसा, हत्या, लूट, बलात्कार जैसी अपराधों की निरंतर श्रृंखला कब रुकेगी। मन उकता सा गया है। आखिर सत्यम्... शिवम्... शिवम्... आयेगा कैसे... कब... प्रश्न वाचक चिन्हों का काफिला तैयार होने लगता है। क्या हम लोगों के उस दिशा में सोच लेने मात्र से या उसके लिए प्रयास भी करने से?
मित्रों, मैं छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति की बात हमेशा करता हूं। हमेशा कहता हूं कि यहां की संस्कृति पर किसी अन्य संस्कृति को थोपा जा रहा है। इसके मूल स्वरूप को बिगाड़ कर उस पर किसी अन्य संदर्भ को जोड़ा जा रहा है। ये छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति आखिर है क्या? वास्तव में यह सतयुग की ही संस्कृति है, जिसके ऊपर द्वापर और त्रेता की कथानकों को जोड़कर उसे छिपाया और भुलाया जा रहा है। मुझे कई बार ऐसा लगता है कि कहीं सतयुग की उस संस्कृति को छिपाने या उसे भुलाने के कारण ही तो हम कलियुग की इस भयावहता को आज भोग रहे हैं?
क्या सतयुग की वापसी के लिए हमें उस सतयुग की संस्कृति को पुनस्र्थापित करना होगा? उसे उसके मूल रूप में लाकर पुन: सतयुग के देवताओं की आराधना प्रारंभ करनी होगी? शायद हां... हम सतयुग की वापसी चाहते हैं, तो सतयुग के देवता और उसकी संस्कृति को पुन: अपने जीवन और उपासना में आत्मसात करना होगा।
तो आईये .. उस सतयुग की ओर... आज से ही... अभी से ही... उसकी संस्कृति की ओर... अपने मूल की ओर... सत्यम्... शिवम्... सुन्दरम् की ओर...
सुशील भोले
54-191, डॉ. बघेल गली,
संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
Wednesday, 25 November 2015
शब्दभेदी बाण संधानकर्ता कोदूराम जी वर्मा से बातचीत....
छत्तीसगढ़ के एकमात्र शब्दभेदी बाण अनुसंधानकर्ता कोदूराम वर्मा राज्य निर्माण के पश्चात् यहाँ की मूल संस्कृति के विकास के लिए किए जा रहे प्रयासों से संतुष्ट नहीं हैं। उनका मानना है कि यहाँ के नई पीढ़ी के कलाकारों की रुचि भी अपनी अस्मिता के गौरवशाली रूप को जीवित रखने के बजाय उस ओर ज्यादा है कि कैसे क्षणिक प्रयास मात्र से प्रसिद्धि और पैसा बना लिया जाए। इसीलिए वे विशुद्ध व्यवसायी नजरिया से ग्रसित लोगों के जाल में उलझ जाते हैं। 88 वर्ष की अवस्था पूर्ण कर लेने के पश्चात् भी कोदूराम जी आज भी यहाँ की लोककला के उजले पक्ष को जन-जन तक पहुँचाने के प्रयास में उतने ही सक्रिय हैं, जितना वे अपने कला जीवन के शुरूआती दिनों में थे। पिछले दिनों धमतरी जिला के ग्राम मगरलोड में संगम साहित्य समिति की ओर से उन्हें ‘संगम कला सम्मान’ से सम्मानित किया गया, इसी अवसर पर उनसे हुई बातचीत के अंश यहाँ प्रस्तुत है-
0 कोदूराम जी सबसे पहले तो आप यह बताएं कि आपका जन्म कब और कहाँ हुआ?
मेरा जन्म मेरे मूल ग्राम भिंभौरी जिला-दुर्ग में 1 अप्रैल 1924 को हुआ है। मेरी माता का नाम बेलसिया बाई तथा पिता का नाम बुधराम वर्मा है।
0 अच्छा अब यह बताएं कि आप पहले लोककला के क्षेत्र में आए या फिर शब्दभेदी बाण चलाने के क्षेत्र में?
सबसे पहले लोककला के क्षेत्र में। बात उन दिनों की है जब मैं 18 वर्ष का था, तब आज के जैसा वाद्ययंत्र नहीं होते थे। उन दिनों कुछ पारंपरिक लोकवाद्य ही उपलब्ध हो पाते थे, जिसमें करताल, तम्बुरा आदि ही मुख्य होते थे। इसीलिए मैंने भी करताल और तम्बुरा के साथ भजन गायन प्रारंभ किया। चँूकि मेरी रुचि अध्यात्म की ओर शुरू से रही है, इसलिए मेरा कला के क्षेत्र में जो पदार्पण हुआ वह भजन के माध्यम से हुआ।
0 हाँ, तो फिर लोककला की ओर कब आए?
यही करीब 1947-48 के आसपास। तब मैं पहले नाचा की ओर आकर्षित हुआ। नाचा में मैं जोकर का काम करता था।
0 अच्छा... पहले नाचा में खड़े साज का चलन था, आप लोग किस तरह की प्रस्तुति देते थे?
हाँ, तब खड़े साज और मशाल नाच का दौर था, लेकिन हम लोग दाऊ मंदरा जी से प्रभावित होकर तबला हारमोनियम के साथ बैठकर प्रस्तुति देते थे।
0 अच्छा... नाचा का विषय क्या होता था?
उस समय ब्रिटिश शासन था, मालगुजारी प्रथा थी, इसलिए स्वाभाविक था कि इनकी विसंगतियाँ हमारे विषय होते थे।
0 आप तो आकाशवाणी के भी गायक रहे हैं, कुछ उसके बारे में भी बताइए?
आकाशवाणी में मैं सन् 1955-56 के आसपास लोकगायक के रूप में पंजीकृत हुआ। तब मैं ज्यादातर भजन ही गाया करता था। मेरे द्वारा गाये गये भजनों में - ‘अंधाधुंध अंधियारा, कोई जाने न जानन हारा’, ‘भजन बिना हीरा जमन गंवाया’ जैसे भजन उन दिनों काफी लोकप्रिय हुए थे। अब भी कभी अवसर मिलता है, तो मैं इन भजनों को थोड़ा-बहुत गुनगुना लेता हूँ। मुझे इससे आत्मिक शांति का अनुभव होता है।
0 अच्छा, आप लोक सांस्कृतिक पार्टी भी तो चलाते थे?
हां चलाते थे... अभी भी चला रहे हैं ‘गंवई के फूल’ के नाम से। इसमें पहले 40-45 कलाकार होते थे, अब स्वरूप कुछ छोटा हो गया है। यह साठ के दशक की बात है। तब दाऊ रामचंद्र देशमुख की अमर प्रस्तुति ‘चंदैनी गोंदा’ का जमाना था, उन्हीं से प्रभावित होकर ही हम लोगों ने ‘गंवई के फूल’ का सृजन किया था।
0 अच्छा.. यह बताएं कि तब की प्रस्तुति और अब की प्रस्तुति में आपको कोई अंतर नजर आता है?
हाँ... काफी आता है। पहले के कलाकार स्वाधीनता आन्दोलन के दौर से गुजरे हुए थे, इसलिए उनमें अपनी माटी के प्रति, अपनी कला और संस्कृति के प्रति अटूट निष्ठा थी, जो अब के कलाकारों में दिखाई नहीं देती। अब तो संस्कृति के नाम पर अपसंस्कृति का प्रचार ज्यादा हो रहा है। लोगों के अंदर से अपनी अस्मिता के प्रति आकर्षण कम हुआ है, और उनकी नजरिया पूरी तरह व्यावसायिक हो गयी है। निश्चित रूप से इसे अच्छा नहीं कहा जा सकता।
0 क्या यहाँ का शासन भी इस दिशा में उदासीन नजर आता है?
पूरी तरह से तो नहीं कह सकते, लेकिन राज्य निर्माण के पश्चात जो अपेक्षा थी वह पूरी नहीं हो पा रही है।
0 अच्छा... अब आपके उस विषय पर आते हैं, जिसके कारण आपको सर्वाधिक ख्याति मिली है। आप बताएं कि आपने शब्दभेदी बाण चलाना कैसे सीखा?
ये उन दिनों की बात है जब मैं भजन गायन के साथ ही साथ दुर्ग के हीरालाल जी शास्त्री की रामायण सेवा समिति के साथ जुड़ा हुआ था। तब हम इस सेवा समिति के माध्यम से मांस-मदिरा जैसे तमाम दुव्र्यवसनों से मुक्ति का आव्हान करते हुए लोगों में जन-जागरण का कार्य करते थे। उन्हीं दिनों उत्तर प्रदेश से बालकृष्ण शर्मा जी आए हुए थे। जब शास्त्री जी रामायण का कार्यक्रम प्रस्तुत करते तो कार्यक्रम के अंत में बालकृष्ण जी से शब्दभेदी बाण का प्रदर्शन करने को कहते। बालकृष्ण जी इस विद्या में पूर्णत: पारंगत थे। वे आँखों पर पट्टी बांधकर 25-30 फीट की दूरी से एक लकड़ी के सहारे से घूमते हुए धागे को आसानी के साथ काट देते थे। मैं उनकी इस प्रतिभा से काफी प्रभावित हुआ और उनसे अनुरोध करने लगा कि वे मुझे भी इस विद्या में पारंगत कर दें। बालकृष्ण जी पहले तो ना-नुकुर करते रहे, फिर बाद में इन शर्तों के साथ मुझे इस विद्या को सिखाने के लिए तैयार हो गये कि मैं जीवन भर सभी तरह के दुव्र्यवसनों से दूर रहूँगा। मैं उनके साथ करीब तीन महीने तक रहा। इसी दरम्यान वे मुझे इस विद्या की बारीकियों को सीखाते, और मैं उन्हें सीखकर अपने घर में आकर उन्हें दोहराता रहता। इस तरह इस विद्या में मैं पारंगत हो गया।
0 तो क्या आपने भी अन्य लोगों को इसमें पारंगत किया है?
अभी तक तो ऐसा नहीं हो पाया है।
0 क्यों ऐसा नहीं हो पाया?
असल में यह विद्या मात्र कला नहीं, अपितु एक प्रकार से साधना है। लोग इसे सीखना तो चाहते हैं, लेकिन साधना नहीं करना चाहते। इसे सीखने के लिए सभी प्रकार के दुव्र्यवसनों से मुक्त होना जरूरी है। मुझे कुछ संस्थाओं की ओर से भी वहाँ के छात्रों को धनुर्विद्या सीखाने के लिए कहा गया। मैं उन संस्थानों में गया भी, लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी बनी कि मुझे खाली हाथ लौटना पड़ा।
0 क्या आपको इस धनुर्विद्या के लिए शासन के द्वारा कभी सम्मानित किया गया है?
नहीं धनुर्विद्या के लिए तो नहीं, लेकिन कला के लिए राज्य और केन्द्र दोनों के ही द्वारा सम्मानित किया गया है। केन्द्र सरकार द्वारा मुझे सन् 2003-04 में गणतंत्र दिवस परेड में करमा नृत्य प्रदर्शन के लिए बुलाया गया था, जिसमें मैं 65 बच्चों को लेकर गया था। इस परेड में हमारी कला मंडली को सर्वश्रेष्ठ कला मंडली का पुरस्कार मिला था, तथा मुझे ‘करमा सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। इसी तरह राज्य शासन द्वारा सन् 2007 में राज्योत्सव के दौरान कला के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए दिए जाने वाले ‘दाऊ मंदरा जी सम्मान’ से सम्मानित किया गया था।
0 नई पीढ़ी के लिए कुछ कहना चाहेंगे?
बस इतना ही कि वे अपनी मूल संस्कृति को अक्षण्णु बनाये रखने की दिशा में ठोस कार्य करें।
सुशील भोले
डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा)
रायपुर (छ.ग.) मोबा. नं. 098269 92811,
Tuesday, 24 November 2015
मैं तुम्हारे आंसुओं का....
मैं तुम्हारे आंसुओं का गीत गाना चाहता हूं
भूख और बेचारगी पर ग्रंथ गढऩा चाहता हूं... ....
जब जमीं पर श्रम का तुमने, बीज बोया था कभी
पर सृजन के उस जमीं को, कोई रौंदा था तभी
मैं उसी पल को जहां को दिखाना चाहता हूं... मैं तुम्हारे...
जब तुम्हारे घर पर पहरा, था पतित इंसान का
बेडिय़ों में जकड़ा रहता, न्याय सदा ईमान का
उन शोषकों को तुम्हारे बेनकाब करना चाहता हूं.. मैं तुम्हारे...
दर्द की परिभाषा मैंने, समझी थी वहीं पहली बार
जब तुम्हारे नयन बांध ने, ढलकाये थे अश्रु-धार
उसी दर्द को अब जीवन से, मैं भगाना चाहता हूं... मैं तुम्हारे..
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
ई-मेल - sushilbhole2@gmail.com
मो.नं. 08085305931, 098269 92811
जब जमीं पर श्रम का तुमने, बीज बोया था कभी
पर सृजन के उस जमीं को, कोई रौंदा था तभी
मैं उसी पल को जहां को दिखाना चाहता हूं... मैं तुम्हारे...
जब तुम्हारे घर पर पहरा, था पतित इंसान का
बेडिय़ों में जकड़ा रहता, न्याय सदा ईमान का
उन शोषकों को तुम्हारे बेनकाब करना चाहता हूं.. मैं तुम्हारे...
दर्द की परिभाषा मैंने, समझी थी वहीं पहली बार
जब तुम्हारे नयन बांध ने, ढलकाये थे अश्रु-धार
उसी दर्द को अब जीवन से, मैं भगाना चाहता हूं... मैं तुम्हारे..
सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
ई-मेल - sushilbhole2@gmail.com
मो.नं. 08085305931, 098269 92811
Sunday, 22 November 2015
Thursday, 19 November 2015
छत्तीसगढ़ : जहां देवता कभी नहीं सोते...
छत्तीसगढ़ की संस्कृति निरंतर जागृत देवताअों की संस्कृति है। यहां की संस्कृति में आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक के चार महीनों को चातुर्मास के रूप में मनाये जाने की परंपरा नहीं है। यहां देवउठनी पर्व (कार्तिक शुक्ल एकादशी) के दस दिन पूर्व कार्तिक आमावस्या को जो गौरा-गौरी पूजा का पर्व मनाया जाता है, वह वास्तव में ईसर देव और गौरा का विवाह पर्व है।
यहां पर यह जानना आवश्यक है कि गौरा-गौरी उत्सव को यहां का गोंड आदिवासी समाज शंभू शेक या ईसर देव और गौरा के विवाह के रूप में मनाता है, जबकि यहां का ओबीसी समाज शंकर-पार्वती का विवाह मानता है। मेरे पैतृक गांव में गोंड समाज का एक भी परिवार नहीं रहता, मैं रायपुर के जिस मोहल्ले में रहता हूं यहां पर भी ओबीसी के ही लोग रहते हैं, जो इस गौरा-गौरी उत्सव को मनाते हैं। ये मुझे आज तक यही जानकारी देते रहे कि यह पर्व शंकर-पार्वती का ही विवाह पर्व है। खैर यह विवाद का विषय नहीं है कि गौरा-गौरी उत्वस किसके विवाह का पर्व है। महत्वपूर्ण यह है कि यहां देवउठनी के पूर्व भगवान के विवाह का पर्व मनाया जाता है।
और जिस छत्तीसगढ़ में देवउठनी के पूर्व भगवान की शादी का पर्व मनाया जाता है, वह इस बात को कैसे स्वीकार करेगा कि भगवान चार महीनों के लिए सो जाते हैंं या इन चार महीनों में किसी भी प्रकार का शुभ कार्य नहीं किया जाना चाहिए...? वास्तव में छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति में यही चार महीने सबसे शुभ और पवित्र होते हैं, क्योंकि इन्हीं चारों महीनों में ही यहां के प्राय: सभी प्रमुख पर्व आते हैं।
हां... जो लोग अन्य प्रदेशों से छत्तीसगढ़ में आये हैं और अभी तक यहां की संस्कृति को आत्मसात नहीं कर पाये हैं, ऐसे लोग जरूर चातुर्मास की परंपरा को मानते हैं, लेकिन यहां का मूल निवासी समाज ऐसी किसी भी व्यवस्था को नहीं मानता। उनके देवता निरंतर जागृत रहते हैं, कभी सोते नहीं।
अन्य प्रदेशों से लाये गये ग्रंथों के मापदण्ड पर यहां की संस्कृति, धर्म और इतिहास को जो लोग लिख रहे हैं, वे छत्तीसगढ़ के साथ छल कर रहे हैं. यहां के गौरव और प्राचीनता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। एेसे लोगों का हर स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए। उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए।
सुशील भोले
संस्थापक, आदि धर्म सभा
संजय नगर, रायपुर (छ.ग.)
मोबा. नं. 080853-05931, 098269-92811
Subscribe to:
Posts (Atom)